शिवाजी-संभाजी ही नहीं, इस मराठा रानी ने भी छुड़ाए थे औरंगजेब के पसीने- मुगलों से हुई जोरदार टक्कर
Rani Tarabai Bhosle: औरंगजेब के सामने मराठा चट्टान की तरह खड़े थे. छत्रपति शिवाजी, संभाजी और राजा राम के निधन के बाद शिवाजी की बहू ने मराठा साम्राज्य की कमान संभाली.

Rani Tarabai Bhosle: औरंगजेब का सपना था दक्षिण भारत जीतना. इसके लिए मुगलों का शक्तिशाली बादशाह दिल्ली की गद्दी को छोड़कर साल 1680 में अपने लाव लश्कर को लेकर दक्षिण भारत की तरफ उसे फतह करने के लिए निकल पड़ा. लेकिन दक्षिण भारत फतह करना औरंगजेब के लिए उतना आसान नहीं था, जितना उसने सोचा था. औरंगजेब दिल्ली से दक्षिण जीतने तो निकला लेकिन दक्षिण भारत को जीतकर कभी वापस दिल्ली नहीं लौटा.
उसके दक्षिण विजय में मराठा साम्राज्य चट्टान के समान उसके सामने खड़ा था. मराठाओं के अलावा उसका सामना कई शक्तिशाली राज्यों और सेनाओं के साथ हुआ जिसके चलते आखिरी तक औरंगजेब समेत पूरी मुगल सेना कमजोर हो गई और औरंगजेब की मौत के बाद उसका पतन शुरू हो गया.
चलिए आज हम आपको उस मराठा रानी के बारे में बताते हैं जिसने औरंगजेब समेत उसकी पूरी सेना के पसीने छुड़ा दिए.
मराठाओं से टक्कर
औरंगजेब के दक्षिण विजय में उसका सामना छत्रपति मराठाओं से हुआ. छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को रोकने के लिए स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की. शिवाजी के निधन के बाद उनके पुत्र संभाजी महाराज ने छत्रपति की पदवी संभाली और औरंगजेब को लगातार चुनौती दी. औरंगजेब ने संभाजी महाराज को पकड़कर 1689 में उनकी बड़ी क्रूर तरीके से हत्या कर दी. संभाजी महाराज की हत्या करने के बाद औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य को खत्म करने के लिए जोरदार हमला किया. लेकिन संभाजी महाराज के निधन के बाद भी मराठा साम्राज्य का संघर्ष रुका नहीं.
संभाजी के बाद उनके भाई राजा राम को मराठा साम्राज्य का तीसरा छत्रपति बनाया गया और उन्होंने मुगलों के खिलाफ मराठाओं के संघर्ष को जारी रखा. लेकिन सिर्फ 30 साल की उम्र में ही राजा राम का भी निधन हो गया. इसके बाद उनकी पत्नी ने औरंगजेब के खिलाफ मराठाओं के लड़ाई को जारी रखा.
ताराबाई भोंसले
छत्रपति राजा राम के निधन के बाद शिवाजी महाराज की बहू ताराबाई भोंसले ने मराठा साम्राज्य को पतन से बचाया और औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई को जारी रखा. मुगलों को यह अहसास नहीं था कि रानी ताराबाई भोंसले मराठाओं का इतना कुशल नेतृत्व करेंगी. छत्रपति राजा राम के निधन के बाद उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय के नाम पर शासन संभाला. रानी ताराबाई ने 1700 से 1707 तक औरंगजेब की मुगल सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई इससे मुगलों को काफी नुकसान हुआ. इन 7 साल के संघर्षों में उन्होंने फिर से मराठा साम्राज्य को मजबूत बनाने में अहम योगदान निभाया. उन्होंने सूरत और मालवा पर विजय भी हासिल की थी. उनकी मृत्यु 1761 में महाराष्ट्र के सतारा के किले में हुई थी.
इसे भी पढ़ें- झाड़ियों में छिपकर क्यों केंचुली उतारते हैं सांप? नहीं जानते होंगे उनकी कमजोरी
Source: IOCL























