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क्या होता है Right to Disconnect, कैसे करता है काम और भारत में इसके लिए क्या तैयारी?
हाल ही में बेल्जियम उन देशों की लिस्ट मेें शामिल हो गया है जहां 'राइट टू डिस्कनेक्ट' लागूू कर दिया गया है, लेकिन ये है क्या? चलिए जानते हैैं.
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Right to Disconnect: बेेल्जियम हाल ही में उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है जहां 'राइट टू डिस्कनेक्ट' लागू कर दिया गया है. ऐसे में सभी के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर ये होता क्या है. तो बता दें कि अब बेल्जियम में अब कर्मचारियों को हफ्ते में चार दिन ही काम करना होगा.
अब बेल्जियम में कर्मचारियों को मिलेंगे ये भी अधिकार
दुनिया में हर जगह कर्मचारियों को कुछ दिन भी फोन बंद रखनेे पर नौकरी जाने का खतरा बना रहता है, लेकिन बेल्जियम में लागू किए गए इस नए कानून के अनुसार, सिविल सेवकों को बिना किसी कार्रवाई के डर के अपने आधिकारिक कार्य ईमेल, फोन कार्यालयीन समय के बाद बंद करने की अनुमति होगी. साफतौर पर कार्यालयीन समय के बाद उन पर संचार आदान-प्रदान का दबाव नहीं होगा. ऐसा करने से किसी की नौकरी भी नहीं जाएगी. इसे राइट टू डिस्कनेक्ट कहा जाता है.
फ्रांस ऐसा कानून लागू करने वाला पहला देश
फ्रांस ये कानून लागू करने वाला पहला देश है. वहां 2016 में ही ये कानून लागू कर दिया गया था. जिसके तहत कार्यालयीन समय खत्म होने के बाद अपने फोन और अन्य उपकरण को ऑफ भी कर सकते हैं. हालांकि वहां 50 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे चार्टर ऑफ गुड कंडक्ट जारी करें, जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख हो कि किन घंटों में स्टॉफ ईमेल संदेशों को आदान प्रदान नहीं करेगा.
हर क्षेत्र में संभव है ये कानून?
अब ये सवाल भी उठता है कि क्या हर क्षेत्र में ये कानून संभव है. तो बता दें कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट, चिकित्सा उद्योग, कानून लागू करने वाली संस्थाओं के काम और मीडिया जैसे क्षेत्रों में निश्चित कार्यावधि संभव नहीं है. वहां ये कानून लागू हो पाना संभव भी नहीं हैै. भारत में इसके लागू होने पर कर्माचारियों को बहुत फायदा होगा और उनके जीवन में बदलाव भी आएगा, लेकिन उसकेे लिए फिलहाल कोई कार्य नहीं किए गए हैं या यूूं कहें भारत में ये कानून लागू हो भी पाएगा या नहीं इस बारे में फिलहाल संशय ही है.
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