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UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
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OTH
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07
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INDIA
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OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

RCEP: चीन की अगुआई वाले 15 देशों के ग्रुप में शामिल नहीं होना भारत के लिए अच्छा या खराब?

अगर भारत समझौते में शामिल हो जाता तो चीन को भारत के पड़ोसी देशों के साथ खुलकर खेलने का मौका मिल जाता. पूरी दुनिया जानती है कि कैसे चीन पहले कर्जा देता है फिर जमीन हड़पता है और कैसे उस देश को अपना आर्थिक गुलाम बना लेता है.

RCEP यानी रीजनल कंप्रीहेसिंव इकनॉमिक पार्टनरशिप. यह दुनिया का व्यापार के क्षेत्र में सबसे बड़ा समझौता है. चीन समेत 15 देश इसमें शरीक हैं. इन देशों की कुल आबादी दो अरब से ज्यादा है. दुनिया की जीडीपी में इनका योगदान 30 फीसदी है. कुल 25 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, लेकिन इसमें भारत शामिल नहीं है.

ऐसे में सवाल उठता है कि आज के भूमंडलीकरण के युग में इतने बड़े बाजार से भारत वंचित कैसे रह सकता है. आरसीईपी में चीन, एसियान देशों के ब्लॉक के 10 देशों के आलावा ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, जापान, न्यूजीलैंड और द कोरिया शामिल हैं.

हैरानी की बात है कि जिन देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है, जिन देशों के साथ दक्षिण चीन सागर पर आधिपत्य की लड़ाई चल रही है वह सब देश चीन के साथ इस समझौते में शामिल हैं. हैरानी की बात है कि यह सभी देश चीन को विस्तारवादी देश मानते हैं, जानते हैं कि चीन अपनी आक्रामक विदेश नीति और आर्थिक नीति का विस्तार आरसीईपी के माध्यम से करेगा फिर भी हिस्सेदारी कर रहे हैं. लेकिन भारत अलग है.

क्या भारत की नीति ठीक है? जानकारों का कहना है कि भारत की नई आर्थिक नीति साफ है कि ऐसे किसी समझौते का हिस्सा मत बनो जिससे चीन को अपना सामान भारत में बेचने का मौका मिले. सवाल उठता है कि क्या भारत की नीति ठीक है. क्या आज की ग्लोबल दुनिया के दौर में अपने दरवाजे बंद करके बैठा जा सकता है. क्या भारतीय कारखानों को संरक्षणवाद चाहिए या आगे बढ़ने के मौके, दुनिया के दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा करने की चुनौती, भारत सरकार से कुछ ऐसी रियायतें जिससे कारखाने मजबूत हो सके, दुनिया के दूसरे देशों का मुकाबला कर सके.

जानकारों का कहना है कि वोकल फॉर लोकल या आत्मनिर्भर भारत से काम नहीं चलने वाला है. भारत ने आरसीईपी में शामिल नहीं हो कर बहुत बड़ा मौका गंवा दिया है. क्या सचमुच में ऐसा है या भारत ने राष्ट्रीय हितों को आगे रखा है. चीन के आगे घुटने टेकने से इनकार किया है. चीन को ठेंगा दिखाने की हिम्मत दिखाई है.

ये 15 देश बिना रोका टोकी के व्यापार कर सकेंगे आरसीईपी में जो 15 देश शामिल हैं वह आपस में बिना किसी रोका टोकी के व्यापार कर सकेंगे. आसान शब्दों में कहा जाए कि जैसे दिल्ली और नोएडा के बीच, जैसे दिल्ली और गुरुग्राम के बीच आप अपना सामान लेकर जा सकते हैं. उसे बेचकर वापस आ सकते हैं, वहां से सामान लाकर दिल्ली में बेच सकते हैं ठीक वैसे ही अब इन 15 देशों के बीच होगा. एक तरह से कहे तो यह 15 देश भारत के 15 राज्य हो गए हैं जहां आपस में व्यापार आसानी से किया जा सकता है.

आयात और निर्यात पर टैक्स 90 फीसदी कम हो जाएगा यानी मौटे तौर पर दस फीसदी टैक्स ही लगेगा. अब सवाल उठता है कि इतना अच्छा मौका भारत क्यों चूक बैठा. भारत शामिल हो जाता तो भारत के 138 करोड़ लोगों को न्यूजीलैंड से सस्ता दूध पनीर अंडे मिलते, ऑस्ट्रेलिया से सस्ता गेंहूं मिलता, वियतनाम से सस्ता चावल मिलता, चीन से सस्ता स्टील कपास आदि जिंस मिलते. लेकिन भारत का कहना है इससे भारत के किसान बर्बाद हो जाते. डेयरी उद्योग में काम करने वाले सड़क पर आ जाते. इसी तरह सर्विस सेक्टर पर भी इसका बुरा असर पड़ता.

