Mughal Architecture: मुगल काल में तो नहीं मिलती थी इंजीनियरिंग की डिग्री, फिर कैसे इतनी ऊंची इमारत बना लेते थे कारीगर, कहां होती थी पढ़ाई?
Mughal Architecture: मुगल युग के समय कारीगरों ने बिना किसी इंजीनियरिंग डिग्री के शानदार स्मारक बनाए हैं, जो आज भी ज्यों के त्यों सटीकता से खड़े हैं. आइए जानते हैं कैसे हुआ यह संभव.

मुगल युग के शानदार स्मारक जैसे कि ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद अपनी शानदार वास्तुकला की वजह से सभी को हैरान करते हैं. सोचने वाली बात तो यह है कि जब उस समय इंजीनियरिंग या फिर आर्किटेक्चर की कोई डिग्री नहीं होती थी तो इन इमारतों का निर्माण इतनी सटीकता से कैसे किया गया? आइए जानते हैं कि उसे समय के कुशल कारीगरों ने इतनी ऊंची इमारतें कैसे बनाई?
व्यावहारिक अनुभव से सीख
मुगल कारीगरों ने कंस्ट्रक्शन के काम में अपना पूरा जीवन लगाकर कुशलता हासिल की थी. उन्होंने काम करते हुए ही सीखा, अलग-अलग चीजों के साथ प्रयोग किए, इमारत की स्थिरता को समझा और अपने व्यावहारिक अनुभव से ही तकनीकों को बेहतर बनाया. उन्होंने अपने अनुभव के बल पर ही भारी लोड उठाने वाले दीवारों से लेकर गुंबदों के नाजुक घुमावों तक सभी चीजों का आधार बनाया.
गुरु-शिष्य परंपरा
मुगल युग में सीखने का सबसे अच्छा तरीका गुरु शिष्य परंपरा लेकर आई थी. दरअसल, जिन्हें काम सीखना होता था वें अनुभावी कारीगरों के साथ काम करते थे. समय के साथ सीखते-सीखते वे खुद एक कुशल कारीगर बन जाते थे. इस गुरु शिष्य परंपरा ने इस बात पर हमेशा ध्यान रखा की पारंपरिक ज्ञान सुरक्षित रहे और आने वाली पीढ़ी तक जरूर पहुंचे. इसलिए पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को पत्थर की नक्काशी से लेकर संगमरमर की जड़ाई तक सब कुछ सीखती थी.
प्राचीन इंजीनियरिंग के रूप में पारंपरिक ज्ञान
बिना किसी इंजीनियरिंग की डिग्री के भी मुगल कारीगरों को इंजीनियरिंग की काफी ज्यादा समझ थी. उन्होंने संतुलन और भार वितरण जैसी चीजों का काफी अच्छा ज्ञान था. उनके पास कला तो थी ही लेकिन साथ में पारंपरिक ज्ञान की वजह से उन्होंने ऐसे खूबसूरत ढांचे बनाए जो सदियों से खड़े हैं.
स्थानीय वास्तुकला से प्रेरणा
मुगल समय के कारीगरों ने क्षेत्रीय निर्माण के तरीकों को पढ़ा अपने काम में उन तकनीकों को शामिल किया. इस वजह से उनकी संरचना स्थानीय जलवायु के प्रति काफी मजबूत बनी और साथ ही खूबसूरती के लिए उन्होंने गुंबद, मीनार और जटिल नक्काशी की एक अलग मुगल शैली भी बनाई.
ज्ञान का आदान-प्रदान
मुगल युग में कारीगर एक साथ काम करते थे. पत्थर की नक्काशी करने वाले, धातु श्रमिक, मिस्त्री और सजावट करने वाले सभी एक साथ काम करते थे. वे साथ रहते हुए एक दूसरे के साथ अपने कौशल का आदान प्रदान करते थे. बड़े प्रोजेक्ट की देखरेख शाही वास्तुकारों के बोर्ड करते थे. यह सभी एक मुख्य वास्तुकार के निर्देशों के मुताबिक हुआ करता था. इसी के साथ कभी-कभी मदरसा में भी वास्तुकला पढ़ाई जाती थी. जिस वजह से बिना किसी औपचारिक डिग्री प्रोग्राम के ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता था.
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