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सार्थकतायुक्त साक्षरता ही शिक्षा का पर्याय , परीक्षा पर चर्चा देता है विद्यार्थियों को हौसला

भारतीय ज्ञान का उद्देश्य मनुष्य को सार्थक जीवन की ओर ले जाना रहा है. और इसीलिए ‘प्राचीन काल में जब कोई विद्यार्थी गुरु से शिक्षा प्राप्त करता था तब उसे केवल विद्या-स्नातक कहा जाता था, पूर्ण स्नातक नहीं. शिक्षा में स्नातक होने के साथ-साथ उसे अनेक व्रतों में भी स्नातक होना पड़ता था. उसे स्वयं पर विजय प्राप्त करनी होती थी. वह आत्म-नियमन की कला से व्रत-स्नातक बन पाता था’ – विनोबा भावे.

विद्यार्थियों से हो खुलकर संवाद

उन दिनों गुरु अपने शिष्यों को नदी के किनारे, जंगलों में या दूर-सुदूर स्थानों पर ले जाते थे और उनसे विभिन्न विषयों पर खुलकर बातचीत करते थे, जो जाने-अनजाने में प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करने में सहायक होती थी. परीक्षा पे चर्चा 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न राज्यों से आए विद्यार्थियों के साथ एक ऐसा ही अनूठा संवाद स्थापित किया. दिल्ली के एक खूबसूरत बागीचे में आयोजित इस बैठक ने विद्यार्थियों को अपनी बात खुलकर कहने में सहायक भूमिका निभाई.

तिल-गुड़ से विद्यार्थियों का स्वागत करके श्री मोदी ने उन सबको जीवन में ‘पौष्टिक आहार का महत्व’ के विषय में समझाया. क्या खाना चाहिए, कितना खाना चाहिए, कैसे खाना चाहिए और क्यों खाना चाहिए, इन बातों के बीच अंतरभेद को बताते हुए छात्रों को पानी के स्वाद का अनुभव करना, पर्याप्त नींद लेना, धूप सेंकना, पेड़ के पास खड़े होकर गहरी सांस लेने जैसे कई विषयों के तार्किक कारण बताए तथा जीवन पर इन सबके सकारात्मक प्रभावों की समझ के साथ-साथ जीवन जीने का एक नया नजरिया भी दिया. माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों में छीपी विशेष क्षमताओं को पहचानकर उन्हें अनेक संभावनाओं की ओर मार्गदर्शित करने के विषय में भी बात की, तो दूसरी ओर, उन्होंने विद्यार्थियों को लक्ष्य-केंद्रित होने और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया. समय का सदुपयोग करने के लिए दैनिक कार्य निर्धारित करके उसे पूरा करने तथा लगातार छोटे-छोटे लक्ष्य प्राप्त करने के बारे में भी बात की.


सार्थकतायुक्त साक्षरता ही शिक्षा का पर्याय , परीक्षा पर चर्चा देता है विद्यार्थियों को हौसला

परीक्षार्थी साझा करें अपनी समस्या

पीएम ने विद्यार्थियों को सलाह दी कि वे अपने विचार, उलझनें और समस्याएं अपने माता-पिता, परिवार के अन्य बुजुर्गों, भाई-बहनों और मित्रों के साथ साझा करते रहें. इन सबके बीच, श्री मोदी ने विद्यार्थियों को एकाग्रता के लिए जीवन में ध्यान और प्राणायाम के महत्व के बारे में बताया. अच्छे नेतृत्व के विशेष गुणों की समझ के साथ, उन्होंने विद्यार्थियों को जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों से लगातार लड़ते रहना, हार का भी स्वीकार करना और अपनी क्षमताओं को बढ़ाते रहने की बात को खूबसूरती से समझाया. अंत में 'एक पेड़ मान के नाम' के तहत् विद्यार्थियों से पौधों का रोपण करवाकर उनमें पर्यावरण के विषय में संवेदना जगाई.

प्रधानमंत्री के साथ विद्यार्थियों की यह मुलाकात करीब एक घंटे तक चली जो जीवन की जड़ी-बूटी समान रही. दरअसल, हम समझते हैं कि शिक्षा जीवन की आवश्यकता है, लेकिन क्या शिक्षा ही जीवन की एकमात्र आवश्यकता है? नहीं, जीवन में शिक्षा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जीवन का घडतर (जीवन रूपी मूर्ति को सुघड़ता से गढ़ने की समझ), जीवन को सकारात्मक आकार देना. और इसीलिए हमारे बड़े-बुजुर्ग हमेशा कहते थे, ‘शिक्षा के साथ-साथ जीवन घडतर भी बहुत जरूरी है.’ शिक्षा से किसी भी विषय में गहन जानकारी प्राप्त होती है, लेकिन घडतर से हम उन जानकारियों से जीवन और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित कर पाते है. और यही सामंजस्य स्वयं और सर्वस्व के विकास का निमित्त बनता है.

