सावरकर पर किन लोगों की हत्या की साजिश का लगा था आरोप? लिस्ट में सिर्फ गांधी नहीं, ये लोग भी शामिल
आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ विवाद के बारे में बताएंगे जिनके चलते उन पर महात्मा गांधी जैसे लोगों की हत्या की साजिश रचने तक के आरोप लगे.

Vinayak Damodar Savarkar: विनायक दामोदर सावरकर. एक ऐसा नाम जिसे लेकर भारतीय राजनीति में अक्सर वाद विवाद होता रहा है. 28 मई 1883 को नासिक में जन्में विनायक दामोदर सावरकर की कहानी कुछ ऐसी है कि कुछ लोगों के लिए केवल सावरकर हैं और कुछ लोग उन्हें वीर की उपाधि देकर वीर सावरकर के नाम से श्रद्धांजलि देते हैं. सावरकर एकक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे.
26 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि है, ऐसे में उनके चाहने वाले उन्हें अलग अलग तरह से श्रद्धांजलि देंगे. लेकिन विनायक दामोदर सावरकर का एक पहलू और है जिससे उनकी जिंदगी की कहानी दिलचस्प होने के साथ साथ विवादों में भी आ जाती है. जी हां, आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ विवाद के बारे में बताएंगे जिनके चलते उन पर महात्मा गांधी जैसे लोगों की हत्या की साजिश रचने तक के आरोप लगे.
महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने के लगे थे आरोप
सावरकर का जन्म नासिक के नजदीक भागुर नामक गांव में हुआ. 9 साल की उम्र में उन्होंने अपनी माता जी को खो दिया और 7 साल बाद उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधार गए. सावरकर को अभिनव भारत के अलावा लोगों की हत्या की साजिश करने के आरोपों के लिए भी जाना जाता है, इसके अलावा उनके काले पानी की सजा और माफीनामें के किस्से हमेशा भारतीय राजनीति के हिस्से रहे हैं. आपको बता दें कि विनायक दामोदर सावरकर पर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगा था. 1948 में जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की, तो इस मामले में सावरकर पर भी मुकदमा चला. हालांकि, सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया था.
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इन लोगों की हत्या के आरोपों से भी हुए थे रूबरू
इसके अलावा, 1909 में नाशिक के कलेक्टर ए.एम.टी. जैक्सन की हत्या के मामले में भी उनका नाम जुड़ा था. यह हत्या उनके सहयोगी अनंत कान्हेरे ने की थी, जो अभिनव भारत संगठन से जुड़े हुए थे. सावरकर पर आरोप था कि उन्होंने क्रांतिकारियों को हथियार मुहैया कराए, लेकिन उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिलने की वजह से उन्हें इस मामले में भी दोषी नहीं ठहराया गया. हालांकि, गांधी जी की हत्या से जुड़ी जांच में जीवन लाल कपूर आयोग (1969) ने बाद में माना कि सावरकर के खिलाफ कुछ परिस्थितिजन्य ( circumstantial) सबूत थे, लेकिन कानूनी तौर पर वे दोषी साबित नहीं हुए थे.
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