भारतीय राजनीति में वो रथयात्राएं जिसने सरकारें बदल दी

उत्तर प्रदेश समेत देश के कुल पांच राज्यों में चुनाव हैं. और चुनाव में जीत के लिए ज़रूरी है चर्चा, खर्चा और पर्चा. तभी तो चर्चा में बने रहने के लिए इन दिनों उत्तर प्रदेश के दो बड़े नेता अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव रथयात्राओं पर निकले हैं. देश की राजनीति में इस तरह की राजनीतिक रथयात्राओं का अहम योगदान रहा है. कुछ तो रथयात्राएं ऐसी हैं, जिन्होंने राज्यों की सरकार बदल दी, तो एक रथयात्रा ऐसी भी है, जिसने देश की ही सरकार बदल दी थी.
देश की राजनीति में रथयात्राओं को समाहित करने का श्रेय अगर किसी एक आदमी को जाता है, तो वो हैं हरियाणा के कद्दावर नेता और देश के उप प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवी लाल. वो साल 1988 का था. तब वीपी सिंह राजीव गांधी सरकार से अलग हो चुके थे और जनमोर्चा बनाकर राजीव गांधी के बोफोर्स घोटाले के खिलाफ पूरे देश में घूम रहे थे. इस दौरान उन्हें साथ मिला था चौधरी देवीलाल का, जो एक मेटाडोर में सवार होकर किसानों के बीच जा रहे थे और अपनी बात रख रहे थे. चौधरी देवीलाल जिस मेटाडोर में सवार थे, उसे नाम दिया गया था क्रांति रथ. और इस यात्रा को नाम दिया गया था क्रांति रथ यात्रा.
अगस्त, 1988 में इस यात्रा का समापन उत्तर प्रदेश के कानपुर के फूलबाग मैदान में होना था. लेकिन वहां ये यात्रा खत्म नहीं हुई. बल्कि यूं कहें कि वहीं से यात्रा शुरू हुई तो ये ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि तब देवीलाल ने कहा कि देश में इस क्रांति रथ यात्रा का समापन भले ही हो गया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में ये यात्रा चलती रहेगी. और इस यात्रा की जिम्मेदारी संभालेंगे मुलायम सिंह यादव. ये कहकर चौधरी देवीलाल ने मुलायम सिंह यादव को उस मेटाडोर की चाबियां थमा दीं. इस क्रांति रथ यात्रा के नतीजे भी अपने नाम की तरह क्रांतिकारी रहे. पांच साल पहले 414 लोकसभा सीटें जीतकर इतिहास रचने वाले राजीव गांधी 1989 के लोकसभा चुनाव में महज 197 सीटें ही जीत सके. देश में सरकार बदल गई. उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ. वहां भी जनता दल को ही जीत मिली और नारायण दत्त तिवारी को हटाकर मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
लेकिन रथयात्रा को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने का श्रेय अगर किसी एक आदमी को देना होगा, तो वो हैं लाल कृष्ण आडवाणी. वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने और मंडल कमीशन की सिफारिशों के लागू होने के बाद सरकार को समर्थन दे रही बीजेपी ने एक और रथयात्रा निकाली. इसे नाम दिया गया था स्वर्ण जयंती रथ यात्रा. हालांकि इस रथयात्रा का मकसद राम मंदिर निर्माण था लेकिन इसने पूरे देश की राजनीति को कैसे बदला, ये किसी से छिपा नहीं है.
25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लाल कृष्ण आडवाणी एक मेटाडोर पर सवार हुए. इसे स्वर्ण जयंती रथ का नाम दिया गया. इसे 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था जहां कार सेवा होनी थी. लेकिन इससे पहले ही बिहार के समस्तीपुर में लालू यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. रथयात्रा तो अधूरी रही ही, वीपी सिंह सरकार का कार्यकाल भी अधूरा रह गया. क्योंकि आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. हालांकि बीजेपी को इसका फायदा उत्तर प्रदेश चुनाव में मिला और 1991 के विधानसभा चुनाव में जीतकर कल्याण सिंह पहली बार यूपी में बीजेपी के मुख्यमंत्री बने.
आडवाणी ने इस रथयात्रा के सात साल के बाद 1997 में फिर से एक रथयात्रा निकाली. इसका भी नाम रखा गया स्वर्ण जयंती यात्रा. ये यात्रा देश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर निकाली गई थी, लेकिन इसने अगले ही साल 1998 में बीजेपी को सत्ता में ला दिया. हालांकि 13 महीने बाद ही सरकार गिर गई लेकिन फिर 1999 में हुए चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार भी बनी और पांच साल तक चली भी. वैसे साल 2002 में अपने पिता मुलायम सिंह यादव के नक्शे कदम पर चलते हुए अखिलेश यादव ने साल 2002 के विधानसभा चुनाव के पहले क्रांति रथ यात्रा निकाली थी. 31 जुलाई 2001 को शुरू हुई इस यात्रा ने समाजवादी पार्टी को यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया था. तब सपा को 143 सीटें मिली थीं. हालांकि सपा सरकार नही बना पाई लेकिन 1 साल बाद दूसरी पार्टियों के विधायकों को तोड़कर सत्ता में आ गई.
इसके ठीक 10 साल बाद दो और रथयात्राओं ने देश की सियासत बदली. एक रथयात्रा यूपी की थी, जिसकी अगुवाई फिर से अखिलेश यादव ने की थी. इस बार भी उन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले 12 सितंबर 2011 को यात्रा शुरू की और पूरे यूपी में प्रचार किया. नतीजा ये हुआ कि 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिला और अखिलेश यादव पहली बार सीएम बने. वहीं दूसरी रथयात्रा गुजरात में हुई, जिसकी अगुवाई तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र भाई मोदी ने की थी. 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले मोदी ने अपने 10 साल के काम का प्रचार करने के लिए विवेकानंद युवा विकास यात्रा शुरू की थी. इसका भी नतीजा सकारात्मक रहा था और मोदी फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. 2014 में वो देश के प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे.
अब एक बार फिर से अखिलेश यादव ने रथयात्रा शुरू की है और इसे समाजवादी विजय रथ नाम दिया गया है. वहीं उनके चाचा शिवपाल यादव ने सामाजिक परिवर्तन यात्रा शुरू कर दी है. ऐसे में क्या इन दोनों रथयात्राओं से अखिलेश-शिवपाल को वो सियासी फायदा मिल पाएगा, जैसा पिछली रथयात्राओं में मिलता रहा है, इसका जवाब तो चुनावी नतीजे ही दे पाएंगे.
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