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Ideas of India Summit 2024: ईला अरुण ने फैमिली वैल्यूज पर बताया अपना एक्सपीरियंस, बोलीं- 'अपनी जड़ों से जुड़े रहो तब भारतवर्ष खिलखिलाएगा'

Ideas of India Summit 2024: इला अरुण एक एक्ट्रेस और राजस्थानी फोक-पॉप सिंगर हैं जो हिंदी सिनेमा की दुनिया में भी एक बड़ा नाम हैं. इला ने लम्हे, जोधा अकबर और बेगम जान जैसी कई फिल्मों में काम किया है.

Ideas of India Summit 2024: इला अरुण एक एक्ट्रेस होने के साथ-साथ एक राजस्थानी फोक-पॉप सिंगर हैं जो हिंदी सिनेमा और इंडियन पॉप की दुनिया में भी एक बड़ा नाम हैं. इला ने लम्हे, जोधा अकबर, शादी के साइड इफेक्ट्स और बेगम जान जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों में काम किया है. इला ने आईडिया ऑफ इंडिया समिट 2024 में फैमिली वैल्यूज, ट्रेडिशन और मॉडर्निटी को लेकर बात की.

इला अरुण अपने भाई प्रसुन पांडे और पीयुष पांडे के साथ आईडिया ऑफ इंडिया समिट में पहुंचीं. इस दौरान उनसे पूछा गया कि उनका आईडिया ऑफ इंडिया क्या है, इसपर जवाब देते हुए उन्होंने कहा- 'मैं उस युग से हूं जहां अनेकता में एकता, जैसे प्रसुन ने कहा कि हमारा जो व्हाट्सएप्प है वो पार्लेनियम कहलाता है. तो हम कहां से बढ़े, 9 सिबलिंग थे 45 हो गए. हर प्रांत के लोग हमारे घर आ चुके हैं. तो एकता में अनेकता यहां के आईडिया है जो भारत का है.'

'अपनी जड़ों से जुड़े रहो तब...'
सिंगर ने आगे कहा- 'आजादी के बाद की हमारी पैदाइश है लेकिन मां ने यही सिखाया था कि सबका सम्मान करो. सबके आईडियाज को लो और सबकी भाषा को प्यार करो. प्रेम से बोलो और अपनी जड़ों से जुड़े रहो तब भारतवर्ष खिलखिलाएगा.' 

पीयूष पांडे ने पड़ोसी प्रेम को लेकर सुनाया किस्सा
जयपुर में पलने-बढ़ने को लेकर बात करते हुए पीयूष पांडे ने कहा, मजाक से हटकर, जयपुर में पलना-बढ़ना हमारे साथ हुई सबसे अच्छी बात थी. छोटा-सा शहर था जिसे आज आप जानते हैं. शहर छोटा था, स्कूल छोटे थे, मोहल्ले छोटे थे लेकिन घर-परिवार में रिश्ते मजबूत थे. जयपुर में होते थे तो कई बार लोगों के घरों में टेबल पर एक दाल होती है. मैं एक बार जयपुर गया तो मेरी टेबल पर दो दाल थी, तो मैंने अपने माता-पिता से पूछा कि दो दाल कैसे है. तो उन्होंने कहा कि जो अपना पड़ोसी है उसे पता है कि तुम्हें उनकी दाल पसंद है. तो इस तरह दो दालें हो गईं. तो ऐसी चीजें आज के जमाने में नहीं होतीं.

प्रसून पांडे ने बताया कैसे हुई परवरिश
छोटे से शहर से आने और फिर मुंबई जैसे शहर में खुद का नाम बनाने को लेकर बात करते हुए प्रसून पांडे ने कहा- हमने उस माहौल को अहमियत दी जिसमें हम पले-बढ़े. मैं सबसे छोटा हूं. जब मैं दुनियी में आया तो मेरी मां ने मेरे लिए बेस्ट आर्ट्स स्कूल बनाया. मेरी बड़ी बहन पेंटिंग सीख रही थी. मेरी कोई बहन सितार बजाती थी कोई गाना गाती थी और कोई थिएटर कर रही थी. ये सब हमारे आस-पास था और मैं सोचता था कभी-कभी कि अब क्या सीखना है.

