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हमास और फिलीस्तीन के बीच फर्क समझना है बेहद जरूरी, भारतीय पीएम ने नहीं बदला है कूटनीतिक स्टैंड
![हमास और फिलीस्तीन के बीच फर्क समझना है बेहद जरूरी, भारतीय पीएम ने नहीं बदला है कूटनीतिक स्टैंड There is a difference between Hamas and Palestine, no need to worry about geopolitics हमास और फिलीस्तीन के बीच फर्क समझना है बेहद जरूरी, भारतीय पीएम ने नहीं बदला है कूटनीतिक स्टैंड](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/10/21/ecd1de7b09c121d7b723dfddbeacb7f71697870309529702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
इजरायल और हमास के बीच युद्ध आज 15वें दिन में प्रवेश कर गया है. जब हमास ने इजरायल पर हमला किया और अमानवीयता की हदें पार करते हुए इजरायली सैनिकों के साथ नागरिकों की हत्या की, उसके बाद से ही इजरायल ने पलटवार किया और आज तक हमले लगातार चालू हैं. इस बीच अमेरिका ने छह युद्धपोत इजरायल की सहायता के लिए उतार दिए हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी इजरायल जा चुके हैं. इस बीच यमन और सीरिया से भी अमेरिकी ठिकानों पर कुछ हमले हुए हैं. दुनिया की चिंता है कि युद्ध को फैलने से कैसे रोका जाए. मानवीय सहायता के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलीस्तीन अथॉरिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास से फोन पर बात भी की है.
हमास और फिलीस्तीन के बीच है फर्क
सबसे पहले तो चीजों को सही ढंग से समझने की जरूरत है. जिस रोज हमास का हमला इजरायल हुआ था, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने उसकी निंदा की थी और स्पष्ट कहा था कि भारत आतंक के मुद्दे पर अपना स्टैंड बिल्कुल साफ रखता है. वह आतंक के खिलाफ है. अभी प्रधानमंत्री मोदी ने फिलीस्तीन अथॉरिटी के प्रेसिडेंट से बात की है, जो हमास से अलग हैं. भारत उसका आधिकारिक तौर पर मान्यता देता है. साथ ही, भारत का बिल्कुल ये रुख रहा है कि इजरायल और फिलीस्तीन की समस्या का हल टू-नेशन सिद्धांत में ही निकले. यीनी, फिलीस्तीन एक अलग स्टेट के तौर पर पूरा हो. भारत के प्रधानमंत्री ने 19 अक्टूबर को राष्ट्रपति महमूद अब्बास से जो बात की है, वह एक अस्पताल पर हुई बमबारी के बारे में था, जिसमें 500 लोग मारे गए. अभी जो सबूत आ रहे हैं, उससे पता चला है कि हमास ने ही उस हॉस्पिटल पर रॉकेट चलाया था या गलती से चल गया था. इसमें कोई बहुत अलग बात नहीं है. हॉस्पिटल पर अटैक करना, नागरिकों पर हमला करना, ये हमास के ही द्वारा हुआ है. भारत का साफ स्टैंड है कि हम आतंक को बर्दाश्त नहीं करेंगे. हमास साफ तौर पर एक आतंकी संगठन है. पीएलए यानी अल-फतह जो समूह है, जो फिलीस्तीनी अथॉरिटी की सत्ता पर काबिज है, वह डेमोक्रेसी और दूसरी उससे जुड़ी चीजों में यकीन रखता है. इस फर्क को समझना बहुत जरूरी है.
भारत का एक ही स्टैंड
हमारे देश की सरकार फिलीस्तीन को मान्यता देती है. अल-फलह यानी पीएलओ को भारत मान्यता देता है. पीएलओ और हमास के बीच भी लड़ाई चल रही है. 2008 के बाद वेस्ट बैंक अल-फतह के पास है और गाजा पट्टी है हमास के पास. इजरायल भी अल-फतह और फिसीस्तीन को मान्यता देती है. वह भी उसी से बात करता है. आगे के समझौते हों या शरणार्थी की समस्या इजरायल भी अल-फतह से ही बात करता है. हमास ने 2008 के बाद गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया है और इस्लामिक आइडेंटिटी के नाम पर ही बैठा है. अल-फतह को आप सेकुलर और डेमोक्रेटिक, लेफ्ट-ओरिएंडेड कह सकते हैं. तो, भारत और दुनिया के तमाम देश अल-फतह और पीएलओ को ही मान्यता देते हैं. हमास की विचारधारा तो आइसिस और अल-कायदा की है. मुस्लिम ब्रदरहुड भी मिस्र में चुनाव जीता था, तो केवल चुनाव जीतने से कोई डेमोक्रेटिक नहीं हो जाता, आतंक की भाषा बोलना बंद नहीं कर देता है. आइसिस हो, अल-कायदा हो, तालिबान हो या हिजबुल्ला हो, ये सभी आतंकी ही हैं. हॉस्पिटल पर हमला भी हमास ने ही किया है, तो इसी से समझ आता है कि आतंक से बात करना सिवाय आत्मघाती कदम के कुछ नहीं है.
भारत की है हालात पर नजर
यह संघर्ष जो है, वह हमास और इजरायल के बीच है, यह बात समझने की है. यह इजरायल और फिलीस्तीन का संघर्ष नहीं है. अगर फिलीस्तीन इसमें शामिल होता तो वेस्ट बैंक में भी संघर्ष होता. वह तो इसमें है ही नहीं. वार्ता तो कई स्तरों पर चल ही रही है. भारत का सीधा स्टैंड है कि हम टू स्टेट चाहते हैं, फिलीस्तीन एक संप्रभु राष्ट्र बने, लेकिन समस्या अल-फतह और हमास के बीच है. हमास कह रहा है कि वह मुख्य भूमिका में है, अल-फतह कह रहा है कि वह मुख्य स्टेकहोल्डर है. हमास तो बात भी नहीं करना चाहता. वह वॉयलेंस के जरिए इजरायल को ही हटा देना चाहता है. भारत चाहता है कि इस संघर्ष का बातचीत से ही समाधान हो. जहां तक मध्यस्थता की बात है, तो फिलीस्तीन और इजरायल के बीच मध्यस्थता हो सकती है, लेकिन हमास का क्या करेंगे...वह जो गाजा पट्टी पर कब्जा करके बैठा है, घनी आबादी से अपनी आतंकी गतिविधियां चलाता है, नागरिकों को बरगलाता है. इसीलिए, देखने की बात है कि ईरान और हिजबुल्ला को छोड़कर किसी भी मुस्लिम देश ने भी हमास का सपोर्ट नहीं किया है. मध्य पूर्व के देश जानते हैं कि अगर हमास कल को सत्ता में आ गया तो वह इजिप्टज में भी गड़ब़ड़ करेगा, जॉर्डन में भी करेगा. जहां तक टॉक्स की बात है, नेगोशिएशन की बात है, तो भारत सरकार अब क्या कर रही है, ये तो सरकार ही जाने. एक बात तय कही जा सकती है कि भारत का स्टैंड जो था, वही है और वही रहेगा.
वैसे भी, हमें याद रखना चाहिए कि यह संघर्ष सदियों पुराना है. अभी का जो संघर्ष है, वह भी 70 साल से अधिक का है. पूरे मिडल ईस्ट में इजरायल एक मात्र देश है, जो मुस्लिम नहीं है, डेमोक्रेटिक है और उन सारे मूल्यों को अपनाता है, जो पश्चिमी देशों के है. युद्ध तो बहुत जल्दी खत्म होने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]
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