जानिए वी शांताराम से जुड़ी खास बातें जिन्होंने अभिनेता जितेंद्र को दिया था पहला ब्रेक
प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक वी शांताराम का आज जन्मदिन है. उन्होंने हिंदी और मराठी में कई ऐसी यादगार फिल्में बनाईं जिन्हें आज भी याद किया जाता है. सामाजिक मुद्दों को उठाने वाली उनकी फिल्में संदेश देने वाली रहीं हैं. साथ ही देश को एक दिशा देती भी हैं.

नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में जिन लोगों ने योगदान दिया है उनमें प्रमुख नाम है वी शांताराम का. महाराष्ट्र में जन्मे वी शांताराम अपनी प्रयोगधर्मी फिल्मों के लिए याद किए जाते हैं. फिल्मों को संचार का सशक्त माध्यम मानने वाले वी शांताराम का कहना था कि उनकी फिल्में उद्देश्यकपरक होने के साथ सामजिक, राजनैतिक और मानवीय समस्याओं को प्रस्तुत करने का माध्यम हैं. लेकिन वे इतने पर ही नहीं रुकते वी शांताराम इन समस्याओं को दूर करने का तरीका भी फिल्मों के माध्यम बताते हैं.
18 नवंबर 1901 को कोल्हापुर में जन्मे वी शांताराम ने हिंदी और मराठी भाषा में एक से बढ़कर एक फिल्म बनाईं, वे स्वयं भी एक अच्छे अभिनेता थे. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. कलाकार होने के साथ साथ वे निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक और कैमरे की अच्छी समझ रखते थे. उनकी प्रतिभा से मशहूर हस्य अभिनेता चार्ली चैपलिन भी प्रभावित थे.
वी शांताराम की मराठी फिल्म 'मानूस' देखकर चार्ली चैपलिन ने उनकी सराहाना की थी. वे भारतीय सामाजिक तानेबाने की गहरी समझ रखते थे, इसीलिए उनकी फिल्मों में गरीब और कमजोर वर्ग को बड़ा महत्व दिया गया. उनकी बनाई फिल्मों का जनमानस पर भी गहरा प्रभाव था. इससे जुड़े किस्से वे अक्सर सुनाया करते थे. मशहूर अभिनेता जितेंद्र को सबसे पहले वी शांताराम ने ही फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' में ब्रेक दिया था. हिंदी सिनेमा को तकनीकी पक्ष की अहमियत बताने वाले वी शांताराम ही थे.
फिल्मों में तकनीकी पक्ष को समझने के लिए वे जर्मनी भी गए. हिंदी सिनेमा में मूविंग शॉट लेने वाले शांताराम पहले व्यक्ति थे, इसके साथ ही फिल्म 'चंद्रसेना' में उन्होने पहली बार ट्रॉली का प्रयोग किया. 'दो आंखे बारह हाथ', 'झनक झनक पायल बजे', 'गीत गाया पत्थरों ने', 'आदमी' और 'पिंजरा' उनकी ऐसी फिल्में हैं जिनके लिये उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
वी शांताराम अपनी फिल्मों में संगीत, भव्य सेट और कैमरा तकनीक पर खासा ध्यान देते थे. उनकी फिल्मों का संगीत आज भी लोगों को प्रभावित करता है. देश के सबसे अच्छे स्टूडियो में शुमार राजकमल स्टूडिय की नींव भी वी शांताराम ने ही रखी थी. उनके फिल्मी योगदान को देखते हुए 1985 को सिनेमा के सबसे बड़े दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया. फिल्मों में उनके विशिष्ट योगदान को देखते हुए वर्ष 2017 में गुगल ने अपने डूडल को समर्पित किया था.
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