Karnataka: शिक्षा के मंदिर में आखिर कौन फैला रहा है सांप्रदायिकता का जहर?

कर्नाटक में हिजाब को लेकर मचे बवाल ने अब साम्प्रदायिक रंग लेना शुरू कर दिया है. मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने का विरोध करने के लिए हिन्दू छात्र भगवा शॉल ओढ़कर स्कूल-कॉलेज में आने लगे थे. राज्य के कई शहरों में तनाव बढ़ता देखकर फिलहाल तो राज्य सरकार ने अगले तीन दिन के लिए स्कूल-कॉलेज बंद कर दिये हैं. लेकिन बड़ा खतरा ये है कि धार्मिक उन्माद की ये आग कर्नाटक से बाहर निकलकर कहीं दूसरे राज्यों में न फैलने लगे.
मामला फिलहाल हाई कोर्ट में है जहां आज सुनवाई के दौरान जज को पवित्र कुरान की प्रति मंगवानी पड़ी, यह पता लगाने के लिए कि हिजाब पहनना इस्लाम के मुताबिक अनिवार्य है या नहीं. पर, इस बीच एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एक बयान दिया है. उन्होंने युवाओं को नसीहत दे डाली है कि वे इस मुद्दे पर बिल्कुल भी न झुकें. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि शिक्षा के पावन मंदिर में सांप्रदायिकता का जहर घोलने वाली ताकतें आखिर कौन हैं और पुलिस-प्रशासन उनकी पहचान करने में अब तक सफल क्यों नहीं हो पाया है?
हालांकि कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने इसके पीछे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) समर्थित कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का हाथ बताया है. एसडीपीआई पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का ही एक मुस्लिम संगठन है. जबकि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस पूरे विवाद के पीछे गजवा-ए-हिंद नामक संगठन का हाथ होने की बात कहते हुए इसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश करार दिया है.
दरअसल, हाल ही में कर्नाटक सरकार ने राज्य में Karnataka Education Act-1983 की धारा 133 लागू कर दी है. इस वजह से अब सभी स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म को अनिवार्य कर दिया गया है. इसके तहत सरकारी स्कूल और कॉलेज में तो तय यूनिफॉर्म पहनी ही जाएगी, प्राइवेट स्कूल भी अपनी खुद की एक यूनिफॉर्म चुन सकते हैं. उसके बाद से ही हिजाब पर बवाल शुरू हो गया क्योंकि उसे तकरीबन सभी स्कूल-कॉलेज यूनिफॉर्म का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया है.
कर्नाटक में हिजाब का विवाद दिसंबर 2021 में उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से शुरू हुआ था, जब कॉलेज प्रशासन ने क्लास के भीतर हिजाब पहनने के लिए मना कर दिया था. इस पर 8 मुस्लिम छात्राओं ने विरोध किया और कहा कि कॉलेज उन्हें हिजाब पहनने से नहीं रोक सकता क्योंकि ये उनकी धार्मिक स्वतंत्रता है. इसके बाद हिजाब के विरोध में कुछ छात्रों ने भगवा गमछे या शॉल पहनने शुरू कर दिए, जिससे विवाद और बढ़ गया. इसके बाद यह विवाद कई अन्य कॉलेजों में शुरू हो गया. उडुपी जूनियर कॉलेज से शुरू हुआ ये विवाद अन्य कई जिलों तक तक फैल गया है.
31 जनवरी को उडूपी की मुस्लिम छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट में एक रिट पिटीशन दायर की. इस याचिका में कहा गया कि हिजाब पहनने को मौलिक अधिकार घोषित किया जाए. याचिका में कहा गया है कि भारतीय संविधान अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, अभ्यास करने व प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है.
इसी मामले पर हाई कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस कृष्णा दीक्षित ने कहा, 'हम कारणों से चलेंगे, कानून से चलेंगे. किसी के जुनून या भावनाओं से नहीं. जो संविधान कहेगा, वही करेंगे. संविधान ही हमारे लिए भगवद्गीता है. मैंने संविधान के मुताबिक चलने की शपथ ली है. भावनाओं को इतर रखिए. हम ये सब हर रोज होते नहीं देख सकते.'
कोर्ट ने बकायदा कुरान की एक कॉपी मंगवाई और उस आधार पर आगे की सुनवाई शुरू की. कोर्ट ने पूछा कि क्या कुरान में ये लिखा है कि हिजाब जरूरी है? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कुरान की आयत 24.31 और 24.33 में 'हेड स्कार्फ' की बात कही गई है. इसमें बताया गया है कि महिलाओं के लिए ये कितना जरूरी है. ये दलील भी दी गई कि ऐसे मामलों में किसी भी चलन को धार्मिक आधार पर भी समझना जरूरी रहता है. वकील ने केरल हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि चेहरे को ना ढकना, लंबी ड्रेस ना पहनना सजा का पात्र है.
लेकिन इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देते हुए नेताओं ने अब अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी भी शुरू कर दी हैं. एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीनओवैसी ने कहा है कि हिजाब पर बैन का ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ है. उन्होंने इस दौरान युवाओं से कहा कि, अगर वो आज झुक गए तो हमेशा के लिए झुक जाएंगे. ओवैसी ने कहा कि, "अगर आज तुम थोड़ी देर के लिए खड़े हो जाओगे, देखो ये लोग जो तुम्हें डरा रहे हैं... जो समझ रहे हैं कि हमारे सिर पर काले बादल मंडरा रहे हैं. याद रखो कि एक दिन हमारा भी सूरज उदय होगा. लेकिन भीख मांगने से बादल नहीं हटेंगे. जब वोट की ताकत दिखाओगे तभी दुनिया तुम्हारा हक देगी."
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