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उत्तराखंड और मणिपुर में आखिर क्यों है बीजेपी इतनी मुश्किल में ?

ABP News CVoter Survey: पांच राज्यों की 18 करोड़ से ज्यादा जनता आगामी 10 मार्च को तमाम राजनीतिक दलों की अगले पांच साल की किस्मत का फैसला सुनाने वाली है. लेकिन उससे पहले लोगों के मूड में भी लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है, जो पार्टियों के सियासी तापमान में भी खासा उतार-चढ़ाव ला रहा है. चुनाव से पहले लोगों का मूड भांपने के लिए एबीपी न्यूज़-सी वोटर ने अब तक का सबसे बड़ा सर्वे करके ये पता लगाने की कोशिश की है कि कहां, किसकी सरकार बन सकती है.

12 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच हुए इस सर्वे में चुनावी राज्यों की सभी 690 विधानसभा सीटों पर तकरीबन 89 हजार से ज्यादा लोगों की राय ली गई है, जिसके नतीजे दिलचस्प होने के साथ ही कुछ चौंकाने वाले भी हैं. लोगों का ये मूड अभी का है, लेकिन अपना वोट देते वक्त वे मशीन का कौन-सा बटन दबाएंगे, ये तो कोई नजूमी भी दावे के साथ नहीं बता सकता. लेकिन सर्वे के जो अनुमान सामने आए हैं, उसके मुताबिक सीटों के लिहाज़ से सबसे बड़े सूबे यूपी और सबसे छोटे राज्य गोवा में बीजेपी आसानी से दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है. लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और पूर्वोत्तर की 'मणि' कहलाने वाले मणिपुर में उसे कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है, लिहाज़ा वहां एन वक़्त पर कोई भी उलटफेर देखने को मिले, तो हैरानी नहीं होनी चाहिये. लेकिन इस सर्वे के मुताबिक कांग्रेस के लिए बुरी खबर ये है कि उसका मजबूत किला पंजाब अब उसके कब्जे में नहीं रहने वाला और वहां आम आदमी पार्टी अपना परचम लहराने की तैयारी में है.

वैसे यूपी में बीजेपी की सरकार तो आसानी से बनती दिख रही है, लेकिन पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के दावे के उलट इस बार वो 300 का आंकड़ा छूती नहीं दिख रही है. इसका सियासी मतलब यही निकाला जाएगा कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इन पांच सालों में अपने जनाधार को दोबारा जिंदा करके बीजेपी की रफ्तार पर 'स्पीड ब्रेकर' बनने का काम किया है.

पांच साल पहले बीजेपी अपने बूते पर 312 सीटें लाई थी. लेकिन इस बार उसे 223 से 235 सीटें मिलने का अनुमान है. यानी मोदी-योगी के जादुई असर में कुछ कमी आई है, जिसे समाजवादी पार्टी अपने पक्ष में भुनाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. सपा सत्ता बनाने से दूर है और उसकी झोली में 145 से 157 सीटें आ सकती हैं. लेकिन सियासी कसौटी पर इसे खराब प्रदर्शन इसलिये नहीं कह सकते कि पिछली बार वो महज़ 47 सीटों पर सिमटकर रह गई थी.

दलितों की सबसे बड़ी ताकत मानी जाने वाली मायावती की बीएसपी को महज़ 8 से 16 सीटें मिलने का अनुमान है, जो हैरान करने के साथ ही ये हक़ीक़त भी बताता है कि 2012 और 2017 में पार्टी से छिटककर बीजेपी या सपा में गया उसका वोट बैंक इस बार भी उसके पास वापस नहीं लौट रहा है. दूसरी बड़ी हैरानी ये है कि जिस कांग्रेस की जमीन मजबूत करने के लिए प्रियंका गांधी पुरजी ताकत लगा रही हैं, उसे इस सर्वे में महज़ 4 से 8 सीट मिलने की उम्मीद बताई गई है.

लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की जनता की राय थोड़ी चौंकाने वाली है. वह इसलिये कि वे सरकार तो बीजेपी की चाहते हैं लेकिन कांग्रेस नेता हरीश रावत मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी पहली पसंद बने हुए हैं. हरीश रावत को 37 फीसदी लोग सीएम पद पर देखना चाहते हैं तो वहीं पुष्कर सिंह धामी को 29 फीसदी, अनिल बलूनी को 18 फीसदी, कर्नल कोठियाल को 9 फीसदी और अन्य को 7 फीसदी लोग सीएम देखना चाहते हैं.  

हालांकि उत्तराखंड में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर दिख रही है, इसलिये आख़री वक़्त पर यहां किसी भी तरह के उलटफेर होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. सर्वे के मुताबिक, उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 31 से 37 सीटों के बीच रह सकती है. जबकि कांग्रेस 30 से 36 सीटें लाने के अनुमान के साथ उसे कड़ी टक्कर देते दिख रही है., आम आदमी पार्टी 2 से 4 सीटें और अन्य के खाते में 0 से 1 सीट मिल सकती है.

