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IN DEPTH: राहुल गांधी की वो चूक जिसने हार की स्क्रिप्ट लिख दी

यह चुनाव परिणाम यह स्पष्ट कर दिया कि आम जनमानस को राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है.

नई दिल्ली: 23 मई की शाम से कहीं खुशी, कहीं ग़म, कहीं गुस्सा और कहीं विश्लेषण हो रहा है. यह चुनाव दो नेताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा. एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी. 26 मई 2014 को पहली गैर कांग्रेसी पूर्ण बहुमत की सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी. पांच साल बाद जनता ने बीजेपी और एनडीए की झोली दिल खोलकर वोट बरसाए. और इस तरह एक बार फिर नरेंद्र मोदी सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ वापसी कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अकेले बीजेपी लगातार दो बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है. वहीं, यह चुनाव कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए जोर का झटका है.

यह चुनाव परिणाम यह स्पष्ट कर दिया कि आम जनमानस को राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है. अब कार्यकर्ताओं का जोश बचाए रखना और कार्यकर्ताओं के बीच अपने नेतृत्व पर भरोसा बनाए रखना राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती है. कल राहुल गांधी ने नतीजों के बीच में ही हार की जिम्मेदारी ली. इस जिम्मेदारी के बाद एबीपी न्यूज को जानकारी मिली कि राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने से पहले सोनिया गांधी के सामने इस्तीफे का जिक्र किया. सूत्रों का कहना है कि सोनिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस्तीफा नहीं देने की सलाह दी, जिसके बाद तय हुआ कि कांग्रेस की बैठक में वो इस्तीफा रख सकते हैं. इस्तीफे की चर्चा के बाद राहुल के विरोधी भी उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं.

चलिए कुछ आंकड़े आपको बताते हैं - खुद राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये - नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पहली बार हारे - विपक्ष के उपनेता ज्योतिरादित्य सिंधिया हारे - कांग्रेस के 9 पूर्व सीएम हारे - यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के अध्यक्ष हारे

कांग्रेस उन राज्यों में शर्मनाक तरीके से हारी जहां कुछ ही महीने पहले बीजेपी से सत्ता छीनकर सरकार बनाने में कामयाब हुई थी. मध्य प्रदेश की 29 में से 1 सीट कांग्रेस जीत पायी. राजस्थान में तो खाता भी नहीं खोल पायी. आलम ये है कि वहां के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत के बेटे चुनाव हार गये. छत्तीसगढ़ में सिर्फ 2 सीटों पर जाकर सिमट गयी.

पीएम मोदी की छवि पर चोट कांग्रेस की सबसे बड़ी असफलता मोदी ब्रैंड के ही इर्द-गिर्द घूमना रहा. सत्ता पक्ष मोदी को अपना ब्रैंड बनाकर पेश किया. विपक्ष ने भी मोदी की छवि को ही चोट पहुंचाने के चक्कर में कहीं ना कहीं मोदी को ही मुद्दा बना दिया. इस तरह आम लोगों के सामने कोई दूसरा चेहरा आ ही नहीं पाया. अब चुनाव परिणाम के आंकड़ों के आइने में देखें तो राहुल गांधी को जिसने भी चौकीदार चोर है नारे की रणनीति पर चलने को कहा उसने हार की स्क्रिप्ट लिख दी.

राहुल और प्रियंका ब्रैंड नहीं बना पाए पीएम मोदी के ब्रैंड ही चुनाव घूमता रहा. विपक्ष भी पीएम मोदी के पिच पर बॉलिंग करता रहा. जिसका असर यह हुआ कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अपना ब्रैंड मजबूत ही नहीं कर पाए. इन दोनों की चर्चा के केंद्र में भी सिर्फ पीएम मोदी की इमेज थी. आंकड़ों के नजर से देखिए तो जिन 116 सीटों पर राहुल गांधी ने रैली की उनमें से 92 तो बीजेपी जीत गई, सिर्फ 17 इनके खाते में आई. प्रियंका गांधी ने जिन 44 सीटों पर रैली की उनमें से 38 तो बीजेपी जीती सिर्फ 2 पर कांग्रेस कामयाब हुई.

गठबंधन का गणित फेल बिहार, झारखंड, कर्नाटक, एमपी, महाराष्ट्र सहित 10 राज्यों में कांग्रेस सिर्फ 1 सीट पर सिमट कर रह गई. तमिलनाडु से डीएमके से गठबंधन काम आया. लेकिन राहुल गांधी का तेजस्वी यादव के साथ किया गया बिहार का गठबंधन नाकाम साबित हुआ. झारखंड में जेएमएम और कर्नाटक में जेडीएस के साथ दोस्ती डूबाकर ले गई.

सीटों के बंटवारे के दौरान दृढ़ निश्चय और सामंजस्य की कमी दिखी दिल्ली में आप के साथ, यूपी में सपा-बसपा के साथ गठबंधन के बजाए अकेले लड़ना स्वीकार किया. उन्होंने जमीन पर अपने संगठन को मजबूत करने के लिए अकेले लड़ना स्वीकार किया लेकिन खुलकर कहा कि वे टिकट का बंटवारा इस तरह किया गया है कि बीजेपी कमजोर हो. दिल्ली में लगातार कन्फ्यूजन कार्यकर्ताओं और आम लोगों के बीच बनी रही. ऐन चुनाव के वक्त इस तरह की किचकिच को जनता ने नकार दिया. यूपी में भी खुद को बीजेपी का वोट काटने के लिए खुलकर कहना कांग्रेस पर भारी पड़ गया. इस तरह आम लोगों के बीच यह मैसेज गया कि सभी लोग मोदी को हटाना चाहते हैं. इस तरह मोदी को सिंपैथी वोट मिलता गया.

संगठन की कमी

मीडिया में आक्रामक रुख और खुलकर अपनी बातें राहुल गांधी ने रखा. लेकिन जमीन पर संगठन को मजबूत नहीं किया. यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी संगठन में ना ही कोई बदलाव हुआ ना कि जमीन पर कोई संगठन खड़ा किया गया. हरियाणा में पिछले पांच साल से ना ही कोई ज़िला अध्यक्ष है और ना ही ब्लॉक अध्यक्ष. बिहार में भी विधानसभा में जीत मिलने के बावजूद संगठन के लेवल पर कोई काम नहीं हुआ. इसका असर यह हुआ कि बीजेपी अपनी बात आम लोगों तक अपने संगठन के जरिए पहुंचा दी जबकि कांग्रेस अपनी घोषणापत्र की न्याय योजना के बारे में गरीबों से सीधे संवाद करने में असफल हुई.

सियासी सरप्राइज मूव सियासी शॉक बन गया इस चुनाव में राहुल की रणनीति में सियासी सरप्राइज मूव भी दिखा. प्रियंका गांधी को महासचिव बनाने के साथ ही यूपी के पूर्वांचल की जिम्मेदारी देकर पीएम मोदी को डायरेक्ट घेरने की कोशिश. लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि प्रियंका को ऐन चुनाव के पहले के बजाए काफी पहले लाना चाहिए था. जिससे की संगठन के स्तर पर काम कर पातीं. दूसरा अमेठी के साथ केरल के वायनाड से चुनाव लड़ना सरप्राइज रहा. लेकिन अमेठी में लोगों को लगा कि राहुल गांधी को उन पर भरोसा नहीं है अब.. इसलिए उन्होंने भी राहुल के प्रति उदासीनता दिखाई.

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