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साक्षी केस में नहीं निभाया गया इंसानियत का धर्म, बच सकती थी जान, कहीं दिन का उजाला और समाज का भय न हो जाए खत्म

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के शाहबाद डेरी थाना इलाके में 16 साल की नाबालिग साक्षी की हत्या दिनदहाड़े साहिल नाम के शख्स ने कर दी. इस सनसनीखेज वारदात की सबसे खौफनाक बात ये रही कि जब साहिल चाकू के ताबड़-तोड़ वार कर रहा था, तो बमुश्किल एक या दो फीट की दूरी से लोग न केवल देख रहे थे, बल्कि वीडियो भी बना रहे थे. इन सब से आंखें फेरकर लोग इस तरह जा रहे थे जैसे सब्जी बाजार में सब्जी की बिक्री देख रहे हों. एक समाज के रूप में यह हमारे अभूतपूर्व पतन को दिखाता है या चौतरफा ऐसी घटनाओं के लगातार होते रहने से हम बिल्कुल अप्रभावित हो गए हैं? पुलिस-प्रशासन का खौफ तो अपराधियों को नहीं ही है, लेकिन जो एक सामाजिक भय दिखता था, वह अब शायद कहीं खत्म होता जा रहा है. 

पुलिस-प्रशासन से बड़ी समाज की जिम्मेदारी

लगता है, पुलिस को सुध नहीं है, प्रशासन सो रहा है. जिस तरह से उस बेटी की सरेआम हत्या हुई, लोग देखते रहे, आने-जानेवाले लोग मूकदर्शक बने रहे, वीडियो बनाते रहे. अब ये हमारी भी जिम्मेदारी है कि एक-दूसरे की सुरक्षा के लिए हम साथ आएं. यह सच है कि हर जगह पुलिस नहीं पहुंच सकती. हमारी-आपकी जिम्मेदारी समाज में बड़ी हो जाती है कि हम एक-दूसरे की सुरक्षा करें, बजाए इसके कि हम वीडियो बनाएं, मूकदर्शक बने रहें. वारदात को चुपचाप देखते रहने की बजाए हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए.

अगर हम एक-दूसरे के साथ होंगे, तो जो बेटियां मर रही हैं, हमारी इंसानियत तार-तार हो रही है, वह शायद नहीं हो. हम एक-दूसरे के साथ खड़े होंगे, तो शायद ऐसी हत्याओं को रोक सकें. वहां जिस तरह वह बदमाश, गुंडा, हत्याारा वारदात कर रहा था और उसी समय सबने दबोच लिया होता, उसको पकड़ लिया होता तो शायद वह बेटी बच जाती. बजाए उसको रोकने-टोकने के लोग उधर से आराम से गुजरते रहे, वीडियो बनाते रहे, तमाशबीन बने रहे. वक्त आ गया है कि समाज में हमें एक-दूसरे की सुरक्षा का वचन लें.

हम एक-दूजे की रक्षा में रहें, इसका वचन लेना होगा, जज्बा पैदा करना होगा, ये समाज में हम सभी की जिम्मेदारी है. इसीलिए मैंने एक हैशटैग #Saveforeachother भी दिया. आखिर, हमसे-आपसे ही तो समाज है. कोई तीसरा तो कूद कर नहीं आएगा. हमें एक-दूसरे को बचाना होगा, ये बहुत जरूरी है. यह भी सच है कि पुलिस का खौफ होना चाहिए. नहीं था, तभी तो ऐसी वारदात हुई. हर घटना को लेकिन हम पुलिस-प्रशासन पर डालकर सो जाएं, यह भी ठीक नहीं है. हमारी भी तो कोई जिम्मेदारी है. हमने भी तो अपना काम पूरा नहीं किया. इन दरिंदों के खौफ से तभी समाज बचेगा, जब हम एक होकर एक-दूसरे की रक्षा का वचन लें. 

