41 पीढ़ियां और 1400 साल, दुनिया की सबसे पुरानी उस कंपनी की कहानी जो कभी नहीं रुकी
Oldest Company: दुनिया में एक सबसे पुरानी कंपनी है, जिसने सातवीं सदी से लेकर आज तक हार नहीं मानी. यह सफर इस बात का गवाह है कि अगर हुनर और परंपरा का मेल हो, तो वक्त भी आपके कदमों में झुक जाता है.

जरा सोचिए, एक ऐसी कंपनी जो तब से वजूद में है जब इस्लाम धर्म का उदय भी नहीं हुआ था, जब दुनिया के नक्शे आज से बिल्कुल जुदा थे और जब व्यापार का मतलब सिर्फ वस्तु विनिमय हुआ करता था. साल 578 ईस्वी में जापान की धरती पर एक ऐसी नींव रखी गई, जिसने वक्त के हर थपेड़े को सहा, गृहयुद्ध देखे, परमाणु हमले झेले और 14 सदियों का सफर तय कर आज भी सीना ताने खड़ी है. आइए इस कंपनी के बारे में आपको बताते हैं.
एक कोरियाई कारीगर और जापान का वो पहला 'पवित्र' प्रोजेक्ट
यह कहानी 'कोंगो गुमी' की है, एक ऐसा जापानी निर्माण घराना जिसकी 41वीं पीढ़ी आज भी उस विरासत की मशाल थामे हुए है, जिसे उनके पूर्वजों ने करीब डेढ़ हजार साल पहले जलाया था. कहानी शुरू होती है सातवीं सदी के करीब, जब जापान में बौद्ध धर्म अपनी जड़ें जमा रहा था. राजकुमार शोतोकु तैशी एक ऐसा भव्य मंदिर बनाना चाहते थे जो आने वाली सदियों तक श्रद्धा का केंद्र बना रहे.
इसके लिए उन्होंने कोरिया से एक हुनरमंद कारीगर शिगेमित्सु कोंगो को न्योता दिया. शिगेमित्सु ने ओसाका में 'शितेनो-जी' मंदिर का निर्माण किया, जो आज भी जापान के इतिहास का एक मील का पत्थर है. बस यहीं से 'कोंगो गुमी' नाम की उस कंपनी का जन्म हुआ, जिसने आने वाले 1400 सालों तक जापान की वास्तुकला की दिशा तय कर दी. यह कंपनी सिर्फ इमारतें नहीं बनाती थी, बल्कि लकड़ी और नक्काशी के जरिए इतिहास लिख रही थी.
बहुत कड़े थे इस कंपनी के नियम
कोंगो गुमी की सबसे बड़ी खूबी उनका 'कभी न हार मानने वाला' जज्बा रहा. मध्यकाल के खूनी युद्ध हों या प्राकृतिक आपदाएं, यह कंपनी हमेशा टिकी रही क्योंकि मंदिरों की मरम्मत और निर्माण की जरूरत कभी खत्म नहीं हुई. हैरानी की बात यह है कि इस कंपनी ने अपनी परंपराओं को बचाने के लिए कड़े नियम बनाए थे. अगर परिवार का बड़ा बेटा व्यापार संभालने लायक नहीं होता था, तो किसी योग्य दामाद को गोद लेकर उसे 'कोंगो' उपनाम दिया जाता था, ताकि कंपनी की बागडोर हमेशा सही हाथों में रहे. यही वजह है कि 41 पीढ़ियों का यह अटूट सिलसिला आज भी दुनिया के लिए एक केस स्टडी बना हुआ है.
जब परंपरा और आधुनिक कर्ज का हुआ सामना
जैसे-जैसे वक्त बदला, तकनीक बदली और जापानी अर्थव्यवस्था के समीकरण बदल गए. 2005 तक आते-आते कोंगो गुमी का सालाना टर्नओवर अरबों में था, लेकिन आधुनिक होड़ और बढ़ते कर्ज ने इस 1400 साल पुराने बरगद को हिला दिया. साल 2006 में एक ऐसा वक्त आया जब कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई. उस समय 'ताकामात्सु कंस्ट्रक्शन ग्रुप' देवदूत बनकर सामने आया और उसने इस ऐतिहासिक धरोहर को खरीद लिया. आज कोंगो गुमी स्वतंत्र रूप से भले ही न हो, लेकिन एक महत्वपूर्ण डिवीजन के तौर पर अपना वजूद बनाए हुए है.
41वीं पीढ़ी चला रही कंपनी
आज भी इस कंपनी में कोंगो परिवार का खून और उनकी संस्कृति रची-बसी है. मासाकाज़ु कोंगो की बेटी, जो इस वंश की 41वीं कड़ी हैं, आज भी इस विरासत को संभाल रही हैं. कंपनी आज भी सदियों पुरानी उन लकड़ी की तकनीकों का इस्तेमाल करती है जो बिना किसी कील या फेविकोल के इमारतों को भूकंपरोधी बनाती हैं. यह महज एक कंस्ट्रक्शन कंपनी नहीं है, बल्कि इस बात का सबूत है कि अगर काम में शिद्दत और कला में गहराई हो, तो एक छोटा सा स्टार्टअप भी 1400 साल लंबी उम्र पा सकता है.
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Source: IOCL
























