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IAS Success Story: खुद पर विश्वास ने दिलायी दीक्षा को UPSC में सफलता, दूसरे प्रयास में ऐसे बनीं टॉपर

दीक्षा जैन ने साल 2018 में अपने दूसरे अटेम्पट में यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया था. 22वीं रैंक लाने वाली दीक्षा मानती हैं यूपीएससी का यह सफर आसान हो जाता है अगर इसे बोझ समझने के बजाय एंजॉय करें.

Success Story Of IAS Topper Deeksha Jain: यूपीएससी जैसी परीक्षा में टॉप करने वाले कैंडिडेट बहुत गंभीर और शांत हों, ऐसा जरूरी नहीं. कम से कम दीक्षा जैन को देखकर तो ऐसा ही लगता है. इस बात पर मोहर तब लगी जब दीक्षा के यूपीएससी के बारे में विचार सामने आये. 2018 की टॉपर दीक्षा जैन कहती हैं कि इस परीक्षा को बोझ की तरह लेंगे तो उसके तले दबकर रह जाएंगे वहीं अगर इस सफर को एंजॉय करेंगे तो पता भी नहीं चलेगा कब मंजिल पर पहुंच जाएंगे. दीक्षा ने अपने केस में यही किया. शुरू से लेकर अंत तक उन्होंने अपनी यूपीएससी जर्नी को खूब मस्ती के साथ पूरा किया. पढ़ाई की पर पढ़ाई का प्रेशर कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. हमेशा अपना बेस्ट दिया पर पेपर देने से पहले या बाद में उसे पास करने की चिंता नहीं की. गोल समय पर पूरे किए पर गलतियां होने पर उनका शोक नहीं मनाया. नतीजा यह हुआ कि दीक्षा का सेलेक्शन तो हुआ ही साथ ही उनके साक्षात्कार के समय दो बार कक्ष में ऐसा माहौल बना के सब के सब हंस पड़े. और इस प्रकार हंसते-हंसाते दीक्षा बन गईं आईएएस ऑफिसर. आज जानते हैं दीक्षा ने कैसे की यूपीएससी परीक्षा की तैयारी.

दूसरी बार में हुईं चयनित –

एक आईपीएस ऑफिसर की बेटी दीक्षा को हमेशा से सिविस सर्विसेस के क्षेत्र में ही जाना था. मिरांडा हाउस कॉलेज से इंग्लिश में एमए करने वाली दीक्षा को रीडिंग करना बहुत पसंद है. इसके साथ ही उनका दूसरा शगल है जॉगिंग जो उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के दौरान भी जारी रखी. इससे उनका शरीर स्वस्थ रहता था और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए वे निरंतर मेडिटेशन भी करती थी. दीक्षा ने पहला अटेम्पट देने से पहले ठीक से तैयारी नहीं की थी क्योंकि उस समय उनका कॉलेज भी चल रहा था. इस साल वे प्री में भी सेलेक्ट नहीं हुईं. उन्होंने समझ लिया की कमी कहां हैं और कॉलेज से एक साल का ब्रेक लेकर पूरी तरह से यूपीएससी की तैयारी में जुट गईं. पहले उन्होंने सारा स्टडी मैटेरियल इकट्ठा किया जोकि बहुत खास न होकर वे स्टेंडर्ड किताबें थी जो यूपीएससी की तैयारी के लिए बेसिक मानी जाती हैं. दीक्षा का मानना था कि किताबें बहुत होने से कुछ नहीं होता बल्कि जो किताबें हैं, उन्हें ही ठीक से पढ़ना और बार-बार रिवीजन करना जरूरी होता है. प्री और मेन्स की तैयारी को एक साथ शुरू करें लेकिन अपनी क्षमता के अनुसार जब प्री के थोड़े दिन बचें तो केवल उसी पर फोकस करें. क्षमता से मतलब यहां आपको केवल प्री के लिए कितना समय चाहिए ये आप अपने अनुसार तय करें, से है. जैसे किसी के लिए यह 6 महीने होता है तो किसी के लिए 3 महीने. अगला महत्वपूर्ण बिंदु मानती हैं दीक्षा स्वयं पर विश्वास को. वे कहती हैं कभी अपने आपको न किसी से कम मानें न ही किसी से अपनी तुलना करें. अगर किसी ने दस बार रिवीजन किया है और आप चार बार ही कर पाएं तो घबराएं नहीं बल्कि मन में यह भरोसा रखें कि मेरा चार उसके दस से बेहतर है.

 

मेडिटेशन है बहुत जरूरी –

दीक्षा इस परीक्षा में सफल होने के लिए मेहनत के अलावा दूसरा जरूरी बिंदु मानती हैं कैंडिडेट की मानसिक अवस्था को. वे कहती हैं आपका दिमाग जितना शांत होगा आप उतने ही अच्छे तरह से चीजों को ग्रैस्प कर पाएंगे. वे कहती हैं मैं रोज मेडिटेशन करती थी, परीक्षा के दिन भी मेडिटेशन करके ही गयी थी. इससे मेरा दिमाग संतुलित रहा और परीक्षा में मैंने अपना सौ प्रतिशत दिया. दीक्षा कहती हैं प्री, मेन्स और इंटरव्यू तीनों के बाद मुझे पता था कि मैंने अपना बेस्ट दिया है, इसके बाद रिज्ल्ट की परवाह नहीं की. दीक्षा ने प्री और मेन्स दोनों के ही पहले खूब मॉक टेस्ट दिए और जमकर आंसर राइंटिंग प्रैक्टिस की. यही नहीं वे बकायदा टाइमर लगाकर दिन में दो पेपर देती थी ताकि परीक्षा जैसे माहौल से दिमाग को परीचित करा सकें. उन्होंने लिख-लिखकर अभ्यास करना बहुत पहले शुरू कर दिया था. एक समय के बाद वे इतने टेस्ट दे चुकी थी कि उनके मन से परीक्षा और समय पर परीक्षा खत्म करने का भय निकल चुका था. उनका दिमाग इस बात के लिए एकदम तैयार था इसलिए परीक्षा वाले दिन वे न थकीं न हीं एक समय के बाद उनके दिमाग ने काम करना बंद किया. ऐसा ही साक्षात्कार के पहले भी दीक्षा ने किया. उन्होंने अपनी पर्सनेलिटी के ऊपर जो संभावित प्रश्न बन सकते थे, वे प्रश्न और उस समय न्यूज में जो कुछ चल रहा था सबके ऊपर करीब 600 प्रश्न लिख डाले. फिर अपने दोस्तों के साथ बैठकर उन्हें डिस्कस किया ताकि जान सकें कि कहां गलती कर रही हैं, कैसे बोलना है, क्या नहीं बोलना है आदि. इससे उन्हें बहुत मदद मिली. दीक्षा दूसरे कैंडिडेट्स को भी यही सलाह देती हैं कि डिस्कशन जरूर करें, इससे अपनी कमियां पता चलती हैं. अंत में दीक्षा केवल यही कहती हैं कि मैंने अपनी पूरी जर्नी को इतना एंजॉय किया कि कभी बीच में ब्रेक लेने की जरूरत महसूस ही नहीं हुई. वे हर दिन इस बात पर खुश होती थी कि आज मैंने इतना कुछ पढ़ लिया. ऐसे करते-करते साल निकलता गया और अपने हल्के-फुल्के अंदाज के साथ दीक्षा सफलता हासिल करती गईं. वे दूसरे कैंडिडेट्स को यही कहती हैं कि खुद पर भरोसा रखकर सही दिशा में बिना दबाव के प्रयास करें, सफलता जरूर मिलेगी.

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