'जो देखा वो फ्रेम किया...'
प्रसून कहते हैं, 'मुझे लगता है कि जब हम सब साथ थे तो मजेदार था. जो हम मिस कर रहे हैं अब क्योंकि अब सबको अलग कमरे मिल जाते हैं. हम सब एक छत पर इधर से उधर तक गद्दे लगे होते थे हम सब वहीं सोते थे और ऐसा नहीं था कि जाते ही सो जाते थे. मेरी कोई बहन मां से बातें कर रही है कोई आपस में बात कर रही हैं. तो ये हुआ कि मेरा आईडिया मेरा आईडिया नहीं है, मैंने जो देखा वो फ्रेम किया और पेश कर दिया.'

कैसे इला अरुण बनीं फोक सिंगर?
जब इला अरुण से पूछा गया कि फोक सिंगिंग को लेकर उनका इंटेरेस्ट कैसे आया इसपर बात करते हुए उन्होंने कहा- कान तो थे मेरे जो अच्छा सुनते थे लेकिन जो वातावरण था राजस्थान में मौजूद हैं, जैसा कि आपने सुना कि हमारी बड़ी फैमिली है तो एक ही साथ साल भर का गेहूं आ जाता था तो उसे बीनने के लिए गांव वालियां आती थीं तो वो उस काम की बोरियत मिटाने के लिए गाती थीं और हम लोग उनके पास बैठ जाते थे. 

जड़ों से जुड़े रहने को लेकर कही ये बात
फोक सिंगर कहती हैं, 'मैं महाराजा मल्टीपर्पज हाई सेकेंड्री स्कूल से पढ़ीं हूं, मेरा म्युनिसिपैलिटी का स्कूल था और मैं जड़ों से जुड़ी हुई हूं. मेरी कोई दोस्त है हसीना कोई नफीसा जो रामगंज बाजार से आती थीं. ये जो लोकगीत हैं और ये जो साधारण जीवन हैं वो हमने ड्राइवरों से सुना है. मेरे ड्राईवर गाते थे. वे साइकिल पर ले जाते थे.

इला ने कहा- 'ये सबकुछ अनजाने में हमारे अंदर चला गया. अब जो 9 बच्चे थे, जो कुछ राजस्थान में था, उसे अपने-अपने तरीके से लिया. अपनी ड्रेसिंग को लेकर बात करते हुए इला ने कहा- कोई कहता है आपकी बिंदी का स्टाइल बहुत पसंद है कोई कहता है आप सिल्वर पहनती हैं.'

'अगर कल्चर से जुड़े रहोगे तो...'
अपनी ड्रेसिंग को लेकर बात करते हुए इला ने कहा- 'कोई कहता है आपकी बिंदी का स्टाइल बहुत पसंद है कोई कहता है आप सिल्वर पहनती हैं. तो मैं किसी डिजाइनर के पास थोड़ी गई, मैंने तो वही देखा कि फैंसी ड्रेस में जाते थे हम महाराजा मल्टीपर्पज हाई सेकेंड्री स्कूल में तो रामनाथ मेणा के वाइफ के लहंगे और कुर्ती-काजले पहनकर फर्स्ट प्राइज लेकर आ जाते थे. तो हम जुड़े हुए हैं और यही मेरा सबसे कहना है कि अगर कल्चर से जुड़े रहोगे तो आपको किसी डिजाइनर की जरूरत नहीं होगी.'

इला ने बताई फोक सिंगिंग की अहमियत
इला कहती हैं, 'जितने भी फेस्टिवल राजस्थान में होते हैं वो गाने के बिना होते ही नहीं, भीख गाने के बिना मांगी नहीं जाती, मौत गाने के बिना होती नहीं. मैंने शायद जाने-अनजाने उसे पकड़ लिया और उसी ने मुझे लौटाया. तो मिडल क्लास फैमिली में पैदा होना, म्युनिसिपैलिटी के स्कूल में जाना, ये भी अपने-आप में ईश्वर की एक देन है. जहां आप अपनी सच्चाई से परे नहीं होते, उससे जुड़े रहते हैं.'

आज भी डाइनिंग टेबल पर लिखती हैं इला
इला आगे कहती हैं कि जैसा प्रसून ने कहा कि आज बच्चों को अलग-अलग कमरे मिले हैं, हमारी को अलमारियां भी नहीं थीं. एक ही टेबल पर पढ़ते थे. अब मुझे आदत हो गई है कुछ भी लिख रही हूं तो उसी डाइनिंग टेबल पर लिख रही हूं. क्योंकि बचपन से वही देखा है. मां ने सिखाया है कि फलों से लदा हुआ पेड़ हमेशा झुका रहता है.

