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जेवर एयरपोर्ट: राजनाथ के 20 साल पुराने सपने को आज साकार करेंगे योगी और 'महायोगी'

योगी आदित्यनाथ के सिंहासन को बचाने के लिए  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी और देश को आज एक बड़ी सौगात देने जा रहे हैं.नोएडा के आगे जेवर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट का शिलान्यास करके वे यूपी की जनता को एक बड़ा संदेश देना चाहते हैं कि अब विदेश जाने के लिए घंटों पहले दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पहुंचकर इंतजार करने की जरूरत नहीं होगी. चूँकि जेवर उस इलाके में है जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अहम हिस्सा है और जहां किसान आंदोलन का इतना असर है जहां सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता भी वहां और आसपास के गांवों में जाने से डरते हैं. लिहाज़ा,चुनाव से पहले जेवर एयरपोर्ट के इस शिलान्यास को बीजेपी के एक बड़े सियासी मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जाना ग़लत नहीं होगा.

लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि सत्ता में बैठे लोग इतिहास का ज़िक्र अपने मनमाफिक ही करते हैं और हर पांच साल में अपना भाग्यविधाता चुनने वाली जनता इतनी नादान बन जाती है कि वो सारा इतिहास ही भूल जाती है. पर,किया क्या जाये क्योंकि लोकतंत्र में तो हर पांच साल बाद आने वाला चुनाव ही किसी भी राजनीतिक दल के लिए जीने-मरने का ऐसा सवाल बन जाता है कि वो चाहते हुए भी जनता को उसका इतिहास बताने से अक्सर कतराता है.

पर, सच ये भी है कि जेवर में बनने वाले जिस नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का शिलान्यास आज पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ करने वाले हैं, उसका सपना आज से 20 साल पहले यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री और आज देश के रक्षा मंत्री का जिम्मा संभाल रहे राजनाथ सिंह ने ही न सिर्फ देखा था,बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए अपने स्तर पर शुरुआत भी कर दी थी. लेकिन इसे अलग बात कहके किनारे नहीं किया जा सकता क्योंकि ये एक  बेहद चिंता का भी विषय है कि अगर केंद्र में छोटे दलों के समर्थन से बानी गठबंधन वाली खिचड़ी सरकार हो,तो वह कुछ फैसले लेने में भी कितनी बेबस व असहाय हो जाती है.साल 2001 में राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार को ग्रीन फील्ड ताज इंटरनेशनल एयरपोर्ट एंड एविएशन हब (टीआईएएएच) की स्थापना गौतमबुद्ध नगर के जेवर में करने का प्रस्ताव भेजा था.

केंद्र सरकार ने अप्रैल 2003 में टीआईएएएच को तकनीकी-व्यवहार्यता की मंजूरी भी दे दी थी. मतलब, केंद्र में बैठी वाजपेयी सरकार उस वक़्त ही जेवर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए तैयार हो गई थी.अगर, तभी इस पर काम शुरु हो गया होता,तो आज सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि समूचा उत्तर भारत तरक्की व विकास के पहियों पर चढ़कर अपनी मूंछों पर ताव दे रहा होता. लेकिन सियासत ही एक ऐसी बेमुराद है,जो देश की बागडोर संभालने वालों से हर वो काम करवा ही देती है,जिसके लिए कई बार उनकी आत्मा भी गवारा नहीं करती.

अब हम इसे राजनाथ सिंह की किस्मत कहें या वेस्ट यूपी के लोगों का दुर्भाग्य कि उस प्रस्ताव पर ऐसा ग्रहण लगा कि न तो बाजपेयी सरकार और न ही बाद में,दस साल तक राज करने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने ही उसे आगे बढ़ाने पर कोई गौर किया.दरअसल,जब राजनाथ ने केंद्र को ये प्रस्ताव भेजा था,तब भी आज की तरह ही डबल इंजन वाली सरकार थी.लेकिन कुदरत का खेल देखिये कि जेवर में अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने का प्रस्ताव भेजने के कुछ महीने बाद ही यानी 7 मार्च 2002 को राजनाथ सिंह की सरकार चली गई. यूपी में राष्ट्रपति शासन लग गया और उसके बाद जब चुनाव हुए तो बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

मुलायम सिंह यादव को सत्ता में आने से रोकने के लिए तब बीजेपी के पास और कोई चारा नहीं था,सो उसने बीएसपी को समर्थन देकर एक बार फिर मायावती को मुख्यमंत्री बनवा दिया.वैसे तो गौतमबुद्ध नगर को मायावती का गृह जनपद बताया जाता है और ये भी दावा किया जाता है कि वह जेवर में हवाईअड्डा बनाने के लिए हमेशा उत्सुक रहीं.लेकिन उन्होंने इसके लिए न तो अपनी तरफ से कोई रुचि दिखाई और न ही वे इसके लिए केंद्र सरकार के ही पीछे पड़ीं. इसीलिये कहते हैं कि सत्ता हमेशा किसी एक की दासी बनकर नहीं रहा करती.आख़िरकार,सियासती अखाड़े के माहिर पहलवान मुलायम सिंह यादव ने अपने ऐसे दांव चले कि उन्होंने 29 अगस्त 2003 को मायावती की सरकार गिरा दो एयर खुद सत्ता पर काबिज हो गए.

साल 2004 में केंद्र में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली  यूपीए सरकार में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ही हिस्सेदार थे. उस वक्त मायावती जेवर में एयरपोर्ट बनवाना चाहती थीं, लेकिन मुलायम सिंह यादव आगरा के आसपास एयरपोर्ट को शिफ्ट करवाना चाहते थे. तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने जेवर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को लेकर सांप और छछूंदर जैसी स्थिति बनी रही क्योंकि अगर वे मायावती को खुश रखने के लिए जेवर में एयरपोर्ट बनाते तो मुलायम सिंह यादव रूठ जाते और अगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को आगरा में शिफ्ट कर देते तो मायावती चंडी रूप देखने को मिलता. लिहाजा, मनमोहन सरकार ने 10 साल तक जेवर का पेंच फंसाये ही रखा. दरअसल, जब दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जीएमआर समूह को सौंपा गया,था तब केंद्र सरकार के साथ हुए समझौते में के शर्त रखी गई थी कि इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 100 किलोमीटर के दायरे में नया इंटरनेशनल एयरपोर्ट नहीं बनाया जाएगा. बता दें कि दिल्ली और जेवर में बनने वाले एयरपोर्ट के बीच की दूरी 72 किलोमीटर है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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