बात करते हैं पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की जहां विधानसभा की 60 सीटें हैं. फिलहाल क्षेत्रीय दलों के सहयोग से वहां बीजेपी सत्ता में है, लेकिन इस बार वहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होता दिख रहा है. वोट प्रतिशत के लिहाज से देखें, तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच महज दो फीसदी का अंतर रहने का ही अनुमान है. बीजेपी को 35 प्रतिशत तो कांग्रेस को 33 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. जबकि प्रमुख क्षेत्रीयन पार्टी एनपीएफ को 11 और अन्य को 21 प्रतिशत तक वोट मिल सकते हैं. बात अगर सीटों की करें तो बीजेपी को 23 से 27 सीट मिल सकती हैं. जबकि कांग्रेस 22 से 26 सीटें जीत सकती है. यानी दोनों के बीच कड़ी टक्कर है. हालांकि एनपीएफ को 2 से 6 सीट मिलने का अनुमान है, जबकि 5 से 9 सीटें अन्य के खाते में जा सकती हैं. कुल मिलाकर वहां सता की चाबी छोटे क्षेत्रीय दलों के हाथ में रहने में रहने की उम्मीद है, इसलिये कह सकते हैं की अगली सरकार बनाने में वे 'किंग मेकर' की भूमिका में रहेंगे.

सी वोटर के इस सर्वे के मुताबिक, समंदर वाले प्रदेश गोवा में इस बार फिर वहां के लोग भगवा लहराने के ही मूड में दिखते हैं. यहां की कुल 40 सीटों में से बीजेपी को 19 से 23 सीटें मिल सकती है. यानी बीजेपी बगैर किसी सहयोगी के अपने बूते ही सरकार बना सकती है. लेकिन कांग्रेस को वहां भारी नुकसान होता हुआ दिख रहा है. कांग्रेस को सिर्फ 4 से 8 सीटें मिलने का ही अनुमान है. पर, पहली बार चुनावी मैदान में कूदने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 5 से 9 सीटें मिलने का अनुमान है. अगर यही नतीजे रहे, तो आप कांग्रेस को पीछे छोड़कर वहां मुख्य विपक्षी पार्टी बन जायेगी. क्षेत्रीय दल  MGP+ के खाते में 2 से 6 सीटें जबकि अन्य को 0-4 सीटें मिल सकती है.

दरअसल, पांच साल पहले भी गोवा की सत्ता कांग्रेस के हाथ में आते-आते फिसली थी. वह 16 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई थी लेकिन वो साधारण बहुमत से पांच सीट दूर थी. गोवा में विधानसभा की कुल 40 सीटें हैं. जबकि बीजेपी ने 13 सीटें लाने के बावजूद एमजीपी के 3 और अन्य 7 विधायकों के समर्थन से अपनी सरकार बना ली थी. हालांकि बीजेपी को ये आशंका सता रही है कि अगर आप ने वहां अच्छा प्रदर्शन कर दिखाया, तो वह उसकी सरकार बनाने की राह में रोड़ा बन सकती है.

पंजाब की बात करें, तो वहां हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक कोई चुनावी मुद्दा बनता नहीं दिख रहा है. सर्वे के अनुमान बताते हैं कि कांग्रेस के इस किले पर इस बार आम आदमी पार्टी का कब्ज़ा हो सकता है. 117 सीटों वाली विधानसभा में उसे 52 से 58 सीटें मिलती दिख रही हैं, यानी बहुमत से सिर्फ एक सीट कम. कांग्रेस को 37 से 43 सीटें मिलने का अनुमान है. किसान आंदोलन के जरिए सत्ता में वापसी का अरमान पाले बैठे अकाली दल का सपना पूरा होता नहीं दिखता. उसके खाते में 17 से 23 सीटें आ सकती हैं. जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरी बीजेपी को महज़ 1 से 3 के बीच सीटें आने का अनुमान है.

लेकिन अगर सीएम के रूप में पहली पसंद की बात करें, तो सबसे अधिक 29 फीसदी लोग चरणजीत सिंह चन्नी को ही दोबारा मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. दूसरे नंबर पर आप के सांसद भगवंत मान हैं, जिन्हें 23 प्रतिशत लोग सीएम पद पर चाहते हैं. अरविंद केजरीवाल को 17 फीसदी और सुखबीर सिंह बादल को 15 प्रतिशत लोग इस पद के लिए अपनी पहली पसंद बताते हैं. जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह को महज़ 6 फीसदी लोग ही दोबारा इस पद पर चाहते हैं.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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