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नहीं भूलेंगे वो भयावह दो महीने, जब कोरोना के कारण उठी थी अपनों की चिता

पहली खबर: भोपाल के भदभदा विश्राम घाट के सचिव मम्तेष शर्मा ने बताया कि 14 जून को उनके श्मशान घाट पर कोरोना प्रोटोकॉल के तहत एक भी अंतिम संस्कार नहीं हुआ. कोरोना से दम तोड़ने वाले स्टैंड पर तीन महीनों बाद ऐसा सन्नाटा रहा.

दूसरी खबर: एमपी के स्वास्थ्य विभाग के 14 जून के कोविड मीडिया बुलेटिन में प्रदेश के 52 जिलों में से सिर्फ तीन जिलों में ही दो अंकों में मरीज दिख रहे थे. बीस जिलों में एक भी मरीज नहीं सामने आये.

तीसरी खबर: एमपी में 14 अप्रैल को एक दिन में ही पांच लाख दस हजार लोगों को कोविड का टीका लगा और वैक्सीनेशन के डेढ़ सौ दिन पूरे होने वाले दिन अब तक एक करोड तैंतालीस से लोगों को टीका लग चुका है.

ऊपर लिखी ये तीन खबरें जानलेवा महामारी कोविड के नियंत्रण में आने की ओर इशारा कर रहीं है. इस साल की शुरुआत से ही कोविड दबे पांव आया या कहें कि वो गया ही नहीं था. मगर उसने कहर बरपाया साल के पिछले दो महीने में. आप क्या ये दो महीने भुला पाएंगे शायद नहीं.

नये वित्त वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल के टेबल कैलेंडर की तारीखें हम पढ ही रहे थे कि मुंबई से कोविड के पैर पसारने की खबरें आने लगीं. मुंबई के पहले हफ्ते में कोरोना से 166 तो आखिरी हफ्ते में 490 लोगों ने दम तोड़ दिया. अप्रैल का महीना खत्म होते होते मुंबई में कोरोना के केस निकले सवा दो लाख से भी ज्यादा और मरने वालों की संख्या थी तकरीबन डेढ़ हजार.

मध्य प्रदेश  महाराष्ट्र से लगा जरूर था और इन खबरों के बाद सरकार ने महाराष्ट्र से आने वाली बसों का आना जाना बंद कर दिया. मगर अप्रैल के दूसरे हफ्ते की शुरू होते ही हालत बेकाबू होने लगी. कोरोना केस आने की रफतार यूं बढी कि दो लाख एक्टिव केस एमपी में सिर्फ अप्रैल में ही हो गए.

पिछले महीने की अपेक्षा ये चालीस फीसदी से ज्यादा की रफ्तार में थी. इन नये आ रहे केस को संभालने के लिए अस्पतालों में बिस्तरों की मारामारी शुरू हो गयी थी. हमारे दोस्तों, रिश्तेदारों के फोन भोपाल, इंदौर और जबलपुर में किसी भी अस्पताल में मरीजों को भर्ती कराने के आने लगे.

पहचान के डॉक्टर फोन तो हमारे उठा रहे थे मगर उनका पहला वाक्य होता था हॉस्पिटल में बेड की बात छोड़ कर कुछ भी बोलो अस्पताल फुल हैं. सच ये था कि कोरोना का कोई भी मरीज दो हफ्ते से पहले ठीक हो नहीं पाता था इसलिये जो एक बार अस्पताल में आ गया तो फिर उसका बेड कम से कम दो हफ्ते के लिए बुक हो जाता था.

जिस भोपाल शहर में मेडिकल आक्सीजन की खपत सिर्फ अस्सी मीट्रिक टन रोज होती थी वो कुछ दिनों में ही दोगुनी हो गयी. उस पर कोढ में खाज ये कि आक्सीजन दूसरे प्रदेशों से ही आती रही है इसलिये आक्सीजन को दूसरे प्रदेश से लाने और अस्पतालों तक पहुंचाने में सरकार लगी रही.

सबसे बुरा होता है किसी मरीज का अस्पताल में दम तोड़ देना. ...और ये हुआ कई जगहों पर. कई बार कभी भोपाल तो कभी इंदौर तो कभी शहडोल अस्पतालों में आयी आक्सीजन की तंगी ने अस्पतालों में हालत मौत के बना दिये और बड़ी मेहनत से अस्पतालों तक लाये गये कोविड मरीज दम घुट कर मर गये.

अस्पताल में विस्तर आक्सीजन के बाद दवा यानि की रामबाण बना दिये गये इंजेक्शन रेमडेसिवीर की मारामारी ने भी इतिहास रच दिया. दवा बाजारों के बाहर रेमडेसिवीर के लिये ऐसी लंबी कतारें लगी जो हमने कभी अपने बचपन में शक्कर और मिट्टी के तेल के लिये राशन की दुकानों के बाहर लगी देखीं थीं.

अस्पताल आक्सीजन और रेमडेसिवीर की तमाम परेशानियों के बीच मई का महीना आते ही मौत ने तांडव दिखाया. जिन रिश्तेदारों और दोस्तों और परिचितों को आप हमने बड़ी मुश्किलों के बीच अस्पतालों में भर्ती कराकर आये थे और उनकी सलामती की रोज भगवान से दुआ मांगते थे. अब उनकी मौत की खबरें आने लगीं थी.

दिल्ली, इंदौर, भोपाल के शमशान घाट अब खबरें उगल रहे थे. रोज यहां तड़के सुबह से देर रात तक जलने वाली चिताओं की तस्वीर अखबारों के पहले पन्नों पर जगह पा रहीं थीं. हम सबने अपने करीबी मित्रों और रिश्तेदारों को खोना शुरू कर दिया था. सुबह उठकर फेसबुक या व्हाट्सएप चेक करने पर सामना किसी बुरी खबर से ही होता था.

15 मई के बाद कोई दिन ऐसा नहीं था जब अपने करीबियों के बिछड़ने का समाचार ना सुनना पड़ा हो. भोपाल में मेरे घर के पचास मीटर की परिधि में एक हफ्ते में चार अपनों ने दम तोड़ा. इतना दुख दर्द शोक पीड़ा का सामना हमने कभी अब तक की जिंदगी में नहीं किया था. मौत के आंकड़े सरकार कुछ और सच्चाई कुछ कह रही थी.

चेन्नई में रहने वाली डाटा जर्नलिस्ट रूकमनी एस ने पिछले साल की जन्म मृत्यु का हिसाब रखने वाले विभाग सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के आंकडों की तुलना कर बताया कि एमपी में पिछले महीनों के मुकाबले अप्रैल मई में तीन गुना ज्यादा मौतें हुई हैं. ये सभी कोरोना से तो नहीं है मगर इनमें से सत्तर से अस्सी फीसदी कोरोना से ही हुी होगी ऐसा अंदाजा है.

दो महीने बाद अब मौतें थम रही हैं. भदभदा घाट में कोरोना प्रोटोकॉल की चिताएं कम जल रही हैं. अस्पताल में कोरोना के मरीज कम आ रहे हैं और कोरोना के टीकाकरण में तेजी आी है. उम्मीद है ये दिन अब लंबे चलेंगे. मगर इसके लिये जरूरी है कि हम ये सोचे कि कोरोना गया नहीं है वो यहीं है हमारे साथ हमारे आस पास हमें और हमारे वालों को फिर से जकड़ने के लिए.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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