The Rice Bowl of India: बंगाल के इस जिले को कहा जाता है 'चावल का कटोरा', 99% लोग नहीं जानते होंगे नाम
The Rice Bowl Of India: भारत में चावल को कई मुख्य व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाता है. आज हम बात करने जा रहे हैं पश्चिम बंगाल के ऐसे जिले के बारे में जिसे भारत का चावल का कटोरा कहा जाता है.

The Rice Bowl Of India: भारत में चावल सिर्फ मुख्य भोजन ही नहीं है बल्कि यह लाखों लोगों की आर्थिक जीवन रेखा भी है. बिरयानी और पुलाव से लेकर खीर और बाकी पारंपरिक व्यंजनों तक चावल भारतीय व्यंजनों का एक अहम हिस्सा रहे हैं. आज हमको बताने जा रहे हैं भारत के पश्चिम बंगाल के एक ऐसे जिले के बारे में जिसे भारत का चावल का कटोरा भी कहा जाता है. आइए जानते हैं.
भारत का चावल का कटोरा
पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले को चावल का कटोरा कहा जाता है. इस जिले को यह नाम गंगा डेल्टा की उपजाऊ मिट्टी और गंगा, हुगली और महानदी जैसी नदियों और उनकी सहायक नदियों से मिलने वाले भरपूर पानी की वजह से मिला है. इन प्राकृतिक संसाधन की मदद से पूरे साल चावला की खेती के लिए अच्छी परिस्थितियों बनी रहती हैं. इसी वजह से यह जिला भारत के सबसे बड़े चावल उत्पादक क्षेत्रों में से एक बन गया है.
चावल की किस्में और स्वाद
पश्चिम बंगाल में कई तरह के चावल उगाए जाते हैं. जैसे बासमती, अमन और औस. इन चावलों का अपना अलग स्वाद होता है और अलग खुशबू होती है. यह सभी किस्में न सिर्फ रोज के भोजन और त्योहारों के लिए जरूरी है बल्कि एक्सपोर्ट के लिए भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. बंगाली चावल अपने अनोखे स्वाद के लिए काफी ज्यादा मशहूर हैं.
उत्पादन और भारत में योगदान
राज्य हर साल लगभग 15 मिलियन टन चावल पैदा करता है. यह क्वांटिटी भारत के कुल चावल उत्पादन में काफी ज्यादा बड़ा योगदान देती है. इस बड़े उत्पादन से लाखों किसानों और मजदूरों का जीवन यापन होता है. गंगा डेल्टा को दुनिया की सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक माना जाता है. पश्चिम बंगाल में चावल सिर्फ एक कृषि उत्पादन नहीं है बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और व्यंजनों का एक हिस्सा है. मछली और चावल की दिशा से लेकर मीठे व्यंजनों तक यहां के चावल इस जगह की पाक पहचान को दर्शाते हैं. चावल की खेती की वजह से यहां के लोगों को रोजगार मिलता है. बढ़ते उत्पादन और अच्छी क्वालिटी की वजह से बर्दवान का चावल खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण समृद्धि और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक बड़ा योगदान दे रहा है. सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व के अलावा चावल की खेती की वजह से इस जिले के अनगिनत परिवारों की जीविका चल रही है. रोपण से लेकर कटाई तक कई पीढ़ियों से किसान सिर्फ चावल पर ही निर्भर हैं.
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Source: IOCL























