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Opinion: शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र तय, फिर कोर्ट कम उम्र की शादी को क्यों कर रहा वैध? जानें कानूनी जवाब

शादी की न्यूनतम उम्र को लेकर हालिया कुछ मसलों से थोड़ी भ्रम की स्थिति बनी है. एक कानून है जो कहता है कि 18 से कम उम्र की लड़कियों की शादी गैर-कानूनी है, लेकिन अभी तीन-चार हाईकोर्ट्स ने अपने फैसले में उसको जायज ठहराया है, उससे यह संदेश जा रहा है कि किसी समुदाय विशेष में शादी की उम्र कम हो सकती है. हालांकि, उन फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली है, लेकिन जब तक सुप्रीम कोर्ट उस पर बिल्कुल साफ फैसला नहीं देगा, तब तक शादी की न्यूनतम उम्र औऱ इंटरकोर्स को लेकर एक भ्रम तो बना ही रहेगा. 

18 साल है लड़कियों की न्यूनतम उम्र

दो बातों को समझने की जरूरत हैं. पहला, शादी की न्यूनतम उम्र क्या है और दूसरा, सेक्सुअल इंटरकोर्स की क्या उम्र है? विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल है- लड़कियों के लिए. हालांकि, एकाध साल पहले तक ये भी था कि अगर लड़की की शादी 15 से 18 वर्ष के बीच हुई है औऱ शादी के बाद सेक्सुअल इंटरकोर्स हुआ है, तो वह रेप के दायरे में नहीं आएगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने बिल्कुल साफ फैसले में यह कहा है कि इस तरह का कोई अपवाद काम नहीं करेगा और अगर शादी 18 से कम की उम्र में होती है और उसके बाद सेक्सुअल इंटरकोर्स होता है, तो वह रेप के दायरे में ही आएगा. उसके बाद कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने एक बिल लाने की कोशिश की, जिसमें लड़कियों की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 साल करने की बात थी, ताकि लड़कियों की शिक्षा पूरी हो सके, उनका शारीरिक-मानसिक विकास हो सके. यह बिल अभी पेंडिंग है. समस्या ये है कि जो अभी 18 साल न्यूयनतम वाली बात है, उसको भी फॉलो नहीं किया जा रहा है.

भारत की जो दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है, वह मुस्लिम समुदाय पर्सनल लॉ से चलता है और पर्सनल लॉ को अलग-अलग हाईकोर्ट ने, चाहे वह गुजरात हाईकोर्ट हो, दिल्ली हाईकोर्ट हो या पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट हो, ने व्याख्यायित किया है. उन्होंने पिछले छह महीने से साल भर के बीच यह व्याख्या दी है कि अगर मुस्लिम लड़की ने 18 से कम की उम्र में भी शादी की है, तो वह ठीक है. अब उसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है. खुद बाल आयोग भी पहुंचा है  सुप्रीम कोर्ट, तो एक संशय की अवस्था बनी हुई है. 

शादी के इतर भी होता है इंटरकोर्स

अभी कुछ समय पहले राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने एक विधेयक पारित किया था, जिसमें किसी भी तरह की शादी, जिसमें बाल-विवाह भी शामिल है, का निबंधन या रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया गया है. फिर, जब सुप्रीम कोर्ट में उस फैसले को चुनौती दी गयी, तो नोटिस इशू होने के पहले ही राजस्थान सरकार ने उसे वापस ले लिया. यह तो एक तरह से बाल-विवाह को बढ़ावा देने के बराबर हुआ. दूसरी जो बात है, वह सेक्सुअल कंडक्ट की है. शादी के इतर भी लड़के और लड़कियां सेक्सुअल इंटरकोर्स करते हैं और यह उनका अधिकार है, संविधान उसकी आज्ञा देता है. उसमें लेकिन ये बात है कि अगर लड़की की उम्र 18 से कम की हुई, तो उसे रेप माना जा सकता है, पॉक्सो एक्ट लग सकता है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाईकोर्ट ने यह पाया है कि कई बार अलग-अलग मामलों में प्यार और इश्क की वजह से यह इंटरकोर्स होता है, इसीलिए उसे रेप मानने से इंकार करता है. इसीलिए, कोर्ट ने सरकार को यह सोचने को कहा है कि इस मसले पर सोचा जाए. इस पर लॉ कमीशन ने बाकायदा सिफारिश की है कि कोर्ट को अगर किसी एक मामले में कुछ अलग लगता है, तो वह उसको अलहदा तरीके से ट्रीट करे, अगर कोर्ट को लगता है कि यह प्रेम-प्रसंग है, तो अलग तरीके से विचार करे. हां, उम्र को कम करने की सिफारिश उसने भी नहीं की है. 

यूनिफॉर्म सिविल कोड से मिलेगी मदद

अभी तो जो कानून संसद ने बनाया है, उस हिसाब से सेक्युलर लॉ तो यही कहता है कि 18 साल से कम की लड़की का विवाह कानूनी नहीं है. सेक्युलर लॉज में कुछ और कानून जैसे रेप एक्ट, पॉक्सो एक्ट वगैरह भी आ जाते हैं. हालांकि, तीन से चार हाईकोर्ट ने उन विवाहों को भी लीगल माना है, जिसमें 18 से कम उम्र की मुस्लिम लड़की की शादी हुई है. सुप्रीम कोर्ट में उसका विरोध हुआ है, लेकिन अभी जब तक सुप्रीम कोर्ट उसके खिलाफ फैसला नहीं देता, तब तक यह मानना होगा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए 18 से कम उम्र की शादी वैधानिक है, बाकी धर्मों के लिए नहीं है. उसमें लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 ही की उम्र है. जहां तक यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात है, तो उसमें तीन ही बातों पर चर्चा होगी. पहला, कौन विवाह कर सकता है, तो इसमें न्यूननतम उम्र की बात उठेगी. अब वह उम्र जो भी तय होगा, वह सब के लिए होगा, तो भ्रम की स्थिति खत्म होगी.

शादी कैसे होती है, यह दूसरा सवाल है. हिंदू तो कोडिफाई हो गए हैं, लेकिन शिया और सुन्नी तक में अलग है मामला कि कितने विटनेस हैं, अगर मर्द गवाह है तो उसकी संख्या कितनी चाहिए, औरतों के मामले में क्या होगा. तीसरा सवाल है विवाह के खत्म होने का, तो पहले हिंदुओं में डाइवोर्स नहीं था, लेकिन उन्होंने अब्राहमिक रिलिजन चाहे वो इस्लाम हो या ईसाइयत, उनसे यह ले लिया. मुस्लिमों में तलाक एक विवादित मसला है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर भले ही रोक लगा दिया है, लेकिन दूसरी तरह का तीन तलाक अभी भी जारी है. इन सबको दुरुस्त करने में यूनिफॉर्म सिविल कोड सहायक तो होगा ही. 

जिस तरह सेम-सेक्स मैरिज का मामला उठा और बाकी कोर्ट्स के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वह मसला अपने हाथ में लिया था, तो उसमें एक बात सोचनी चाहिए. जो 140 करोड़ लोगों के भविष्य को प्रभावित कर दे, पर्सनल लॉ को बदलने की बात आ जाए, तो वह काम संसद के ऊपर ही करना चाहिए. कोर्ट के पास न तो उतने संसाधन हैं, न ही संविधान ने उनको यह अधिकार दिया है. हां, जहां तक उम्र को ठीक करने की बात है, तो उसमें देर करने की कोई बात नहीं है. यह काम लेकिन संसद को करना चाहिए, न्यायपालिका को नहीं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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