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BLOG: तो क्या चीन इतनी आसानी से पाकिस्तान के जाल में फंस जाएगा?

भारत समेत दुनिया के तमाम ताकतवर मुल्कों की निगाह इस वक्त अफगानिस्तान में बनने वाली तालिबान की सरकार की तरफ लगी हुई हैं. लेकिन इस बीच सामने आ रही कुछ खुफिया रिपोट्स पर अगर यकीन करें तो सवाल उठता है कि तालिबान अपने सबसे खास हमदर्द पाकिस्तान की बात सुनेगा या फिर वो दौलत के लालच में चीन के इशारों पर नाचेगा?

अंतराष्ट्रीय कूटनीति के जानकार मानते हैं कि तालिबान दोनों मुल्कों को साथ लेकर चलेगा लेकिन वो ये भी देखेगा कि भारत के साथ फिलहाल दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने में ही उसकी भलाई है, लिहाज़ा वो भारत-पाक संबंधों के बीच आड़े आने से खुद को अभी तो बचाएगा ही. लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान ने चीन से मोटा धन पाने के लिए शतरंज की ऐसी बिसात बिछाई है, जिसके जरिए न सिर्फ भारत को बदनाम किया जा सके बल्कि चीन को ये अहसास भी करा दिया जाए कि सिर्फ पाकिस्तान ही चीन को तालिबान के जरिए इस क्षेत्र की महाशक्ति बना सकता है.

'तालिबान के संपर्क में चीन'
हालांकि कहना मुश्किल है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बुने गए इस जाल में किस हद तक फंसेंगे क्योंकि हर बड़ा मुल्क अपने से छोटे को कोई भी खैरात देने से पहले दस बार सोचता है कि इसके बदले में उसे क्या हासिल होगा. इसलिए सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट चाहे जो कहें, लेकिन चीन न तो इतनी आसानी से पाकिस्तान के झांसे में आना वाला है और न ही तालिबान से रिश्ते बनाने के लिए उसे किसी और की दरकार है क्योंकि वो खुद ही लगातार तालिबानी नेताओं के संपर्क में है. ये अलग बात है कि अमेरिकी सेना के रेस्क्यू आपरेशन के चलते ऐसी खबर मीडिया की सुर्खियों में नहीं है.

'अपने नागरिकों पर हुए हमने से नाराज हुआ चीन'
दरअसल पिछले डेढ़ महीने में पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में चीनी नागरिकों पर तीन जानलेवा हमले हुए हैं जिनमें उनके नौ इंजीनियर मारे गए हैं और एक हमले में दो बच्चों की मौत हुई, जबकि एक चीनी नागरिक जख्मी हुआ है. इन हमलों के बाद चीन का नाराज होना वाजिब था, सो उसने हकीकत जानने के लिए पाकिस्तानी फौज के आला अफसरों को अपने यहां तलब किया. बताते हैं कि उस मीटिंग में चीन की तरफ से साफ शब्दों में ये वार्निंग दे दी गई कि अगर आगे ऐसा कोई हमला हुआ तो समझ लीजिए कि आपको मिल रहे 'दाना-पानी' के बारे में हमें गंभीरता से कुछ सोचना होगा.

'अपने ही जाल में फंस रहा पाकिस्तान'
बस, वहीं पर पाकिस्तान ने अपनी कुटिल चाल खेलते हुए इन हमलों के लिए भारत को कसूरवार ठहराने का राग अलापना शुरु कर दिया. लेकिन सूत्र बताते हैं कि जब चीन ने इससे जुड़ा कोई एकाध सबूत दिखाने के लिए कहा तो पाकिस्तानी जनरल बगले झांकते नज़र आए. वैसे पिछले पांच -छह सालों से पाकिस्तान अक्सर ही चीन के आगे झोली फैलाता रहा है कि उसने जो इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की शुरुआत की है, उसकी देखभाल व सुरक्षा के लिए उसके पास पर्याप्त फंड नहीं है. चीन की कई परियोजनाओं पर आज भी पाक में काम बदस्तूर जारी है. मजे की बात ये है कि चीन भी हमेशा उसकी झोली भरता आया है. लेकिन लगता है कि इस बार पाकिस्तान अपने ही बनाए जाल में उलझता नज़र आ रहा है.

'चीन पाक को पैसा देगा या नहीं' 
खुफिया रिपोर्ट पर अगर भरोसा करें तो चीनी नागरिकों पर हमले के पीछे पाकिस्तान का ही हाथ है. वजह ये है कि इन हमलों के जरिए वो सुरक्षा के नाम पर चीन से ये कहते हुए और पैसा मांगने के काबिल हो जाता है कि जब उसका खज़ाना ही खाली है तो वह चीनी प्रोजेक्टस और उनके नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए पैसा कहां से लाएगा. हालांकि पक्के तौर पर नहीं कह सकते लेकिन खुफिया सूत्र ऐसा दावा करते हैं कि चीन से मिलने वाले फालतू धन के जरिए पाकिस्तान अपने पंजाब प्रांत की सुरक्षा और पुख्ता करने के लिए एक नई डिवीज़न बनाना चाहता है. महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन अब पाकिस्तान की बनाई इस कहानी पर भरोसा करते हुए उसे कितना पैसा देता है या अपना पल्ला ही झाड़ लेता है, ये तो आने वाले वक्त में साफ होगा.

'किस तरफ होगा' 
लेकिन सामरिक मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन के मुताबिक "किसी भी देश की विदेश नीति खुफिया एजेंसी की किसी एक रिपोर्ट के आधार पर तय नहीं होती बल्कि इसका बहुत व्यापक दायरा होता है. अभी तो भारत के लिए सबसे अहम ये है कि अफगानिस्तान में किस तरह की सरकार का गठन होता है. जैसा कि तालिबान के बड़े नेताओं ने दावा किया है कि वे एक समावेशी सरकार का गठन करेंगे, अगर ऐसा होता है तब भारत के लिए ये बेहतर स्थिति होगी. उस सूरत में उनका झुकाव पाकिस्तान व चीन के मुकाबले भारत की तरफ ज्यादा होगा क्योंकि उन्होंने भारत के बलबूते ही पिछले 20 साल में अफगानिस्तान को बदलते और तरक्की करते हुए देखा है." 

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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