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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

कहानी खालिस्‍तानी मूवमेंट की: 80 में जब इंदिरा गांधी को मिला प्रचंड बहुमत तब उन्‍हें सताने लगी थी हिंदुओं की चिंता

पहली बार पूर्ण स्‍वराज की मांग उठी. जगह थी लाहौर और तारीख 31 दिसंबर 1929. कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था, पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू ने पूर्ण स्‍वराज की मांग उठाई. पूर्ण स्‍वराज के नारे के साथ ही विरोध के तीन अलग सुर उठ खड़े हुए. एक- मोहम्‍मद अली जिन्‍ना, दूसरा- अलग सिख राज्‍य की मांग करने वाले तारा सिंह और तीसरे थे भीमराव अंबेडकर.  

1947 में भारत आजाद हुआ तो देश दो हिस्‍सों में बंट गया. पंजाब का भी बंटवारा हुआ. देश की आजादी के साथ ही अलग पंजाब राज्‍य के लिए मूवमेंट भी शुरू हुआ. करीब दो दशक तक अलग राज्‍य की मांग को लेकर आंदोलन चला. बात 1965 की है जब लाल बहादुर शास्‍त्री की सरकार में इंदिरा गांधी इन्‍फॉरमेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्‍टर थीं. उस वक्‍त लोकसभा स्‍पीकर सरदार हुकुम सिंह ने पंजाब सूबा बनाने की मांग का समर्थन किया. इंदिरा गांधी ने भाषा के आधार पर अलग सूबे की मांग का विरोध किया. 

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी भाषा के आधार पर अलग राज्‍य की मांग के खिलाफ थे, लेकिन एक शख्‍स ने बगावत का बिगुल बजा दिया था. इनका नाम है- पोट्टी श्रीरामलू. अलग आंध्र प्रदेश की मांग को लेकर उन्‍होंने 58 दिनों तक आमरण अनशन किया, जिसके बाद उनकी मृत्‍यु हो गई. इस घटना का देशभर में व्‍यापक असर हुआ और भाषा के आधार पर अलग राज्‍यों की मांग जोर पकड़ने लगी. यह घटना कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1953 में जस्टिस फजल की अध्‍यक्षता में राज्‍य पुनर्गठन आयोग की स्‍थापना करनी पड़ी. आयोग में कुल तीन सदस्‍य थे- पहले खुद जस्टिस फजल अली, दूसरे- हृदयनाथ कुंजूरु और तीसरे सदस्‍य थे-  केएम पणिक्कर. इस प्रकार से भाषा के आधार पर देश को पहला राज्‍य आंध्र प्रदेश के रूप में मिला. 

अब वापस 1965 पर आते हैं. इंदिरा गांधी भाषा के आधार पर पंजाब सूबे की मांग के परिणाम जानती थीं. उन्‍होंने कहा था कि ऐसा करने से हिंदू वोटर कांग्रेस से नाराज हो जाएगा. ऐसा हुआ तो भाषा के आधार पर राज्‍य न बनाने की जो पोजीशन कांग्रेस ने ले रखी है, वह पूरी तरह उलट जाएगी. भाषा को लेकर पंजाब में 1961 की जनगणना के वक्‍त भी काफी कोहराम मचा. अकाली दल ने तब कहा था कि अधिकतर हिंदुओं में अपनी मातृभूमि हिंदी बताई है. अकाली दल का आरोप था कि हिंदुओं ने ऐसा इसलिए किया ताकि पंजाबी बोलने वाली 58 प्रतिशत सिख आबादी की अलग पंजाब सूबे की मांग को धक्‍का लग सके. 

बहरहाल, 1 नवंबर 1966 को इंदिरा गांधी को अकाली दल के सामने झुकना पड़ा और भाषा के आधार पर पंजाब का विभाजन हो गया. परिणामस्‍वरूप देश को तीन नए राज्‍य मिले पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश. 

इंदिरा गांधी की बायोग्राफी लिखने वाले कैथरीन फ्रैंक, एसएस गिल जैसे बुद्धिजीवि मानते हैं कि 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्‍ता में लौटीं तब वह मुस्लिम और सिखों की तुलना में हिंदुओं के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील थीं. उस वक्‍त राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ ने इंदिरा गांधी की चिंता को सही ठहराया. संभवत: यही कारण रहा कि पंजाब सूबे को राजधानी नहीं दी गई. चंडीगढ़ राजधानी के मुद्दे पर इंदिरा गांधी ने 1970 में वादा भी किया था, लेकिन इसे पंजाब को नहीं दिया गया और मामला अब तक हरियाणा और पंजाब के बीच झगड़े का कारण बना हुआ है. 

