कैसे तय होता है किसी नदी का खतरे का निशान, कौन लगाता है यह मार्क?
देश में इन दिनों कई नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी देखी जा रही है. कई नदियां डेंजर लेवल से ऊपर बह रही है. आइये जानते हैं कि किसी नदी में खतरे का निशान क्या होता है. ये कैसे तय होता है.

देश के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों भारी बारिश के चलते बाढ़ का कहर देखने को मिल रहा है. मॉनसून के दौरान लगातार भारी बारिश के चलते कई जगहों पर नदियों का जलस्तर बढ़ा हुआ है. कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. लेकिन ये खतरे का निशान क्या होता है, कैसे तय होता है और इसे कौन तय करता है? चलिए जानते हैं.
क्या होता है खतरे का निशान
दरअसल जब नदी का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर जाता है तब नदी का पानी बस्तियों, खेतों और सड़कों तक आ जाता है जो जन-जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है. यह एक तरह का अलार्म है, जो बाढ़ की संभावना को दर्शाता है. इसिलिए नदी में खतरे के निशान का मार्क लगाया जाता है जिससे नदी के वॉटर लेवल और फ्लो पर नजर रखी जा सके. ये मार्क नदी के अंदर एक पिलर पर रेड कलर का होता है.
कैसे तय होता है मानक
किसी भी नदी में खतरे का निशान उसके फ्लो, आसपास पानी भरने की क्षमता को देखते हुए लगाया जाता है. अगर किसी नदी का जलस्तर एक निश्चित बिंदु से ऊपर जाता है और उससे बस्तियों में पानी घुसने का खतरा हो तो उस बिंदु को खतरे का निशान माना जाता है. यानि उस नदी में पानी उसके क्षमता से अधिक हो गया है. ऐसे में विभाग द्वारा फौरन राहत बचाव कार्य की तैयारी की जाती है जिससे लोगों को कोई समस्या ना हो.
कौन तय करता है मानक
भारत में नदियों के खतरे के निशान को केंद्रीय जल आयोग और संबंधित राज्य सरकारों के जल संसाधन विभाग मिलकर तय करते हैं. यह प्रक्रिया वैज्ञानिक अध्ययन, ऐतिहासिक आंकड़ों और स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों पर आधारित होती है. केंद्रीय जल आयोग के पास देशभर की प्रमुख नदियों के जलस्तर की निगरानी के लिए सैकड़ों मॉनिटरिंग स्टेशन होते हैं. ये स्टेशन नदी के प्रवाह, गहराई का डेटा इकट्ठा करते हैं.
दो तरह का होता है अलर्ट
खतरे का निशान दो स्तरों पर तय किया जाता है एक वार्निंग लेवल और दूसरा खतरे का लेवल. वॉर्निंग लेवल वह होता है जहां प्रशासन को सतर्क होने की जरूरत होती है वहीं खतरे का स्तर वह स्थिति है जहां बाढ़ का खतरा स्पष्ट हो जाता है और तुरंत कार्रवाई की जरूरत होती है. नदियों के वॉटर लेवल को कम करने की कोशिश की जाती है साथ ही लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है.
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Source: IOCL























