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Karnataka Elections: कर्नाटक में चुनाव से पहले अंदरूनी गुटबाजी से बीजेपी और कांग्रेस दोनों परेशान, कौन मार पाएगा बाजी?

Karnataka Elections 2023: बीजेपी में दो गुट बने हुए हैं. जिसमें, बीएल संतोष ग्रुप से सीटी रवि हैं तो वहीं बीएस येदियुरप्पा का गुट अलग है. उधर, कांग्रेस में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की लड़ाई है.

BJP-Congress Karnataka Elections: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं. राज्य की सत्ता पर दोबारा से काबिज होने के लिए बीजेपी अपना दमखम लगा रही है. बीते 2 महीनों में पीएम नरेंद्र मोदी 8 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं, जिसमें कई परियोजनाओं का उद्घाटन और भूमि पूजन किया गया है. उधर, कांग्रेस का उद्देश्य बीजेपी को हटाकर खुद अपनी सरकार बनाना है. लेकिन, इन दोनों पार्टियों के नेताओं ने खुद में ही अपने-अपने गुट बना रखे हैं. कर्नाटक बीजेपी में पहले से ही दो गुट बने हुए हैं. जिसमें, बीएल संतोष ग्रुप से सीटी रवि हैं तो वहीं बीएस येदियुरप्पा का गुट अलग है. उधर, कांग्रेस में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की लड़ाई है. दोनों पार्टियां अपने नेताओं को कैसे मैनेज कर रहे हैं और इसका क्या फायदा और नुकसान होगा? इसके बारे में हम आपको बताएंगे.

सीटी रवि बनाम बीएस येदियुरप्पा
बीजेपी के गुटों में सीटी रवि और बीएस येदियुरप्पा का ग्रुप अलग है. सीटी रवि को बीजेपी नेता बीएल संतोष के खेमे से माना जाता है, जो येदियुरप्पा के विरोधी माने जाते हैं. साल 2010 में जब कर्नाटक में बीजेपी सरकार गिरने की कगार पर खड़ी थी और उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाले गुटों और बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के नेतृत्व वाले गुटों के बीच बंटी हुई थी, बीजेपी के 117 विधायकों में से कुछ ही विधायक पार्टी के प्रति वफादार माने जाते थे. ऐसे ही एक विधायक सी टी रवि थे, जो बीजेपी के वर्तमान राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिमी घाट में चिकमंगलूर निर्वाचन क्षेत्र से चार बार के विधायक हैं. 55 वर्षीय रवि के राजनीतिक ग्राफ की विशेषताओं को परिभाषित किया जाये तो बीजेपी और संघ परिवार दोनों के प्रति इनकी दृढ़ निष्ठा है. रवि जब किसी विषय पर बोलते हैं तो उन पर शीर्ष नेताओं के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है. यह एक प्रमुख कारण है कि कर्नाटक चुनाव से पहले रवि की टिप्पणी येदियुरप्पा और उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र के लिए एक सीमित भूमिका का संकेत देती है, जिसे इतनी दिलचस्पी से देखा जा रहा है.

सीटी रवि का बीएस येदियुरप्पा पर हमला
बीते 14 मार्च को तमिलनाडु, गोवा और महाराष्ट्र राज्यों के लिए बीजेपी के प्रभारी रवि ने सुझाव दिया था कि येदियुरप्पा और उनके बेटे विजयेंद्र अब पार्टी में प्रभावी ताकत नहीं रह गए हैं. रवि ने येदियुरप्पा के बेटे का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा था कि 'बस एक बात याद रखना. उम्मीदवारों पर फैसला किसी की रसोई में नहीं होगा. किसी का बेटा होने के कारण किसी को टिकट नहीं मिलेगा. टिकट पर फैसला भी किसी आकांक्षी के घर पर नहीं लिया जाएगा. विजयेंद्र के सवाल पर फैसला संसदीय बोर्ड लेगा'. रवि कि इस टिप्पणी ने कर्नाटक में गुट और जाति-ग्रस्त बीजेपी के वर्गों में खतरे की घंटी बजा दी.

