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सरकारी गलतियों की चूक का कौन कसूरवार? आशियाने पर बुलडोजर और 50 हजार लोगों के घरों पर लटकी तलवार

जितेन्द्र वेलोरिया, नई दिल्ली: उतराखंड के हल्दानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद से गफूर बस्ती में लोग प्रदर्शन पर उतारु हैं. कड़ाके की ठंड के बीच लोग कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं. रेलवे की सरकारी जमीन से सालों पुराना अतिक्रमण हटाया जाएगा. रेलवे की इस 70 एकड़ जमीन पर 4400 सौ परिवार और करीब 50 हजार से अधिक अवैध लोगों के घरों को हटाने के लिए रेलवे प्रशासन और पुलिस  टीम को जमीन खाली कराने के लिए कोर्ट ने आदेश दिया है.

सवाल उठ रहा है कि वर्षों से जो लोग वहां पर रह रहे हैं, क्या उसका आशियाना हटा दिया जाएगा? लोग घर उजड़ने के डर से सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर वे जाएं तो कहां जाएं. गफूरबस्ती, ढोलकबस्ती और इंदिराबस्ती के लोग का भविष्य अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर टिका है.  

जब आप रेल की यात्रा करते होंगे तो आप ने देखा होगा कि रेल की पटरियों के दोनों तरफ बस्ती होती है. बिल्कुल ऐसे ही सालों पहले हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा करके हजारों लोग बस गए. इस जमीन पर एक दो परिवार नहीं बल्कि 50 हजार परिवार रहते है. जिसमें एक बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है. यहां के लोग कह रहे हैं कि सरकार सर्दी के मौसम में जमीन खाली करा रही है. हम कहा जाएंगे अपने घरों को छोड़ कर हम इस जमीन पर सालों से रह रहे है.

जिसके बाद गफूर बस्ती में शाहीन बाग की तरह एक आंदोलन शुरू हो गया है. इस आंदोलन में बच्चे और महिलाएं रो-रोकर कह रहे हैं कि उन से जमीन खाली नहीं कराया जाए और उन के घरों पर बुलडोजर नहीं चलाए जाए. कई मकानों पर प्रशासन का बुलडोजर चल चुका है. हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाओ अभियान की शुरुआत हो चुकी है. इस के विरोध में बड़ी संख्या में लोग सड़क पर प्रर्दशन कर रहे है. इस 70 एकड़ जमीन से करीब 50 हजाल लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है. जिनको हटाने के लिए उतराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया है.

इस रेलवे की जमीन पर ज्यादा संख्या में मुस्लिम परिवार रहते है.अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. उतराखंड में बीजेपी की सरकार है. विपक्ष लगातार प्रदेश सरकार पर हमला कर रहा है. कोई सरकार इतनी कठोर कैसे हो सकती है. वहीं इस मामले में एआएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने भी अतिक्रमण हटाओं अभियान के खिलाफ बीजेपी पर हमला बोल दिया है और इस मामले पर कांग्रेस ने भी पीडितों का पक्ष लिया है. 

हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का खिलाफ हाईकोर्ट ने फैसला दिया है. इस फैसले से 70 एकड़ जमीन पर बने अवैध घरों को हटाना है. रेलवे लाइन से सटे 2.2 किलोमीटर में फैले इस इलाके में 50 हजार से अधिक परिवार और 20 मस्जिदें 9 मंदिर और स्कूल भी बने हुए है. यहां के लोग मांग कर रहे हैं कि सरकार उनको कही और बसाए वो अपने बच्चों को लेकर ठंड में कहां जाएंगे.

वहीं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की भी एंट्री हो चुकी है. गुरुवार को इस मामले की सुनवाई देश की सर्वोच्च अदालत में होगी. दिल्ली में 2010 में जब कॉमनवेल्थ गेम्स हुए थे. तो दिल्ली में यमुना के दोनों किनारों पर बस्तियां बसी हुई थी और सरकार को वो जमीन चाहिए थी. दिल्ली सरकार ने उस समय उन लोगों को दूसरी जगह जमीन देकर बसाया था.

दिल्ली रेलवे स्टेशन के आसपास वाले इलाकों को देख लीजिए और बिहार में पटना, गया रेलवे स्टेशन को देख लीजिए आस-पास की जमीन पर लोग कब्जा कर लेते हैं. लेकिन अगर भविष्य में कोई सरकारी प्रोजक्ट आता है तो उन लोगों को जमीन खाली करनी होती है.


सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कई आदेश हैं. एसएलपी नंबर 3109/2011 जगपाल सिंह बनाम पंजाब स्टेट में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में भारत सरकार के प्रधान सचिव को ये आदेश दिया कि, सभी राज्य सरकारी जमीन को अतिक्रमण हटाने का आदेश जारी करें. ये फैसला देश के सभी राज्यों में चल रहा है. इसलिए राजनीति करने वाला ये कहकर नहीं बच सकता है कि, ये एक वर्ग विशेष के साथ जोर जबरदस्ती हो रहा है. इसलिए इसमें कोई संदेह की गुंजाइश नहीं कि अतिक्रमण हटाने मे किसी वर्ग विशेष के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

कोर्ट भावनाओं से नहीं कानून के अनुसार चलता है. ऐसे मामलों में भले ही राजनीति हो सकती है. लेकिन अदालतें सिर्फ इंसाफ और फैसला करती हैं. उत्तराखंड सरकार चाहे तो गफूर बस्ती के लोगों को कहीं दूसरी जगहों पर आवास योजना के तहत जमीन अलॉट कर सकते हैं. लेकिन रेलवे योजना को कहीं दूसरी जगह पर नहीं ले जाया जा सकता है. रेलवे की खाली पड़ी जमीन भविष्य में विस्तार के लिए रखी जाती है. लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि, लोग अवैध कब्जा कर लेते हैं और जब अवैध कब्जा को हटाया जाता है. तो इसी तरह से प्रदर्शन होता है जो गलत है. क्योंकि सरकारी जमीन पर कब्जा कोई नहीं कर सकता है.

[लेखक जितेन्द्र वेलोरिया कानून के जानकार हैं और इस लेख में लिखी गई बातें पूरी तरह से उनकी निजी राय है]

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