Punjabi Cremation: पंजाबियों में कैसे किया जाता है अंतिम संस्कार, हिंदुओं से कितने अलग होते हैं रीति-रिवाज?
Dharmendra Death News: बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र का निधन हो गया है. उनका अंतिम संस्कार विधि-विधान से संपन्न हो गया है. आइए जानें कि पंजाबियों में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है.

Dharmendra Death: बॉलीवुड के मशहूर दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का 89 साल की उम्र में निधन हो गया. ‘ही-मैन’ के तौर पर पहचान बनाने वाले इस सुपरस्टार के जाने से पूरे देश में गहरा दुख छा गया है. धर्मेंद्र पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे. उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में कुछ दिनों के लिए भर्ती भी कराया गया था, जिसके बाद डॉक्टरों की निगरानी में उनका इलाज घर पर ही जारी रखा गया था. आइए जान लेते हैं कि आखिर पंजाबियों में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है. हिंदुओं से कितने अलग इनके रिवाज होते हैं.
धर्मेंद्र पंजाबी थे, ऐसे में पंजाबियों में अंतिम संस्कार केवल किसी प्रियजन को अलविदा कहने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि उसे सम्मान, पवित्रता और आध्यात्मिक विश्वासों के साथ अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने की एक शांत और गरिमामय यात्रा है. खासतौर पर सिख समुदाय में यह प्रक्रिया हिंदू रीति-रिवाजों से कई मायनों में अलग दिखाई देती है.
पहला चरण
सबसे पहले बात करते हैं शव की तैयारी की. सिख परंपराओं में मृत्यु के बाद शव को बेहद सम्मानपूर्वक नहलाया जाता है. इसके बाद मृतक को उसके पांच ककार केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा के साथ सजाया जाता है. माना जाता है कि इन पवित्र निशानियों के साथ अंतिम यात्रा व्यक्ति की धार्मिक पहचान को पूर्ण करती है. यह परंपरा हिंदू धर्म से अलग है, जहां अंतिम संस्कार में धार्मिक चिन्हों या प्रतीकों का उपयोग समुदाय और क्षेत्र के हिसाब से भिन्न हो सकता ह.।
दूसरा चरण
शव की तैयारी के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण होता है गुरुद्वारे में प्रार्थनाएं. यहां 'अरदास', 'जपजी साहिब' और 'कीर्तन सोहिला' जैसे पाठ किए जाते हैं. इस दौरान परिवार और समुदाय के लोग एकत्र होकर मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. कई बार गुरुद्वारे में पाठ के बाद ही शव को अंतिम यात्रा के लिए रवाना किया जाता है.
अर्थी यात्रा
अर्थी यात्रा भी पंजाबियों में काफी विशेष मानी जाती है. शव को फूलों से सजी अर्थी पर रखा जाता है. परिजन और परिचित पीछे-पीछे चलते हुए ‘वाहेगुरु’ का जाप करते हैं. यह जाप वातावरण में एक आध्यात्मिक शांति और दृढ़ता भर देता है. यहां यह परंपरा हिंदू अंतिम यात्रा से मिलती-जुलती तो दिखती है, पर सिख समुदाय में महिलाएं भी खुले रूप से अंतिम यात्रा में शामिल हो सकती हैं, जो कई हिंदू परिवारों में आज भी सामान्य नहीं माना जाता.
दाह संस्कार
श्मशान घाट पर पहुंचने के बाद शव का दाह संस्कार किया जाता है. सिख धर्म में अग्नि-संस्कार को ही अंतिम विदाई का प्रमुख माध्यम माना गया है, क्योंकि यहां माना जाता है कि आत्मा शरीर छोड़कर ईश्वर में विलीन होती है. दाह संस्कार के बाद परिवार के लोग घर लौटकर स्नान करते हैं. इसके साथ ही शुरू होती है दस दिनों की धार्मिक प्रक्रिया, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ या नियमित पाठ जारी रहता है. हर शाम पाठ के बाद प्रसाद कड़हा प्रसाद का वितरण किया जाता है.
10 दिन चलता है कीर्तन
इन दस दिनों के दौरान घर में न कीर्तन रुकता है, न ही पाठ. माना जाता है कि पाठ से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और शोक में डूबे परिवार को मानसिक संबल मिलता है. अंतिम दिन ‘भोग’ डाला जाता है, जिसे संस्कारों की समाप्ति माना जाता है. दाह संस्कार के बाद अस्थि-विसर्जन भी बेहद सादगी और पवित्रता के साथ किया जाता है. अस्थियों को किसी बहती नदी या समुद्र में प्रवाहित किया जाता है. यहां भी किसी प्रकार की भव्यता या भारी पूजा-पाठ का चलन नहीं है.
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Source: IOCL