समझौते में शामिल देश किसी देश को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा नहीं दे सकते थे. भारत ऐसा नहीं चाहता था. आखिर पाकिस्तान से लाख तनातनी के बाद भी भारत ने पाकिस्तान को यह दर्जा दे रखा है. कुछ अन्य पड़ोसी देशों को भी सामरिक रणनीति के तहत दर्जा दे रखा है. इससे भारत चीन के किलेबंदी को कुछ हद तक रोकने में कामयाब हुआ है.

आखिर भारत चीन को यह मौका कैसे दे सकता था अगर भारत समझौते में शामिल हो जाता तो चीन को भारत के पड़ोसी देशों के साथ खुलकर खेलने का मौका मिल जाता. पूरी दुनिया जानती है कि कैसे चीन पहले कर्जा देता है फिर जमीन हड़पता है और कैसे उस देश को अपना आर्थिक गुलाम बना लेता है. एक साल से भारत चीन से उलझा हुआ है. ताजा मामला गलवान घाटी का है. अरुणाचल प्रदेश में चीन दखल देता रहता है, भूटान पर दबाव डालता रहता है, नेपाल तक रेलवे लाइन बिछाने की बात कर रहा है. ऐसे में भारत चीन को यह मौका कैसे दे सकता था.

चीन अड़ गया तो भारत अलग हो गया भारत समझौते में ऑटो ट्रिगर मैकेनिज्म चाहता था. आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत चाहता था कि चीन जैसे देश कितनी भी मात्रा में अपना सामान डंप नहीं कर सके. तो भारत का सुझाव था कि मान लिया जाए कि भारत चीन से एक लाख मोबाइल आयात करता है तो उसमें 10, 20 या 30 हजार (यह सिर्फ एक उदाहरण है) दस फीसदी टैक्स के साथ आएं लेकिन बाकी बचे मोबाइल पर टैक्स की दरें भारत तय करें. लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया.

इस पर भारत ने कहा कि कोई भी देश केवल वही उत्पाद बेचेगा जो उसके यहां ही निर्माण किया गया हो. यहां भारत को शक था कि चीन जैसे देश कुछ अपना माल बेच देंगे और ऑर्डर पूरा करने के लिए कुछ सामान हांगकांग से खरीदकर उसे चीन में बना बताकर बेच देंगे. यह धोखाधड़ी चीन पहले से करता रहा है. भारत इस पर रोक लगाना चाहता था लेकिन चीन अड़ गया तो भारत अलग हो गया.

भारत को बहुत ज्यादा घाटा नहीं भारत को डर था कि चीन 5जी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में आ जाता, जिससे साइबर अटैक करना और हैक करना आसान हो जाता. प्राइवेसी पर फर्क पड़ता उससे भारतीय सुरक्षा भी घेरे में आ जाती. इसके साथ ही रक्षा सौदों के क्षेत्र में भी भारत चीन को अलग रखना चाहता था जो आरसीईपी में शामिल होने पर मुश्किल हो जाता. कहा जा रहा है कि भारत का व्यापार घाटा आरसीईपी देशों के साथ बढ़ता जा रहा है और समझौता होने पर इसके और ज्यादा बढ़ने की आशंका जताई जा रही थी. वैसे भी भारत का आरसीईपी के 15 देशों में से 12 के साथ एफटीए यानी मुक्त व्यापार समझौता है. बाकी देशों से भी बात चल रही है.

ऑस्ट्रेलिया से तो बात आखिरी दौर में है. लिहाजा समझौते से बाहर हो कर भारत को बहुत ज्यादा घाटा नहीं होगा. जानकारों के अनुसार इस घाटे की भरपाई करने के लिए भी भारत के पास विकल्प मौजूद है. भारत को अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए कर लेना चाहिए यानि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट. इसी तरह भारत के बाजार को अमेरिका के लिए और ज्यादा खोलना चाहिए क्योंकि नए राष्ट्रपति बाइडेन लचीला रुख का संकेद दे चुके हैं. अमेरिका ट्रंप के समय ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप ट्रेड से अलग हो गया था. अब बाइडेन अगर अमेरिका को इसमें वापस ले आते हैं तो भारत को भी इसका हिस्सा बन जाना चाहिए.

जानकार बता रहे हैं कि भारत कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन की घेरेबंदी में लगा है. भारत को चाहिए कि इन चार देशों में आपस में जरुरी चीजों की सप्लाई चेन बनाने का काम तो तेज करने का प्रयास करे ताकि चीन को पीटा जा सके. लेकिन सबसे ज्यादा जरुरत तो भारत के उद्योगजगत को विश्वास में लेने की है. उसे वास्तव में ऐसी रियायतें देने की है जिससे वह खड़ा हो सके. अगर ऐसा भारत कर पाया तो अगले कुछ सालों बाद शान के साथ आरसीईपी का हिस्सा बन सकता है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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