विजयेंद्र का सीटी रवि पर पलटवार
इस पर 46 वर्षीय विजयेंद्र ने पलटवार करते हुए सुझाव दिया कि किसी को भी अपने पिता की चुप्पी को कमजोरी की निशानी के रूप में नहीं लेना चाहिए. विजयेंद्र ने चेतावनी देते हुए कहा था कि उनकी (येदियुरप्पा) आलोचना करने वालों को सावधान रहना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि तब से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने रवि को बयान देने में सावधानी बरतने की सलाह दी है. बताते चलें कि कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले बीजेपी अच्छी तरह से समझ चुकी है कि येदियुरप्पा फैक्टर उसके लिए कितना जरूरी है. यही वजह है कि बीजेपी को अब लिंगायत वोटों की चिंता सताने लगी है. साल 2008 में पहली बार कर्नाटक की सत्ता में बीजेपी लिंगायत वोट और येदियुरप्पा के सहारे ही काबिज हुई थी.

हाल में ही शिमोगा एयरपोर्ट का उद्घाटन करने पहुंचे पीएम मोदी ने सीएम बोम्मई से ज्यादा येदियुरप्पा को तरजीह दी. उस दौरान पीएम मोदी ने येदियुरप्पा का हाथ पकड़कर आगे लाए और शॉल पहनाया. इस वाकये से साफ हो गया था कि बीजेपी बैलेंस बनाने में जुट गई है. वहीं, तमाम चुनावी पोस्टर्स में येदियुरप्पा को भी जगह दी जा रही है. 

डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की लड़ाई
कर्नाटक में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया गुटबाजी चल रही है. पार्टी नेताओं की मानें तो करीब 25 सीटों के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच लड़ाई चल रही है. इसी गुटबाजी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कोलार में होने वाली बहुप्रतीक्षित जनसभा को स्थगित किया गया था. दरअसल, जिन 25 सीटों पर सिद्धारमैया और शिवकुमार पक्ष आमने-सामने हैं, उनमें मैंगलोर नॉर्थ, सिडलघट्टा, सिंधनूर और अर्सीकेरे शामिल हैं. वरुणा से पहले ही नामित किए जा चुके सिद्धारमैया ने कहा है कि वह दो सीटों से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. लेकिन, पार्टी नेतृत्व ने अभी तक उनको कोलार से चुनाव लड़ने को लेकर फैसला नहीं किया है. कांग्रेस को चिंता है कि इससे गलत संदेश जाएगा.

पार्टी सूत्रों की मानें तो सिद्धारमैया का दो सीटों से चुनाव लड़ना यह इशारा करता है कि वो वरुणा से जीतने के लिए आश्वस्त नहीं हैं और उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों से भी बांध कर रख सकते हैं, इस बात का कांग्रेस को डर है. कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक सिद्धारमैया हैं. लेकिन, पार्टी चाहती है कि वो पूरे राज्य में उसके स्टार प्रचारक हों. उधर, सिद्धारमैया के करीबी यह कहते हुए इस विवाद को खारिज करते हैं कि वह वरुणा को लेकर बिल्कुल भी घबराए हुए नहीं हैं.

बता दें कि 10 मई के चुनावों के लिए कांग्रेस ने 224 सीटों में से 166 के लिए उम्मीदवारों का ऐलान किया है और 58 सीटों को छोड़ दिया है, जिसके कई दावेदार हैं. सूत्रों के अनुसार, इन 58 में से 25 सीटों को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार गुटों के बीच समझौता करना विशेष रूप से कठिन साबित हो रहा है. मतभेदों को लेकर एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि हमें बीजेपी की सूची का इंतजार है. हम एक या दो नेता बदल सकते हैं. लेकिन, 25 सीटों पर सिद्धारमैया और शिवकुमार अड़े हुए हैं. वे चाहते हैं कि उनके लोगों को टिकट मिले. ये विवाद किसी बड़े नाम को लेकर नहीं है.

ये भी पढ़ें- Karnataka Election 2023: कर्नाटक में बीजेपी के लिए कितना अहम है येदियुरप्पा फैक्टर? चुनाव से ठीक पहले क्यों बदलने पड़े समीकरण

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