बचानी होगी हिंदुस्तानी संस्कृति और संस्कार

समाज को एक रहना चाहिए, बंटकर नहीं रहना चाहिए. हम सभी अपने मसलों में इतने खोए रहते हैं कि समाज के तौर पर एक नहीं हो पाते. हमारी जिम्मेदारी अपनों के प्रति, परिवार के प्रति है, लेकिन समाज के प्रति भी है. हम कई बार सोचते हैं कि चलो ये हमारा बेटा नहीं है या बेटी नहीं है. इस सोच से निकलना होगा. हमें पूरे हिंदुस्तान को अपना समझना होगा. इसमें कहीं किसी के साथ कोई अन्याय हो रहा है, तो उसके लिए आवाज उठानी होगी, वरना तो वही होगा- 

"जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है, आग के पीछे तेज हवा है, आगे मुकद्दर आपका है।

उसके कत्ल पर मैं चुप था, मेरा नंबर आया, मेरे कत्ल पर तुम चुप हो, अगला नंबर आपका है।।"

तो, एक दूसरे की मदद का जज्बा होना चाहिए. यही हिंदुस्तान की संस्कृति और संस्कार रहा है और यही हम खो रहे हैं. इसकी ही चिंता है. यही जब खो जाएगा, तो फिर समाज का मतलब क्या रह जाएगा? समाज का तो मतलब ही है कि हम एक-दूसरे के साथ जुड़े हैं, खड़े हैं, एक-दूसरे की रक्षा कर रहे हैं, लेकिन जब यही खो जाएगा तो फिर समाज का मतलब क्या रह जाएगा?

हमें एक जिम्मेदार नागरिक, एक जिम्मेदार हिंदुस्तानी का परिचय देना है, लेकिन यहां तो वारदात हो रही है और हम खड़े होकर देख रहे हैं. समाज जिस तरफ जा रहा है, वह ठीक नहीं है और हमें समाज का सही मतलब समझना होगा. जो कल उसके साथ हुआ, वह आज मेरे साथ हो सकता है, परसों किसी और के साथ. यह घटना तो किसी भी बेटी के साथ हो सकती है, इसलिए पुलिस-प्रशासन से अधिक जिम्मेदारी तो हमारी है.

ऐसा मैसेज समाज के अंदर जाना चाहिए कि हर व्यक्ति समाज का रक्षक है, उसकी जवाबदेही है, उसका कर्तव्य है तो इस तरह की हैवानियत नहीं हो सकती है. वह हिम्मत ही नहीं कर सकता है क्योंकि उसे पता है कि किसी भी अन्याय का प्रतिकार हरेक आदमी करेगा, अगर कोई गलत करेगा तो सारे लोग खड़े होकर उसको पकड़ लेंगे. इस मामले में क्या हुआ? लोग इंतजार करते रहे पुलिस-प्रशासन का.यही गलत है. 

सबसे बड़ा होता है समाज का भय, वह न हो खत्म

समाज का जो भय खत्म हुआ लोगों में, तभी तो बदमाश और गुंडे सिर पर चढ़ बैठे. समाज का भय ही तो सबसे बड़ी ताकत है. हमारा-आपका डर ही तो सबसे बड़ा है. यही तो परसेप्शन था कि दिन के उजाले में बदमाशी नहीं कर सकते, क्योंकि पब्लिक होती है. यही जिस दिन खत्म हो जाएगा कि दिन के उजाले में भी लोग चोरी कर सकते हैं, हत्या कर सकते हैं, तो यह भय जिस दिन खत्म हुआ, इंसानियत तो उसी दिन से खत्म होने लगेगी.

इसका अर्थ तो यही जाएगा कि कोई किसी के साथ गलत करेगा तो कोई दूसरा खड़ा नहीं होगा. तो, सामाजिक भय लोगों पर होना चाहिए, समाज का डर उन बदमाशों को होना चाहिए. लोगों के ऊपर समाज का भय खत्म नहीं होना चाहिए, वरना इंसानियत खत्म हो जाएगी. वह बिटिया बच सकती थी, लेकिन हमने अपना धर्म नहीं निभाया, इंसानियत नहीं निभाई. जब समाज सुरक्षित होगा, तो परिवार सुरक्षित होगा और तब हम भी सुरक्षित होंगे. 

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है) 

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