Reasons To Watch Stolen: दिलोदिमाग ही नहीं, हाड़-मांस भी कांप जाएगा, ये भ्रम भी टूटेगा कि 'हिंदी फिल्में अच्छी नहीं होतीं'!
Reasons To Watch Stolen Movie: बिना कुछ सोचे और बिना किसी देरी के जितनी जल्दी हो सके आपको ये फिल्म देख लेनी चाहिए, क्योंकि अगर ये छूटी तो समझिए आपने बहुत अच्छा सिनेमा मिस कर दिया.

Reasons To Watch Stolen Movie: साल 2022 के सितंबर में छपी दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में उस साल 11 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. इन मारे गए लोगों पर शक था कि ये बच्चा चोर हैं. बच्चा चोरी की अफवाहों की वजह से राजस्थान, बिहार समेत दूसरे कई प्रदेशों में भी हालात बदतर थे.
बिना हकीकत जाने बस शक के आधार पर पीटकर की गई इन हत्याओं का मामला वहीं नहीं रुका. पिछले साल की दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक शख्स को जौनपुर में बच्चा चोर समझकर दौड़ाया गया. मॉब लिंचिंग के शक में उसने ओवरब्रिज से कूदकर जान दे दी.
ये सब कुछ हुआ ऑनलाइन फैल रही अफवाहों की वजह से. अफवाहों को फैलाने में वीडियोज और सोशल मीडिया पोस्ट का सहारा लेकर फेक न्यूज पैडलर्स ने न जाने कितनी जानें ले लीं.
ऐसी ही सच्ची घटनाओं का डरावना सच दिखाती एक फिल्म अमेजन प्राइम पर आई है. अभिषेक बनर्जी स्टारर इस फिल्म का नाम है स्टोलेन. ये फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए. इसे देखने के लिए हम आपको कुछ वजहें भी बता देते हैं.
क्यों देखी जानी चाहिए स्टोलेन?
इस फिल्म में गरीबी, इल्लीगल सरोगेसी, झूठे दावे से वायरल वीडियो के नुकसान जैसी तमाम चीजें एक साथ दिखाई गई हैं, वो भी बिना ज्ञान परोसे. एक के बाद एक घटनाओं को जोड़कर इन सभी समस्याओं को बेहद सधी हुई लिखावट के साथ दिखाया गया है. वो भी कुछ इस तरह के दिलो-दिमाग ही नहीं, हाड़-मांस भी कांप जाएं.
सोशल मीडिया पर फैल रही झूठी अफवाहों का असर दिखाती है फिल्म
सोशल मीडिया में झूठे दावे से वायरल होने वाले वीडियोज का रिजल्ट कितना बुरा हो सकता है, इस बारे में ठीक से समझने के लिए और ऐसे दावों से बचे रहने के तरीके खोजने के लिए आपको ये फिल्म जरूर उत्साहित करेगी.
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे किसी का भी वीडियो बिना किसी कॉन्टेक्स्ट के सिर्फ एक झूठी लाइन लिखकर वायरल करने के बाद उसके कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
फिल्म बताती है कि अगली बार जब आप किसी भी वीडियो को देखें तो आंख मूंदकर उस पर भरोसा न करें और न ही मोराल पोलिसिंग के चक्कर में पड़कर खुद से 'इंसाफ' करने लग जाएं. क्योंकि भीड़ के इस सो कॉल्ड 'इंसाफ' को ही मॉब लिंचिंग कहते हैं.
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'हिंदी फिल्में अच्छी नहीं होतीं', ये भ्रम तोड़ने के लिए
ये फिल्म इसलिए भी देखनी चाहिए ताकि दर्शकों का जो भरोसा इस दावे के साथ हिंदी फिल्मों से उठता जा रहा है कि 'हिंदी फिल्में अच्छी नहीं होतीं', वो भ्रम भी टूटे. ये फिल्म दुनियाभर के अलग-अलग इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल्स में तारीफें बटोरने के बाद 2 साल बाद रिलीज हुई.
फिल्म देखने के लिए आपको खर्च भी कुछ ज्यादा नहीं करना है. ओटीटी पर अवेलेबल है तो जरूर देख लें. इससे ये भ्रम टूटेगा कि हिंदी फिल्में अपनी रूट से नहीं जुड़ी होतीं.
बेहतरीन फिल्मी मिक्सचर के लिए
शानदार डायरेक्शन, सधी हुए राइटिंग और कमाल की एक्टिंग, इन सबका मिक्सचर एक साथ एक ही फिल्म में मिल जाए, ऐसा कभी-कभी ही होता है. ये फिल्म वही 'कभी-कभी' वाला टाइम लेकर आई है, जिसमें सब कुछ एक साथ मिल जाएगा.
फिल्म में एक साथ कई सामाजिक कुरीतियां, भ्रष्टाचार, बच्चा चोरी, फेक न्यूज और सड़े हुए सिस्टम सब पर बराबर प्रकाश डाला गया है. और ऐसा करते समय फिल्म बिल्कुल भी बोझिल नहीं हुई है. फिल्म का हर एक सीन जरूरी है, कुछ भी जबरन का नहीं है.
करन तेजपाल, गौरव ढींगरा, स्वप्निल सालकर जैसे राइटर्स, करन तेजपाल जैसे डायरेक्टर, अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी जैसे प्रोड्यूसर्स और अभिषेक बनर्जी, शुभम वर्धन और मिया मेल्जर जैसे एक्टर्स ने मिलकर जादू किया है. उस जादू को देखने के लिए भी आपको फिल्म जरूर देखनी चाहिए.
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Source: IOCL






















