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उम्र कोई बाधा नहीं! वैज्ञानिक ने 84 साल की उम्र में IIM से हासिल की MBA की डिग्री

IIM Sambalpur: डॉक्टर गिरीष मोहन गुप्ता ने अपने जीवन में नयी सफलता हासिल करते हुए आईआईएम-संबलपुर से एमबीए की डिग्री हासिल की है. पीएचडी के लिए अगली अकादमिक यात्रा की तैयारी भी शुरू कर चुके हैं.

Girish Mohan Gupta: डॉक्टर गिरीष मोहन गुप्ता के लिए उम्र कोई सीमा नहीं बल्कि महज एक संख्या है. 84 साल की उम्र में जब ज्यादातर लोग थक-हार जाते हैं, सेवानिवृत्त व्यक्ति के तौर पर जीवन गुजारते हैं तब वरिष्ठ वैज्ञानिक व उद्यमी ने अपने जीवन में नयी सफलता हासिल करते हुए आईआईएम-संबलपुर से एमबीए की डिग्री हासिल की है. इतना ही नहीं वह प्रबंधन में पीएचडी के लिए अगली अकादमिक यात्रा की तैयारी भी शुरू कर चुके हैं.

'पढ़ाई के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती'

पिछले सप्ताह प्रतिष्ठित संस्थान से डिग्री प्राप्त करने के बाद गुप्ता ने कहा, “पढ़ाई के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. जब तक आप जिज्ञासु और इच्छुक हैं, हर दिन एक नया अवसर आपका इंतजार करता है.” गुप्ता ने 7.4 के प्रभावशाली ‘कल्मीनेटिव ग्रेड पॉइंट एवरेज’ (सीजीपीए) के साथ ‘एमबीए फॉर वर्किंग प्रोफेशनल्स प्रोग्राम’ में अपने बैच में शानदार प्रदर्शन किया. अपनी दूसरी जिम्मेदारियों के बीच क्लास में शामिल होना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन अनुशासन और जुनून ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने कहा, “मैंने कभी भी उम्र को अपने और अपनी जिज्ञासा के बीच नहीं आने दिया. मुझे खेल पसंद हैं, मैं नियमित रूप से तैराकी करता हूं और बैडमिंटन खेलता हूं. फिटनेस और पढ़ाई मेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं.” उन्होंने बताया कि वह अक्सर क्लास के लिए परिसर सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक होते थे. स्वतंत्रता से पहले उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में जन्मे गुप्ता की एक छोटे से शहर से भारत के प्रमुख परमाणु ऊर्जा संस्थान पहुंचने तक की उल्लेखनीय यात्रा दृढ़ संकल्प और आजीवन सीखने की प्रेरणा देती है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की पढ़ाई

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद, वह भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) में उच्च पदों पर पहुंचे, जहां उन्होंने ‘फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों’ से जुड़ी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में योगदान दिया, जो परमाणु अनुसंधान का एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है. गुप्ता ने याद करते हुए कहा, “बीएआरसी में मेरे शुरुआती कामकाज के दौरान, मुझे ब्रीडर रिएक्टरों के लिए सोडियम आधारित उपकरण का डिजायन तैयार करने का काम सौंपा गया था. हमें सीमित संसाधनों के साथ नवाचार करना था, और 'मेक इन इंडिया' की भावना तब भी बहुत जीवंत थी.”

परमाणु अनुसंधान में सफल करियर के बाद, गुप्ता औद्योगिक नवाचार में विविधता लेकर आए और भारतीय रेलवे, रक्षा प्रतिष्ठानों और निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए सुरक्षा व स्वचालित उत्पाद विकसित करने वाले उद्यमों की स्थापना की.

345 से ज्यादा नौकरियां सृजित की

अपनी प्रमुख कंपनी - जेनो इंजीनियरिंग - और बोवा ग्लोबल और एन एफएमसीजी जैसी सहायक कंपनियों के माध्यम से गुप्ता ने 345 से ज्यादा नौकरियां सृजित की हैं, कई पेटेंट दाखिल किए हैं, और विनिर्माण प्रक्रियाओं को स्वदेशी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे सैकड़ों करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है.

गुप्ता को उनके योगदान के लिए 1986 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया था. उन्होंने ‘पंच्ड टेप कंसर्टिना कॉयल’ विकसित किया था, जो 1984-85 में पंजाब में भारत-पाक सीमा पर उग्रवाद के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उच्च सुरक्षा बाड़ उत्पाद था. इस उत्पाद ने सिख आतंकवाद का मुकाबला करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी.

कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया

पिछले कई दशकों से गुप्ता को रक्षा, परमाणु ऊर्जा एवं रेलवे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के शीर्ष नवप्रवर्तकों में से एक माना जाता रहा है. साल 2022 में, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने उनकी कंपनी ‘ग्लोबल इंजीनियर्स लिमिटेड’ को औद्योगिक नवाचार पुरस्कार से सम्मानित किया, और इसे भारत के सबसे नवीन उद्यमों में से एक माना.

इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद गुप्ता का स्वाभाव आज भी बहुत विनम्र है. उन्होंने कहा, “पदवी, पुरस्कार और पदनाम मील के पत्थर हैं, मंजिल नहीं. सच्ची सफलता प्रासंगिक बने रहने और ज्ञान के लिए भूख बरकरार रखने में है.” अब एक और पीएचडी करने की तैयारी कर रहे गुप्ता के कदम धीमे पड़ने के कोई संकेत नहीं हैं. उन्होंने कहा, “अगर आपको सीखने का शौक है, तो जीवन ही आपकी कक्षा बन जाता है. मैं अपनी आखिरी सांस तक सीखना जारी रखना चाहता हूं.” यह कहते हुए उनकी आवाज दमदार थी और आंखों में चमक थी.

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