कौन है आज ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक, जिसने कभी दिलाई थी अंग्रेजों को भारत में एंट्री?
East India Company: क्रांतिकारियों के विद्रोह का धीरे-धीरे कुछ ऐसा असर हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का कारोबार धीरे-धीरे कम होने लगा. विद्रोह के चलते कंपनी का भारत में काम करना मुश्किल हो रहा था.

East India Company: एक दौर था जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) का दबदबा था. यही वह कंपनी थी, जिसने अंग्रेजों के लिए भारत पर करीब 200 साल तक राज करने का रास्ता तैयार किया. 31 दिसंबर, 1600 में इंग्लैंड में इस कंपनी की स्थापना भारत से यूरोप में मसाले, चाय और अनोखी चीजें इम्पोर्ट करने के लिए हुई थी. सबसे पहले 24 अगस्त 1608 में विलियम हॉकिन्स ईस्ट इंडिया कंपनी का जहाज लेकर भारत आया.
भारत के मसालों पर थी अंग्रेजों की नजर
अंग्रेजों के भारत आने का मकसद ही था यहां कारोबार करने की इजाजत लेना क्योंकि उनकी नजर यहां के मसालों और कच्चे माल पर थी. यूरोप में कड़ाके की ठंड में मांस को सुरक्षित रखने और उसकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए मसालों की जरूरत पड़ती थी. साल 1613 में मुगल बादशाह जहांगीर ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को कारोबार करने के लिए सूरत में एक कारखाना लगाने की इजाजत दे दी. 1690 तक कंपनी ने कलकत्ता (जिसे अब कोलकाता के नाम से जाना जाता है) में भी अपनी फैक्ट्री लगा ली थी.
फूट डलवाकर की राजनीति
धीरे-धीरे कंपनी ने भारत में अपना पैर जमाना शुरू कर दिया. भारत में राजाओं के बीच आपस में फूट डलवाकर यहां की राजनीति में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया. एक वक्त ऐसा आया, जब भारतीयों को अपने देश में ही छोटे-छोटे कामों के लिए अंग्रेजों से इजाजत लेनी पड़ी. वह दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य के लिए कहा जाता था कि सूरज कभी ढलता नहीं है, लेकिन यह बात भी सच है कि वक्त बदलते देर नहीं लगती. करीब 200 साल तक हुकूमत चलाने के बाद आखिरकार अंग्रेजों को भी भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
क्रांतिकारियों के आगे पस्त अंग्रेज
हालांकि, इस बीच 1857 में मेरठ में ब्रिटिश सेना में तैनात भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया. क्रांतिकारियों के विद्रोह का धीरे-धीरे कुछ ऐसा असर हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का कारोबार धीरे-धीरे कम होने लगा. विद्रोह के चलते कंपनी का भारत में काम करना मुश्किल हो रहा था और कंपनी भारत से मसालों का यूरोप में नियात नहीं कर पा रही थी.
1857 की बगावत का ही असर था कि 1874 में कंपनी को बंद कर दिया गया. इसके बाद दशकों तक करीब 131 साल तक यह कंपनी बंद पड़ी रही, जिसे साल 2005 में संजीव मेहता ने खरीद लिया. यह देखना दिलचस्प था कि जिस कंपनी की बदौलत अंग्रेजों ने भारत पर सालों तक जुल्म किया, आज उसी की बागडोर एक हिंदुस्तानी के हाथों है.
कौन हैं संजीव आनंद?
संजीव मेहता का जन्म अक्टूबर 1961 में गुजराती जैन परिवार में हुआ. कारोबार को लेकर सूझबूझ उन्हें विरासत में मिली क्योंकि 1920 के दशक में उनके दादा गफूरचंद मेहता का बेल्जियम में हीरे का कारोबार था. 1938 में उनका परिवार भारत लौट आया. संजीव की शुरुआती पढ़ाई मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज से हुई. इसके बाद उन्होंने IIM अहमदाबाद में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्होंने अमेरिका के लॉस एंजेलिस में जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया. 1980 के दशक तक मेहता ने अपने घर से एक्सपोर्ट बिजनेस शुरू कर दिया था. इनमें से 'हगी' हॉट वॉटर बॉटल ने उन्हें पहली कामयाबी दिलाई.
20 मिनट में खरीदे 21 परसेंट शेयर
जब 2005 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शेयरहोल्डर्स ने इसे फिर से शुरू करने की कोशिश की, तो मेहता ने इस मौके का फायदा उठाया. उन्होंने 20 मिनट में कंपनी के 21 परसेंट शेयर खरीद डाले. 2016 में ET को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, मैंने ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले 21 परसेंट शेयर 20 मिनट में खरीदे. एक भारतीय को 400 साल पुरानी इंग्लिश कंपनी खरीदने का प्रोसेस शुरू करने में बस इतना ही समय लगा.
हालांकि, इससे पहले जब इसके लिए बोली लगाने का 18 महीने लंबा प्रॉसेस शुरू हुआ था उस दौरान ब्रिटिश लाइब्रेरी और विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में इसके इतिहास को खूब खंगाला. मेहता ने द टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया था, ब्रांड को मैंने नहीं बनाया, इसे इतिहास ने बनाया है. मैं इसका ट्रस्टी और अगली पीढ़ी के लिए इसका कस्टोडियन हूं. खास बात यह है कि मैं एक हिंदुस्तानी हूं और उसी कंपनी को वापस खरीद रहा हूं, जिसका कभी भारत पर राज हुआ करता था.
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Source: IOCL























