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आर्थिक समीक्षा 2: 7.5 फीसदी की विकास दर मुश्किल, ब्याज दरों में कमी की गुंजाइश

वित्त वर्ष 2016-17 के लिए आर्थिक समीक्षा का दूसरा भाग संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन पेश किया गया. समीक्षा के दूसरे हिस्से में कहा गया है कि साढ़े सात फीसदी की दर से विकास दर शायद मुश्किल है.

नई दिल्ली:  वित्त वर्ष 2016-17 के लिए आर्थिक समीक्षा का दूसरा भाग संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन पेश किया गया. समीक्षा के दूसरे हिस्से में कहा गया है कि साढ़े सात फीसदी की दर से विकास दर शायद मुश्किल है. दूसरी ओर समीक्षा में यह भी माना गया है कि ब्याज दरो में और कमी की गुंजाइश है. मतलब ये हुआ कि विकास दर के अनुमान के ऊपरी स्तर को हासिल करना मुश्किल हो सकता है. आर्थिक समीक्षा का पहला भाग आम बजट के ऐन पहले यानी 31 जनवरी को पेश किया गया था जिसमें वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान विकास दर पौने सात से साढ़े सात फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था.

आर्थिक समीक्षा में विकास दर नीचे की ओर जाने के जोखिम के तीन मुख्य कारण हैं. पहला, अनाज को छोड़ बाकी कृषि उत्पादों के भाव कम होने से खेती बारी से कमाई पर असर. दूसरा, किसानों के लिए कर्ज माफी से राज्यों के खर्च पर असर और तीसरा, बिजली और दूरसंचार कंपनियों के मुनाफे में कमी. इन सब के चलते आर्थिक विकास अपनी पूरी रफ्तार नहीं पकड़ पायी है और अभी भी संभावनाओं से दूर है.

नोटबंदी नोटबंदी को लेकर समीक्षा में कहा गया है कि थोड़े समय में कुछ दिक्कतें आ सकती है, लेकिन लंबे समय में इसका सकारात्मक असर देखने को मिलेगा. ध्यान रहे कि 8 नवबंर 2016 को 500 औऱ 1000 रुपये के पुराने नोट चलन से हटाने के बाद अर्थव्यवस्था पर असर की आशंका की गयी थी. 31 मार्च को खत्म हुए कारोबारी 2016-17 के दौरान विकास दर 7.6 फीसदी से घटकर 7.1 फीसदी रहने के अनुमान से भी इस आशंका को बल मिला था लेकिन आर्थिक समीक्षा की बातों से लगता है कि ये आशंका लंबे समय तक नहीं रहने वाली.

महंगाई दर-ब्याज दर

इस समीक्षा में कहा गया है कि 31 मार्च 2018 को खत्म होने वाले वित्त वर्ष 2017-18 के अंत में खुदरा महंगाई दर चार फीसदी से भी कम हो सकती है. रिजर्व बैंक का अनुमान है कि खुदरा महंगाई दर चार फीसदी के करीब रहेगी. समीक्षा में कहा गया है कि खुदरा महंगाई दर की स्थिति को देखते हुए ब्याज दरों में कमी की गुंजायश है. आपको बता दें कि अगस्त की शुरुआत में रिजर्व बैंक गवर्नर की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट यानी वो दर जिस पर रिजर्व बैंक बहुत ही थोड़े समय के लिए बैंको को कर्ज देता है) में चौथाई फीसदी की कटौती का ऐलान किया था. अक्टूबर 2016 के बाद ये पहली कटौती थी.

नीतिगत ब्याज दर में फेरबदल के लिए खुदरा महंगाई दर एक बड़ा कारक होता है. सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुए समझौते के मुताबिक खुदरा महंगाई दर दो से छङ फीसदी (4% +2%) बीच रखने का लक्ष्य है, जबकि जून के महीने के लिए खुदरा महंगाई दर 1.54 फीसदी रही, यानी लक्ष्य की निचली सीमा से भी कम. इसी के बाद नीतिगत ब्याज दर में कमी करने का दबाव बना.

समीक्षा में एक अच्छी खबर वित्तीय मोर्चे को लेकर भी है, जहां कहा गया है कि केंद्र सरकार अपने वित्तीय खाटे (आमदनी और खर्च के बीच का अंतर) को 3.2 फीसदी के स्तर पर बनाए ऱखने में कामयाब होगी. वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान ये दर 3.5 फीसदी थी.

संरचनात्मक सुधार

विभिन्न संरचनात्मक सुधारों का जिक्र करते हुए समीक्षा में कहा गया है कि वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के अलावा एयर इंडिया का विनिवेश, सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना और कर्ज बाजार की परेशानी (तकनीकी भाषा में जिसे Twin Balance-sheet Problem or TSB कहते हैं. यहां पर कंपनियां घाटे की वजह से कर्ज नहीं चुका पाती, जबकि फंसा कर्ज ज्यादा होने की वजह से बैंक खुलकर कर्ज नहीं दे पाते) से निबटने के उपाय शामिल हैं. नोटबंदी के बाद से टैक्स देने वालों की संख्या 54 लाख बढ़ी है.

कृषि कर्ज माफी

समीक्षा में कृषि कर्ज माफी को लेकर कहा गया है कि अगर पूरे देश में किसानों की कर्ज माफी की बात की जाए तो ये रकम 2.2 से 2.7 लाख करोड रुपये तक पहुंच सकती है. आपको ये भी बता दें कि इस बार अलग-अलग राज्य मसलन, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब अपने स्तर पर कर्ज माफी का ऐलान कर रहे हैं जबकि इसके पहले 2007-08 में केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर पूरे देश के लिए किसानों की कर्ज माफी का ऐलान किया था. समीक्षा में कहा गया है कि किसानों की कर्ज माफी से मांग में 0.7 फीसदी (जीडीपी का) तक कमी आ सकती है.

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