एक से दूसरी पीढ़ी ज्ञान के हस्तानांतरण की परंपरा

मोदी ने विद्यार्थियों को ज्ञान के माध्यम से स्व से लेकर सर्वस्व के विकास की ओर यात्रा कराई. उनकी यह गम्मतयुक्त ज्ञान की शैली सीधे दिमाग से होते हुए हृदय को छूनेवाली रही. जब कोई बात, जानकारी या ज्ञान दिमाग तक पहुंचता है और वहीं ठहर जाता है, तो उसका प्रभाव लगभग अदूरदर्शी और आत्म-केंद्रित हो जाता है. लेकिन जब यह दिमाग से आगे बढ़कर हृदय को छूता है, तो इसका प्रभाव दूरदर्शी और समाज-केंद्रित होने लगता है. और यह स्वयं के सहित समाज के विकास की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग बनता है. ये हृदयस्पर्शी बातें, जानकारियां और ज्ञान विरासत के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी से तीसरी पीढ़ी, ऐसे पीढ़ियों तक आगे पहुंचती रहती हैं. और वह यात्रा स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ती है. वह यात्रा सूक्ष्म बनकर मनुष्य की प्रकृति का निर्माण करती है. स्वभाव प्रत्येक व्यक्ति, स्थान और स्थिति-परिस्थितियों के साथ बदलता रहता है, लेकिन प्रकृति मानव आत्मा से जुड़ी होती है जो अंतिम सांस तक साथ रहती है. इसीलिए कहा जाता है कि प्राण और प्रकृति चिता की लकड़ी के साथ ही जलती हैं. और हम लोग व्यक्ति की, समाज की, राज्य की और देश की प्रकृति को ही संस्कार के नाम से जानते-पहचानते हैं. इस तरह सारे भारतवासियों की प्रकृति ही भारतीय संस्कार बनती है. श्री मोदी ने विद्यार्थियों की प्रकृति पर काम किया. उनकी आत्मा को निखारने का प्रयास किया. उन्होंने विद्यार्थियों के जीवन घडतर का काम किया.

शिक्षा विद्यार्थी को साक्षर बनाती है, लेकिन जीवन घडतर भी जरूरी होता है. जीवन घडतर से ही हम परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करके, जीवन को सुखमय और शांतिमय बनाकर देश के विकास में सहभागी बन सकते है. श्री मोदी ने विद्यार्थियों के सामने अपनी बुद्धिमता या ज्ञान का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उनमें श्रद्धा और प्रेम के बीज बोए. उन्होंने विद्यार्थियों को उनके भीतर पड़ी विशेष क्षमताओं के अदभुत प्रवाह की दहलीज तक पहुंचाया.

जिस प्रकार शिल्पकार को पत्थर या मिट्टी की मूर्ति बनाने की आवश्यकता नहीं होती, वह पहले से ही पत्थर और मिट्टी में विद्यमान रहती है. शिल्पकार को केवल उसे प्रकट करने का काम मात्र करना होता है. इसी प्रकार माता-पिता और शिक्षकों की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों और विद्यार्थियों में विद्वमान विशेष क्षमताओं को पहचानें और अनंत प्रयासों के माध्यम से उन्हें आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनाएं. प्रत्येक बच्चे में बीज के रूप में विशिष्ट क्षमताएं विद्यमान होती ही हैं. सिर्फ इसलिए कि वे शक्तियां दिखाई नहीं देतीं, इसका मतलब यह नहीं होता कि उसका अस्तित्व नहीं है. जैसे ही उसे उचित वातावरण मिलता है, वह अपने आप प्रकाश में आ जाती हैं. श्री मोदी ने विद्यार्थियों को उनके भीतर छिपी इन क्षमताओं के विषय में बोध कराया. और यह समझाया कि शिक्षा की साक्षरता उसकी सार्थकता में ही निहित है. ये सारगर्भित संवाद अनेक बच्चों, विद्यार्थियों, माता-पिता, शिक्षकों को जीवन-उन्मुख ज्ञान से जोड़ने का प्रयास करेगा ऐसी अनंत आशाएं जन्मीं हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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