इस संबंध में सीपीएम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने एक इंटरव्‍यू में कहा था कि 6 महीने की अवधि में तीन बार बात समझौते तक पहुंची लेकिन हर बार प्रधानमंत्री ने कदम पीछे खींच लिए. हर बार हरियाणा की हिंदू बहुल को पंजाब के सिखों के हितों पर तरजीह दी गई. उधर पंजाब अलग राज्‍य बनने के बाद भी आक्रोशित ही था. इसी उग्र माहौल के बीच 1971 में जगजीत सिंह चौहान ने खालिस्‍तान राष्‍ट्र के नाम से अमेरिकी अखबार न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में एक विज्ञापन छपवाया. इस विज्ञापन में अलग खालिस्‍तान राष्‍ट्र गठन के लिए चलाए जाने वाले मूवमेंट के लिए चंदा मांगा गया. ऐसा भी कहा जाता है कि मार्च 1940 में डॉक्‍टर वीर सिंह भट्टी ने पहली बार खालिस्तान का प्रयोग किया था, उस समय खालिस्तान नाम से कुछ टैम्पलेट छपवाए गए थे. 1980 में खालिस्‍तान राष्‍ट्रीय परिषद का भी गठन किया गया. यह खालिस्‍तान मूवमेंट का चरम था. अलग राष्‍ट्र के नाम पर विदेशों में रह रहे सिखों से काफी पैसा आ रहा था. इसी दौरान इंदिरा गांधी के बेहद करीब रहे जरनैल सिंह भिंडरावाला खालिस्‍तान मूवमेंट का पोस्‍टर बॉय बन गया. 
 
पंजाब सूबे की मांग को लेकर आंदोलन चलाने वाले अकाली अब बहुत पीछे छूट गए थे. खालिस्‍तान मूवमेंट यानी अलग पंजाब राष्‍ट्र का चेहरा बना जरनैल सिंह भिंडरावाला. उसने सिखों के पवित्र स्‍थान स्‍वर्ण मंदिर में डेरा डाल लिया और खुलकर इंदिरा गांधी को चुनौती दे डाली.    जरनैल सिंह भिंडरावाला पहली बार बड़ी शख्सियत के तौर पर उस वक्‍त उभरा जब उसे 1977 में सिखों के पांच अकाल तख्‍तों में एक- दमदमी टकसाल का जत्‍थेदार बनाया गया. उधर 1980 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत के साथ सत्‍ता में आईं. उन्‍होंने दरबारा सिंह को पंजाब का मुख्‍यमंत्री बनाया. 


9 सितंबर 1981 को पंजाब के मशहूर अखबार पंजाब के संपादक लाल जगत नारायण को उग्रवादियों ने गोली मार दी. इस हत्‍या के एक सप्‍ताह के भीतर ही जरनैल सिंह भिंडरावाला को गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन सबूत नहीं मिल सके और भिंडरावाला जमानत पर बाहर आ गया. 5 अक्‍टूबर 1983 को एक और जघन्‍य घटना घटी. कपूरथला से जालंधर जा रही बस को रोका गया और उसमें बैठे हिंदुओं को मार डाला गया. इंदिरा गांधी इस घटना के बाद से तैश में थीं और उन्‍होंने दरबारा सिंह की सरकार को बर्खास्‍त कर पंजाब में राष्‍ट्रपति शासन लागू कर दिया.              
    
राष्‍ट्रपति शासन लागू होने के बाद कुछ समय बाद ही जरनैल सिंह भिंडरावाला ने स्‍वर्ण मंदिर पर कब्‍जा कर लिया. 1 जून 1984 को इस बवाल में सेना की एंट्री हुई. सेना की नौंवी डिवीजन स्‍वर्ण मंदिर की ओर चल पड़ी. पाकिस्‍तान से सटी सीमाओं को सील कर दिया गया. पांच जून 1984 को शाम सात बजे एक्‍शन शुरू हुआ. रातभर गोलीबारी के बाद सुबह टैंक मंगाए गए. इस ऑपरेशन में 492 लोग मारे गए. भिंडरावाले की लाश की शिनाख्‍त 7 जून को कर ली गई.  इसके बाद भी पंजाब में उग्रवाद को रोकने के लिए एक लंबा दौर चला, लेकिन पाकिस्‍तान की शह पर खालिस्‍तान मूवमेंट जिंदा रहा. भिंडरावाला की मौत के बाद भी पहली बार खालिस्‍तान नाम से विज्ञापन छपवाने वाला जगजीत सिंह चौहान विदेशों में सक्रिय रहा. पंजाब में भले ही आग ठंडी पड़ गई, लेकिन विदेशी जमीन से यह मुद्दा उछलता रहा. खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स जैसे कई संगठन खड़े हो गए. 

साल 2021 में सिख फॉर जस्टिस नाम के संगठन ने खालिस्‍तान का नक्‍शा जारी किया. इस मैप में हरियाणा, यूपी, उत्‍तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्‍थान के कुछ हिस्‍सों को खालिस्‍तान का भाग बताया गया. इसके अगले ही साल यानी 2022 में अमृतपाल सिंह दुबई से वापस पंजाब आया. जब वह दुबई में था तब न तो उसने केश रखे थे और न ही पगड़ी. भारत आने के बाद उसने पगड़ी और केश रखे और दस्‍तारबंदी प्रोग्राम भी करवाया. बाद में उसने अमृत छकाने का काम भी किया और देखते ही देखते दीप सिद्धू की संस्‍था पंजाब दे वारिस का प्रमुख बन गया. अमृतपाल सिंह पर अब तक चार केस दर्ज हो चुके हैं. पहला- अजनाला में वरिंदर सिंह को अगवा कर मारपीट, अमृतसर में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्‍यमंत्री के खिलाफ हेट स्‍पीच. इसके बाद मोगा में भी हेट स्‍पीच और अजनाला में ही पुलिसकर्मियों पर हमले का भी आरोप है.

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