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BLOG: ...जब मैंने यमराज को कोरोना पर सवार होते आते देखा

भोपाल के कोरोना पॉजिटिव पत्रकार की कहानी

वो शायद एक तारीख की दोपहर होगी जब मैं खबर की तलाश में कुछ दोस्तों के साथ पुलिस कंट्रोल रूम गया. एक सीएसपी के पास बैठकर एसएसपी का इंतजार करने लगा. वहां चाय आयी और हम सबने चाय पी. दो दिन बाद खबर आयी कि वो सीएसपी साहब कोरोना की चपेट में आ गये. ये खबर सुनते ही दिल बैठ सा गया. लगा कि ऐसा ना हो वहां से हम भी कोरोना लेकर घर आ गये हों.

मेरा शक सही निकला तीन तारीख को हल्की सी हरारत बदन में हुई पर ये क्या रात में बुखार भी आ गया. अब दिमाग में घंटी बजी और मैंने अपने परिवार को सारा किस्सा बताया और खुद को अलग कमरे में कैद कर लिया. अगले ही दिन जेपी अस्पताल में ढाई घंटे लाइन में लगकर कोरोना टेस्ट के लिये सैंपल भी दे आया और घर पर सतर्कता बरतने लगा. अकेले कमरे में सोना, बच्चों और परिवार से दूर रहना, खाना दरवाजे से नीचे से लेने लगा और भगवान के नाम के साथ ही इंतजार करने लगा टेस्ट की रिपोर्ट का.

आठ तारीख को कमिश्नर मैडम का फोन आता है वो बतातीं हैं कि तुम्हारा कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया है बताओ कहां भर्ती होना चाहोगे एम्स, बंसल या फिर चिरायू. मगर ये खबर सुनने को मैं तैयार था इसलिये फोन सुनते सुनते ही घर से नीचे आ गया और अगला फोन घर पर किया कि नीचे तीन कपड़े रखकर मेरा बैग फेंक दो. मैं एडमिट होने अस्पताल जा रहा हूं. घर वाले हैरान परेशान मैंने कहा कोई सवाल नहीं करो जो कह रहा हूं करते जाओ और अगले एक घंटे बाद में बंसल अस्पताल के कमरे में था अकेला. खबर फैल गयी थी कि मुझे करोना हो गया है. दोस्तों के सांत्वना भरे फोन आने लगे थे और मैं हंस कर जबाव दे रहा था मगर अंदर से तो डरा हुआ था कि जाने क्या कर बैठे ये बीमारी जिसका कोई इलाज ही नहीं है.

एक दो दिन बाद ही मैं बंसल अस्पताल से चिरायू अस्पताल आ गया था जो कोरोना के इलाज के लिये ही था. यहां मेरे जैसे तीन सौ मरीज थे कोरोना के. आते ही मुझे बड़ा सदमा मिला. पहली जांच में ही सामने आ गया कि मेरे फेफड़ों तक कोरोना पहुंच गया है. आमतौर पर लोगों के गले तक ही ये वायरस अटैक करता है मगर मेरे फेफड़ों तक ये प्रवेश कर गया था अब क्या होगा यही सवाल था मेरे सामने, डॉक्टर ने सलाह दी घबराओ नहीं. बस खूब पानी पियो और चौबीस घंटे में से अठारह घंटे ऑक्सीजन लो. मरता क्या नहीं करता दिन भर में सात आठ बोतल पानी की पीता और पूरे वक्त ऑक्सीजन का मास्क नाक में लगाकर अपने घंटे गिनता.

कोरोना वायरस कार्बन मोनोक्साइड में पनपता है इसलिये ऑक्सीजन उसकी दुश्मन है तो पानी शरीर से सारी बीमारी और गंदगी को बाहर निकाल देता है. डॉक्टर ने अठारह घंटे कहा मैं उन्नीस घंटे ऑक्सीजन लेता. मेरे बिस्तर के आसपास लगी मशीनों से मेरी पहचान हो गयी थी. नाक में ऑक्सीजन आक्सीमीटर से जाती थी तो पल्स मीटर से पल्स देखता. दिन भर किसी का ख्याल नहीं आता बस यही ऑक्सीजन के घंटे गिनता, खाना खाता और लेटा रहता. फोन पर बात करनी तकरीबन बंद ही थी. कभी कभार पापा से बात करता या फिर दोस्तों से पत्नी बहन और बच्चों से फोन पर बात बिलकुल बंद.

उनसे बात करने में डर लगता था भावुक हो जाता था वो भी और मैं भी. बच्चे पूछते पापा कब आओगे तो आंसू आ जाते और गला भर आता. बिस्तर पर पड़े-पड़े कमरे का एक एक इंच मेरी आंखों को याद हो गया था. दिन मुश्किल से कटता था तो रात तो और भारी होती थी कभी गायत्री मंत्री पढ़ता तो कभी दूसरे श्लोक. निराशा लगातार घर करने लगी थी. ऐसे में कभी अंधेरे में यमराज भी दिखते तो कभी ये लगता कि अब घर तो लौट ही नहीं पाऊंगा. आसपास के मरीजों ने बता दिया था कि करोना में फेफड़ों में संक्रमण यानि की निमोनिया का शुरुआती लक्षण और यही से कोरोना जानलेवा हो जाता है.

हांलाकि अस्पताल के डॉक्टर मेरा हमेशा हौसला बढ़ाते मगर मेरा पत्रकार मन पूरे वक्त अपनी तबियत को लेकर सवाल ही उठाता रहता. मेरे सीटी स्कैन की जब दूसरी रिपोर्ट आनी थी तो फिर रात भर नहीं सोयाय जाने क्या लिखा आ जाये रिपोर्ट में. शुक्र था भगवान का दूसरी रिपोर्ट में वायरस फैलता नहीं दिखा. डॉक्टर अजय गोयनका ने जब हौसला बढ़ाया तब लगा कि अब ठीक हो जाऊंगा. बस फिर क्या था अब अस्पताल में मेरा मन लगने लगा था. दोस्ती हो गयी थी बहुत सारे लोगों से. मगर इंतजार था कब निकल पाएंगे यहां से दिन लगातार गुजरते जा रहे थे.

आम तौर पर सामान्य मरीज सात से आठ दिन में वापस चला जाता है मगर मुझे तो चौदह दिन होने को थे. बाहर मेरे मित्र और परिवार इंतजार कर रहे थे. खैर वो दिन भी आ गया पहले पहली रिपोर्ट निगेटिव आयी तो मैं खुश था मगर कुछ रायचंदों ने बताया कि पहली से कुछ नहीं बहुतों की दूसरी पॉजिटिव आ जाती है इसलिये फिर दो दिन तक फिर दिल दिमाग पर तनाव रहा.  मेरी दूसरी रिपेार्ट की खबर मुझे नही मेरे खबरनवीसों दोस्तों को मुझसे पहले मिली कि वो भी निगेटिव आयी है. बस फिर क्या था वापसी की तैयारी की और एक वीडियो बनाया उन सबके लिये जो करोना से डरते हैं मेरा अनुभव यही कहता है कि बीमारी बड़ी नहीं है मगर इसका डर इससे बड़ा है इसलिये उस डर से पहले जीतना पड़ता है बीमारी से तो जीत ही जायेगे और मैंने जीतकर बताया। ( भोपाल के टीवी पत्रकार जुगल किशोर शर्मा की सच्ची कहानी )

(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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