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गौरैया का नाम सुनते ही घर के आंगन में उड़ने वाली छोटी पक्षी की याद आती है ना ? लेकिन अब शहरों के अलावा गांव में वो पक्षी घरों या खेतों में नहीं दिखती है.क्या आप जानते हैं कि इनके विलुप्त होने की वजह ?

अब जब गौरैया आएगी तो अपना बचपन लौटेगा... क्या आपके घर के आंगन या छत पर अभी भी गौरैया आती है? क्या कभी कभार किसी दूर कस्बे में गौरैया को देखने पर बचपन के वो दिन याद आते हैं, जब दादी-नानी के साथ घर के आंगन में बैठने पर दर्जनों गौरैया अगल-बगल आकर घर की सदस्य की तरह बैठ जाती थी, जब सुबह उठने पर गौरैया की चहचहाहट भी किसी एक संगीत सा लगता था. घर के तमाम सदस्यों की तरह घर के किसी कोने में उनका भी एक घर होता था. 

आज 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. लेकिन गौरया के इस खास दिवस पर भी आप अपने आस-पास देखेंगे तो शायद ही आपको एक भी गौरया पक्षी दिखेंगी. क्योंकि शहरों के अलावा गांव के घरों के आंगन,छतों और पेड़ों पर गौरैया समेत तमाम वो पक्षियां दिखना कम हो चुकी हैं, जो बचपन में एक दोस्त की तरह आस-पास रहती थी. खासकर शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी के बच्चों को शायद अब इन पक्षियों का नाम भी नहीं पता होगा. अगर इन बच्चों ने गौरया को देखा भी होगा तो किताबों, इंटरनेट पर घूमती कुछ तस्वीरों में देखा होगा या यू ट्यूब पर वीडियो में देखा होगा. आज हम गौरैया दिवस पर कोशिश करेंगे कि बताएं आखिर शहरों के अलावा गांव में भी गौरैया पक्षी क्यों तेजी से विलुप्त हो रही हैं. 

मोबाइल फोन

ये सच है कि इंटरनेट और मोबाइल फोन के बिना आज जीवन की कल्पना करना मुश्किल हो चुका है. क्योंकि आज हम पूरे तरीके से मोबाइल फोन पर निर्भर हो चुके हैं. लेकिन आपको जानकर ये ताज्जुब होगा कि आपके इस मोबाइल फोन के टॉवर ने आपके आंगन और छतों से गौरैया को हमेशा के लिए दूर कर दिया है. दरअसल मोबाइल टावर का रेडिएशन पहले तो बड़े शहरों में पक्षियों के विलुप्ति का कारण बना था. लेकिन अब धीरे-धीरे आलम यह है कि छोटे शहरों से भी गोरैया समेत अन्य पक्षियों की प्रजातियां भी विलुप्त होने की कगार पर हैं. 

प्रयागराज के वन विभाग में कार्यरत ब्रजनाथ द्विवेदी ने एबीपी न्यूज से बातचीत में बताया कि गौरैया जैसी तमाम पक्षियों के विलुप्त होने का मुख्य कारण मोबाइल फोन के टावर हैं. उन्होंने कहा कि पहले ये टावर मुख्य रूप से बड़े शहरों में लगे होते थे, जिस कारण पक्षी गांव के घरों और खेतों में दिखती थी. लेकिन जब से हर गांव और मोहल्ले में टावर लगे हैं, ये पक्षी विलुप्त हो रहे हैं. क्योंकि मोबाइल टावर और उनसे निकले वाले रेडिएशन तरंग की वजह से बेजुबान जीवों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए ये पक्षी अब दूर जगलों के अंदर रहते हैं. उन्होंने कहा कि माना जाता है कि टावर से निकले वाले रेडिएशन की वजह से इन पक्षियों के प्रजनन पर भी असर पड़ता है. इस कारण ये पक्षी इन रेडिएशन के प्रभाव से दूर रहना पसंद करते हैं. 

ब्रजनाथ द्विवेदी ने आगे बताया कि हमने कार्डबोर्ड के घर बनाकर गौरैया को दोबारा शहरों और जंगलों में बुलाने का प्रयास किया है, लेकिन ये सफल नहीं हो सका. इसका मुख्य कारण मोबाइल टावर के रेडिएशन हो सकते हैं. क्योंकि इससे उन्हें खासा दिक्कत होती है और ये उनके लिए घातक है.  
  
बचपन में लौटने की कोशिश

घरों में गौरैया का आना सिर्फ एक पक्षी का आना नहीं होता है. उनके आने के साथ दादा-दादी,नाना-नानी और बचपन की तमाम यादें भी लौट आती हैं. इसलिए आप अपने घरों में अभी भी गौरैया समेत तमाम छोटे पक्षी को वापस बुलाने का प्रयास कर सकते हैं. इसके लिए आपको घरों में एक छोटा सा घोंसला बनाना होगा, घोंसला ऐसी जगह होना चाहिए,जहां बिल्ली समेत अन्य जानवर ना पहुंचे. इसके अलावा नियमित रूप से अपने आंगन, खिड़कियों,बरामदे और घर की बाहरी दीवारों पर पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना चाहिए. खासकर गर्मियों में घरों के छत और बरामदें में पानी रखना चाहिए. इसके अलावा कोशिश करें कि घरों के आस-पास पेड़ लगाना चाहिए. क्योंकि ये पक्षी खासकर घने पेड़ों पर रहना और घोसला बनाना पसंद करती हैं. 

 

गिरिजांश गोपालन को मीडिया इंडस्ट्री में चार साल से ज्यादा का अनुभव है. फिलहाल वह डिजिटल में सक्रिय हैं, लेकिन इनके पास प्रिंट मीडिया में भी काम करने का तजुर्बा है. दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद गिरिजांश ने नवभारत टाइम्स अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत की. उन्हें घूमना बेहद पसंद है. पहाड़ों पर चढ़ना, कैंपिंग-हाइकिंग करना और नई जगहों को एक्सप्लोर करना उनकी हॉबी में शुमार है। यही कारण है कि वह तीन साल से पहाड़ों में ज्यादा वक्त बिता रहे हैं. अपने अनुभव और दुनियाभर की खूबसूरत जगहों को अपने लेखन-फोटो के जरिए सोशल मीडिया के रास्ते लोगों तक पहुंचाते हैं.
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