ब्लैक बॉक्स में ऐसा क्या, जो 1000 डिग्री तापमान में भी नहीं होता खराब?
हादसे का शिकार होने के बाद एयर इंडिया विमान का तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा पहुंच गया था. सोचने वाली बात यह है कि इतना ज्यादा टेंप्रेचर पर भी ब्लैक बॉक्स कैसे सुरक्षित रहा?

गुजरात के अहमदाबाद में हुए विमान हादसे से हर कोई सहमा हुआ है. इस दर्दनाक घटना के बाद हर कोई जानना चाहता है कि आखिर यह विमान हादसा कैसे और क्यों हुआ? और कैसे विमान में बैठे 241 यात्री आग में राख हो गए? इन सवालों के जवाब के लिए सरकार ने जांच शुरू कर दी है. इतना ही नहीं जांच एजेंसियों को एयर इंडिया की बोइंग 787-0 ड्रीमलाइन विमान में लगा ब्लैक बॉक्स भी मिल गया है, जिसके बाद जांच में तेजी आने की उम्मीद है.
जांच एजेंसियों को एयर इंडिया विमान में लगा ब्लैक बॉक्स क्रैश साइट पर मौजूद बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल की छत से बरामद हुआ है. ऐसे में लोगों को सवाल है कि आखिरी इतने बड़े हादसे और इतने भीषण तापमान में भी ब्लैक बॉक्स कैसे सुरक्षित रहते हैं और इन्हें कैसे बनाया जाता है? चलिए जानते हैं...
1000 डिग्री के ऊपर पहुंच गया था तापमान
बता दें, एयर इंडिया का विमान जब हादसे का शिकार हुआ और इसमें आग लगी तो तापमान 1000 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा पहुंच गया था. यह तापमान लोहे तक को गला सकता है, ऐसे में विमान में सवार यात्रियों के साथ क्या हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. दरअसल, जिस समय विमान में आग लगी उस समय उसमें 1.25 लाख लीटर ईंधन भरा था, जिस वजह से आग लगने के बाद बड़ा ब्लास्ट हुआ. सोचने वाली बात यह है कि इतना ज्यादा टेंप्रेचर पहुंचने के बाद भी ब्लैक बॉक्स कैसे सुरक्षित रहा?
ब्लैक बॉक्स पर नहीं हादसे या ब्लास्ट का असर?
किसी भी विमान हादसे की जांच करने के लिए सबसे जरूरी ब्लैक बॉक्स ही होता है, यही कारण है कि प्लेन क्रैश साइट पर पहुंची जांच एजेंसियां सबसे पहले इसकी ही तलाश करती हैं. यह सुर्ख ऑरेन्ज कलर की एक डिवाइस होती है, जो एक तरह का रिकॉर्डर होता है. इस डिवाइस में विमान की हर गतिविधि रिकॉर्ड हो रही होती है. ब्लैक बॉक्स को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि हादसे में वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे. इसे स्टेनलेस स्टील या टाइटेनियम से बनाया जाता है, जिससे इस पर न तो पानी के दबाव का असर होता है और न ही आग का. इसके अलावा ब्लैक बॉक्स बड़े से बड़ा विस्फोट भी सह सकते हैं.
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