लोकसभा चुनाव: पीएम मोदी के ख़िलाफ़ एकजुट विपक्ष का चेहरा बन पायेंगे क्या नीतीश कुमार?

साल 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष का चेहरा कौन होगा,इसे लेकर विपक्षी ख़ेमे में अभी से माथापच्ची शुरु हो गई है.वैसे तो पीएम पद का उम्मीदवार बनने की रेस में कई नाम हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस तरह से सक्रिय हुए हैं,उससे लगता है कि वही प्रमुख दावेदार हैं.
हालांकि नीतीश का दावा है कि वे विपक्ष को एकजुट करने के लिए ही इतने हाथ-पैर मार रहे हैं और उसी सिलसिले में तेलंगाना के सीएम के.चंद्रशेखर राव ने पिछले दिनों पटना आकर उनसे इस पर चर्चा की थी. अब नीतीश कुमार 8 सितंबर को दिल्ली आ रहे हैं, जहां वे एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से विपक्षी एकता बनाने की आगे की रणनीति तय करेंगे. हालांकि पवार अन्य विपक्षी नेताओं से भी मुलाकात करेंगे. लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार के किसी सदस्य से उनकी मुलाकात अभी तय नहीं है. दो दिन पहले ही पवार ने खुलकर ये वकालत की थी कि विपक्ष को अगला चुनाव मिलकर लड़ना चाहिए.
लेकिन विपक्ष के एकजुट होने में सबसे बड़ी अड़चन ये है कि मोदी के सामने चेहरा कौन होगा,नीतीश कुमार,शरद पवार,ममता बनर्जी या फिर राहुल गांधी? ये ऐसा मसला है,जिस पर आम राय बनाने में विपक्ष के बड़े नेताओं के भी पसीने छूट रहे हैं.हालांकि विपक्षी एकता की बड़ी झंडाबरदार तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रही हैं,जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव से पहले ये मोर्चा संभाला था लेकिन फ़िर भी वे समूचे विपक्ष को एक मंच पर लाने में उतनी कामयाब नहीं हो सकी थीं.
हाल ही में ममता ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर फिर से विपक्ष की साझा बैठक बुलाने का अनुरोध किया है.बताते हैं कि इस बात पर सहमति बनाने की कोशिश होगी कि जिस पार्टी के ज्यादा सांसद हैं, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी फिर उसी पार्टी का होना चाहिए.उस लिहाज़ से तो फिर इस पर कांग्रेस का ही दावा बनता है.
लोकसभा का गणित देखें,तो वहां कांग्रेस के 53, ममता बनर्जी की टीएमसी के 23,नीतीश कुमार की जेडीयू के 16 और शरद पवार की एनसीपी के महज 5 सांसद हैं.जबकि राज्यसभा में कांग्रेस के 29,तृणमूल के 13,जेडीयू के 4 और एनसीपी के भी 4 सदस्य हैं.इसलिये पीएम पद का उम्मीदवार तय करने के लिए अगर ज्यादा सांसदों का पैमाना ही रखा जाता है,तो उस सूरत में नीतीश कुमार की दावेदारी तो बनती ही नहीं है. इस लिहाज से तो कांग्रेस के बाद फिर ममता बनर्जी ही दूसरी बड़ी दावेदार हैं.
अब सवाल ये उठता है कि पिछले एक दशक में जो जेडीयू अपनी सबसे मजबूत सियासी जमीन यानी बिहार में ही सिकुड़ता जा रहा है,उसके सुप्रीमो नीतीश कुमार आखिर किस आधार पर पीएम की उम्मीदवारी की ताल ठोंक रहे हैं? बिहार की राजनीति के विश्लेषक मानते हैं कि, " दरअसल,नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का सपना लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने दिखाया है. ये भी मुमकिन है कि इस बार महागठबंधन इसी शर्त पर हुआ हो कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा.
नीतीश को आरजेडी के अलावा उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी का साथ दिलाने का भी वादा किया गया होगा.इसका सियासी मतलब यही निकाला जा रहा है कि नीतीश को केंद्र की राजनीति में भेजकर बिहार की कमान पूरी तरह से तेजस्वी यादव अपने हाथ में लेने की योजना बना रहे हैं.
विपक्षी खेमे में एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए इस शर्त पर भी सहमति बन सकती है कि जिसके पास ज्यादा पार्टियों का समर्थन होगा, उसे ही चेहरा बना दिया जाएगा.इसमें कोई शक नहीं की आरजेडी,जेडीयू और समाजवादी पार्टी उत्तर भारत के तीन बड़े विपक्षी दल है और इन्हें साथ लिए बगैर विपक्ष की सफलता मुश्किल होगी. लेकिन आंकड़ों का गणित नीतीश के पक्ष में नहीं है और बार-बार गठबंधन बदलने के चलते भी नीतीश कुमार की छवि अब भरोसेमंद नेता वाली नहीं रही और यही उनकी उम्मीदवारी में आड़े भी आ सकती है.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


























