Sambhaji Death Anniversary: औरंगजेब ने टुकड़े-टुकड़े करा दिया था संभाजी महाराज का शव, फिर कैसे हुआ था उनका अंतिम संस्कार?
Sambhaji Death Anniversary: 11 मार्च का दिन छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है. औरंगजेब ने संभाजी महाराज की हत्या कर दी थी और उनके टुकड़े कर दिए थे, लेकिन बाद में उनका अंतिम संस्कार किया गया था.

Sambhaji Death Anniversary: छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज की 11 मार्च को पुण्यतिथि मनाई जाती है. वो आज ही का दिन था जब क्रूर शासक औरंगजेब ने उनकी हत्या करवा दी थी. औरंगजेब ने उनको कहा था कि वो इस्लाम कबूल कर लें, लेकिन संभाजी महाराज ने इस बात से इनकार कर दिया इसलिए उनकी जुबान खींच ली थी. इसके बाद संभाजी ने लिखने के लिए सामान मंगवाया और उस पर लिखा कि अगर औरंगजेब अपनी बेटी भी दे तो भी वो ऐसा नहीं करेंगे. इसके बाद तो औरंगजेब ने उनको तड़पा-तड़पाकर मार डाला और उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे. लेकिन फिर संभाजी का अंतिम संस्कार कैसे हुआ आज आपको बताते हैं.
औरंगजेब ने संभाजी को जमकर दी थीं यातनाएं
कुछ वक्त पहले विकी कौशल और रश्मिका मंदाना की फिल्म 'छावा' थिएटर्स में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी दिखाई गई थी और ये भी देखने को मिला था कि औरंगजेब ने उनकी हत्या किस तरीके से की थी. संभाजी महाराज के दुखद अंत की कहानी ब्रिटिश भारत में सिविल सेवक और इतिहासकार रहे डेनिश किनकेड ने अपनी किताब 'शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल' में लिखी है. इस किताब की मानें तो जब छत्रपति संभाजी महाराज और उनके कवि दोस्त कवि कलश ने इस्लाम कबूलने से इनकार किया तो उन दोनों को जमकर यातनाएं दी गई थीं.
इस्लाम कबूल न करने पर मिली ऐसी सजा
'शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल' के अनुसार संभाजी और कवि कलश को जोकरों वाली पोशाक पहनाकर पूरे शहर में परेड कराई गई थी, जिससे उनको अपमानित किया जा सके. इस दौरान पूरे रास्ते उन पर पत्थरों की बरसात हुई और भाले चुभाए जाते रहे. लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर डर का कोई भाव नहीं था, बल्कि एक शेर की तरह उनकी आंखों में ज्वाला जल रही थी. इसके बाद उनको फिर से इस्लाम कबूलने के लिए कहा गया, जिसके लिए दोनों ने इनकार कर दिया. तब औरंगजेब ने क्रूरता बढ़ाते हुए उनकी जुबान कटवा दी, आंखें फोड़ दी गईं और शरीर के एक-एक अंग को कटवा दिया गया.
कैसे हुआ संभाजी का अंतिम संस्कार
जब इससे भी औरंगजेब का मन नहीं भरा तो उसने 11 मार्च 1689 को उनका सिर कलम कर दिया. लेकिन उनकी शहादत ने मराठा साम्राज्य की नींव को और मजबूत कर दिया था, तभी तो ये बलिदान इतिहास में अमर हो गया. संभाजी की नृशंस हत्या के बाद औरंगजेब ने उनके शरीर के टुकड़ों को तुलापुर की नदी में फेंकवा दिया था, ताकि उनके अंतिम संस्कार की कोई संभावना न बचे. लेकिन इतिहासकारों की मानें तो मराठा योद्धाओं ने चुपके से उनके शरीर के अंग इकट्ठे कर के सिले थे और फिर विधिवत उनका अंतिम संस्कार हुआ.
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