आर्ट कोलाब्रेटरी फॉर्म है- प्रसून पांडे
समिट में बात करते हुए एडवर्टाइजिंग फिल्म डायरेक्टर प्रसून पांडे ने कहा- 'क्योंकि हम सब साथ थे तो हमने साथ होने का सीखा. आर्ट कोलाब्रेटरी फॉर्म है. किसने क्या बोला. उससे मेरे दिमाग में क्या आया उसे किसने कैसे पॉलिश किया. हमें बोलने वाले की इज्जत करनी चाहिए वरना वे आगे से नहीं बोलेगा. हम लकी हैं कि हम इस पोजीशन में हैं.'

'चोली के पीछे' को लेकर क्या बोलीं इला?
फोक म्युजिक में 'चोली के पीछे' जैसे गानें किस तरह बॉलीवुड में एक नया मोड़ लेकर आए, क्या इला इसे लेकर घबराई थीं? इला ने कहा मैं जो कर रही थी अपना कर रही थी, 'मुझे टिप्स ने फोक म्युजिक के लिए बुलाया, 'चोली के पीछे' तो किसी और का क्रिएशन है और मैंने देखा कि नई आवाज है और नई आवाज की सिनेमावालों को तलाश रहती है. पहले मोरनी आया था लम्हें फिल्म का गाना अगर आपको याद हो, श्री जी और हरि जी की कॉम्पोजिशन है और उन्हें राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के कल्चर का पता था तो उन्होंने थिएटर से मुझे एक नया प्लेटफॉर्म दिया.'

'फोक कभी मरता नहीं है'
इला कहती हैं कि वे अनरकंर्फटेबल नहीं थीं क्योंकि फोक को उन्होंने जिंदगी में जिया है. उन्होंने कहा- 'ऐसे गाने है जो मैंने सुने हैं जो पारिवारिक शादियों में होते हैं छेड़छाड़ के गाने होते हैं. जब लिखवा भी रहे थे ये गाना तो आनंद बख्शी एक्सप्रेशन देख रहे थे कि मैं थोड़ा सकुचाई तो नहीं हूं, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मैं एक तो एक्ट्रेस हूं दूसरा हमारे यहां ऐसे गाने होते हैं, जहां जीजा-साली में मजाक होता है, ननद-भाभी में मजाक होता है.'

इला ने कहा- 'मैंने जो भी गाने गाए या जिनके नाम आपने लिए हैं वे मेरी देन नहीं है. पहले भी फोक होते थे, बीच में एक गैप आ गया था कि बॉलीवुड बाहर से इंफ्लूएंस हो गया. पर फोक कभी मरता नहीं है. अब जो हो रहा है वो बैसाखियों पर चल रहा है पर फोक को किसी की जरूरत नहीं है.'

मिले सुर मेरा तुम्हारा को लेकर बोले पीयूष
पीयूष पांडे ने अपने लिखे गाने को लेकर भी बात की. उन्होंने कहा- 'मुझे याद है, ये सच है और जरूरत है कि मेरे बॉस मुझे पुश करते थे और वो चाहते थे कि मैं बड़ा राइटर बनूं और मैंने मिले सुर मेरा तुम्हारा लिखा और हमें इसी पर यकीन करने की जरूरत है कि मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा.'

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दरख्शां मुमताज उन आवाज़ों में से एक हैं, जो एंटरटेनमेंट की दुनिया को न सिर्फ सुनती हैं, बल्कि उसे समझती हैं और दर्शकों तक असरदार तरीके से पहुंचाती भी हैं. ABP न्यूज़ की एंटरटेनमेंट डेस्क पर एक पत्रकार के तौर पर ये सिनेमा की चमक-दमक से आगे जाकर उसकी गहराइयों में झांकती हैं. खासतौर पर बॉक्स ऑफिस ट्रेंड्स और फ़िल्म इंडस्ट्री की पर्सेप्शन बिल्डिंग में उनकी गहरी पकड़ है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन और फिर पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद इन्होंने मीडिया को सिर्फ एक प्रोफेशन नहीं, बल्कि अपना पैशन बना लिया. कैमरा उनकी ताक़त है और कॉन्फिडेंस उनकी पहचान. इनका मानना है कि मेहनत कभी ट्रेंड से बाहर नहीं जाती, और ये हर दिन इसी सोच के साथ काम करती हैं. ये हिंदी में लिखती हैं, लेकिन अंग्रेज़ी, उर्दू और भोजपुरी भाषा पर भी अच्छी पकड़ रखती हैं.
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