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जब सीबीआई और ईडी मोदी सरकार के पास, फिर लाल डायरी पर क्यों नहीं हो रहा एक्शन?

लोकसभा चुनाव में अभी खासा वक्त बाकी है, लेकिन गर्मी काफी तेज हो गयी है. विपक्ष ने अपना नाम 'इंडिया' क्या रखा, सत्तारूढ़ बीजेपी के सुर ही बदल गए. छोटे से लेकर बड़े नेता, मंत्री से प्रधानमंत्री तक विपक्ष खासकर कांग्रेस पर हमलावर हैं. कल संसद में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर हमला बोला, तो सीकर में जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम ने विपक्ष के धुर्रे उड़ाए. उससे पहले वह ईस्ट इंडिया कंपनी और सिमी में भी इंडिया होने की बात याद दिला चुके हैं. पक्ष और विपक्ष की तनातनी के बीच संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश होना है. 

प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी, याद रखें

नरेंद्र मोदी कोई नेता विपक्ष नहीं हैं जो केवल यह बात कह कर खत्म कर दें कि लाल डायरी में ऐसे राज छिपे हैं कि हंगामा हो जाएगा, धमाका हो जाएगा, चेहरे बेपर्दा हो जाएंगे. वह देश के प्रधानमंत्री हैं. अगर उनको लगता है कि ऐसी कोई डायरी है, जिसमें भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा राज छिपा है, तो फिर जांच क्यों नहीं कराते? जांच करवाएं उसकी. ईडी को कहें. देश के प्रधानमंत्री को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए. पॉलिटिकल स्टंट करने से प्रधानमंत्री पद की गरिमा जाती है. अगर उनको लगता है कि कोई बड़ा भ्रष्टाचार का मामला है तो उनकी सीबीआई को मामला सौंप देना चाहिए, ईडी को सौंप देना चाहिए. वैसे भी ईडी और सीबीआई आजकल छोटी-छोटी बातों पर जांच कर ही रही है, तो ये एक और जांच सही. अगर केवल राजनीतिक बढ़त लेने के लिए सार्वजनिक सभा में प्रधानमंत्री इस तरह की बातें बोलते हैं, तो ये तो फिर ठीक बात नहीं है. 

अब पीएम की मंशा क्या है, ये तो वही बताएंगे? मेरा तो ये सवाल है और देश का भी सवाल है. अगर प्रधानमंत्री जी जानते हैं कि लाल डायरी में भ्रष्टाचार के बहुत राज हैं, तो देश की जनता के सामने उस राज का पर्दाफाश होना चाहिए. पीएम को भला किससे अनुमति लेनी है? वह जब चाहें जांच कर सकते हैं. पर, जांच नहीं कर रहे हैं. भाषण दे रहे हैं. भाषण में कांग्रेस को भ्रष्टाचारी सिद्ध कर रहे हैं, आरोप लगा रहे हैं. बीजेपी इसको चुनाव में मुद्दा बनाए, उससे दिक्कत नहीं है, लेकिन उसको जस्टिफाई तो करें. मोदीजी अगर केवल भाजपा नेता होते तो राजनीतिक फायदे के लिए अगर ये सब झूठ बोलते तो भी चलिए, चलता है. वह देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन. अगर सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए ये कर रहे हैं, तो दिक्कत है. मैं तो मांग कर रहा हूं कि जांच हो, अगर लाल डायरी में कोई भी भ्रष्टाचार का मामला है तो. 

खिसियानी बिल्ली खंभा नोच रही है

बीजेपी और देश की सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए विपक्ष पर हमलावर है, विपक्ष को बदनाम करने में लगा है. मुझे तो लगता है कि जब से आईएनडीआईए बना है, विपक्ष का गठबंधन जो एक हुआ है, तब से भाजपा में घबराहट है. कल संसद में स्मृति ईरानी ने जिस गुस्से से विपक्ष पर हमला किया, आज पीएम ने किया, तो लगता है कि इंडिया नामक गठबंधन को कोसने की प्रतियोगिता चल रही है. लगता है कि पीएम में और ईरानी जी में प्रतियोगिता चल रही है. अब सोचिए कि अगर विपक्षी गठबंधन इस नाम का बन भी गया, तो क्या प्रॉबल्म है? प्रधानमंत्री उसे पानी पी-पीकर कोस रहे हैं. बता रहे हैं कि यूपीए क्या था, ईस्ट इंडिया कंपनी, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और न जाने क्या-क्या बना रहे हैं? अगर प्रधानमंत्री को ये लग रहा है कि विपक्ष पीएफआई है, इंडियन मुजाहिदीन है तो मुकदमा चलाएं, सबको जेल में करें. अन्यथा, प्रधानमंत्री के मुंह से ऐसी भाषा शोभा नहीं देती. मैं तो आग्रह करूंगा प्रधानमंत्री जी से कि राजनीति में सत्ता आती है, जाती है, आएगी, जाएगी, लेकिन मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए. जो पद की गरिमा है, उसका ख्याल रखना चाहिए. अन्यथा अगर उनको लगता है कि इंडियन मुजाहिदीन हैं तो मुकदमा चलाएं, अगर लगता है कि लाल डायरी में भ्रष्टाचार है, तो उस पर कार्रवाई करें. केवल राजनीति के लिए तो यह ठीक नहीं है. 

बड़ा दिल दिखाए सरकार

बीजेपी में घबराहट तो है- एनडीए वर्सेस इंडिया की लड़ाई को लेकर. प्रधानमंत्री को लग रहा है कि विपक्ष यानी जो इंडिया नाम है, वह गठबंधन भारी पड़ सकता है. जहां तक अविश्वास प्रस्ताव की बात है, तो लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी बात कहने का हक है. संविधान में यह प्रावधान है कि अगर विपक्ष को यह लग रहा है कि सरकार के खिलाफ नो-कॉन्फिडेन्स मौसम लाना चाहिए, तो ला सकते हैं. वही ला रहे हैं. अविश्वास प्रस्ताव आने पर लगता है कि सरकार नहीं गिर पाएगी, पर विपक्ष अपनी बात तो कहेगा. विपक्ष का मानना है कि सरकार जो है, वह जनता का भरोसा, कॉन्फिडेन्स खोती जा रही है. सरकार जीतेगी या हारेगी, इसका फैसला तो संसद में होगा. कांग्रेस तो यही मैसेज देना चाह रही है कि देश में जो सरकार है, वह बेकाबू है. सुन नहीं रही है, लोकतंत्र का क्षरण हो गया है.

मणिपुर पर हम लोग चिल्ला रहे हैं, इतनी बर्बादी हो रही है, लेकिन जो आग लगी है, उसे बुझाने की कार्रवाई सरकार नहीं कह रही है, इसलिए विपक्ष अपनी बात तो रखेगी ही. अब आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह बोल रहे थे, उनको सस्पेंड कर दिया. उनके समर्थन में अब धरना हो रहा है. सरकार को बड़ा दिल दिखाना चाहिए. आप सरकार हैं, महाराज. पहले प्रधानमंत्री नेहरू बैठकर अपनी आलोचना सुनते थे, हमारे पीएम आलोचना सुनना ही नहीं चाहते हैं. बीमारी का सबसे बड़ा कारण ये है. मोदी जी आलोचना का सामना नहीं करना चाहते हैं. वह केवल प्रशंसा सुनना चाहते हैं. एनडीए में घबराहट है. बौखलाहट है, इसलिए ही यह दिख रहा है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का गुस्सा, पीएम मोदी का आज पानी पी-पीकर कोसना, यह तो बहुत गजब मोड़ आ जाएगा. यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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