भारत में तो चटोपाध्याय, मुखोपाध्याय और बंदोपाध्याय हुआ करते थे... फिर कहां से आए ये चटर्जी, बनर्जी और मुखर्जी
ब्रिटिश शासन ने अपने समय में भारत में कई बदलाव किए थे. ऐसा ही एक बदलाव था, भारत के बंगाल में रहने वाले चटोपाध्याय का चटर्जी. चलिए जानते हैं चटोपाध्याय या चटर्जी बनने का पूरा सफर...

भारत में तो चटोपाध्याय, मुखोपाध्याय और बंदोपाध्याय हुआ करते थे तो फिर ये चटर्जी, बनर्जी और मुखर्जी कहां से आए? सवाल वाजिब है, लेकिन इसका जवाब भी बड़ा रोचक है. दरअसल, भारत ने आजादी के बाद अंग्रेजों द्वारा दिए गए कई शहरों के नामों को बदला. जैसे कलकत्ता हुआ कोलकाता, बॉम्बे बना मुंबई और मद्रास को चेन्नई के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि, नाम बदलने की यह परंपरा सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गई.
इन बदलते नामों की दौड़ में शायद हम कॉलोनियल टाइम के सांस्कृतिक इतिहास को टटोलना भूल गए. आज बहुत कम लोग हैं जो यह बात जानते हैं कि ब्रिटिश शासन के समय, कई उपनाम यानी सरनेम भी बदले गए थे. बंगाल के लोगों की पहचान यानी उनके असली सरनेम आज आजादी के उस विचार जैसे हो गए हैं जिन्हें सालों पहले भुला दिए गया था. तो आइए जानते हैं कि कैसे एक नाम में बदलाव से बदल गई बंगाल के लोगों की पहचान.
कौन होते हैं बंदोपाध्याय-चटोपाध्याय
"बंद्योपाध्याय" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब होता है "ज्ञानी या विद्वान व्यक्ति". यह शब्द विद्वान या पुरोहित वंश का प्रतीक होता है. दरअसल, यह सरनेम बंद्योपाध्याय परिवार की शिक्षा और धार्मिक ज्ञान में कुशलता को दिखाता है. वहीं बात अगर "चट्टोपाध्याय" सरनेम की करी जाए तो यह शब्द बंगाली भाषा से आया है. चटोपाध्याय स्वयं दो शब्दों से बना है, "चट्टो", जिसका अर्थ है "पोंछना" या "साफ़ रखना" और "पध्याय", जिसका अर्थ है "वह जो विद्वान हो". यह सरनेम उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था जो पुराने समय में विद्वानों और पुजारियों से संबंध रखते थे.
कहां से आए चैटर्जी-बैनर्जी
दरअसल, अंग्रेजों ने भारत में हर काम अपनी सहूलियत के मुताबिक किया, फिर चाहे वह किसी का काम बदलना हो या नाम बदलना. उनकी भाषा हम से अलग होने के कारण वह हिंदी भाषा के कई शब्दों को गलत कहा करते थे. जैसे- सिपाहियों को सिपॉय बोलना. ब्रिटिश प्रशासन में बंगाल में कई अधिकारियों काम किया करते थे. ऐसे में मुश्किल नाम बोलने में होने वाली दिक्कत के कारण सरनेम में ये बदलाव किए गए. इसी क्रम में उन्होंने इन नामों को तोड़-मरोड़ कर एक नया रूप दे दिया. इसी तरह चटोपाध्याय बने चटर्जी, मुखोपाध्याय बने मुखर्जी और बंदोपाध्याय बने बैनर्जी. तब से इन सरनेम का इस्तेमाल फॉर्मली सभी डॉक्युमेंट्स में किया जाने लगा और बंदोपाध्याय-चटोपाध्याय कहीं पीछे छूट गए.
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