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इजरायल ने किया है मजबूरी में चार दिनों का संघर्ष-विराम, हमास की बर्बादी तक वह जारी रखेगा जंग

हमास और इजरायल के बीच चल रहा संघर्ष 50 दिनों का होनेवाला है. इसी के साथ चार दिनों का अल्पकालीन संघर्षविराम भी हुआ है. बंधकों की अदलाबदली भी हुई है, लेकिन यह अल्पविराम कितना बढ़ेगा या बढ़ते-बढ़ते युद्ध का खात्मा कब होगा, यह कहना मुश्किल है. इजरायल ने चार दिनों के ट्रूस की बात मान तो ली है, लेकिन वह भी जानता है कि अभी तक हमास का खात्मा नहीं हुआ है. हमास को छोड़ना मतलब उसको फिर से जड़ें जमाने का मौका देना है, यह बात इजरायल से बेहतर कोई नहीं जानता है. 

अल्पकालीन होगा यह युद्धविराम

यह जो टेंपररी ट्रूस है, चार दिनों का. यह दरअसल, अक्टूबर में हमास के आतंकियों ने जब इजरायल के अंदर घुसकर हमला किया था, तब जो बंधक बनाए गए थे, उनको मुक्त कराने के नाम पर हुई बेहद अल्पकाल की शांति है. इजरायल का कहना है कि 240 बंधकों को हमास अपने साथ ले गया था, इजरायल का खुला लक्ष्य भी पहले से घोषित है कि वह हमास की बर्बादी तक यह लड़ाई जारी रखेगा. इसके लिए उसने घनी आबादी वाले इलाकों में भी ऑपरेशन चलाया. जब अस्पताल पर हमले की तस्वीरें आने लगीं तो दुनिया में खलबली मची. खलबली को देखते हुए, दुनिया के बड़े देशों, जैसे अमेरिका के ऊपर भी दबाव पड़ने लगा. इसी में हमास के लिए उम्मीद भी थी. ऐसे में कतर जैसे देश काम आते हैं. उन्होंने कतर में एक मीटिंग की, जिसमें समझौता हुआ. इसके बदले हमास ने बंधकों को छोड़ने का फॉर्मूला दिया था. हालांकि, सोच कर देखें तो समझौते में हुआ क्या है? इजरायल बंधकों की संख्या 240 बताता है, हमास का कहना है कि 1200 से अधिक लोगों को इजरायल ने बंधक बना रखा है. ये जो दोनों तरफ की संख्या है, उसके मुकाबले छोड़ना तो बहुत कम का हुआ है. करीबन पचासेक बंधक छोड़े गए हैं. इजरायल ने 39 और हमास ने 13 बंधक छोड़े हैं. ये तो संख्या बल में भी बहुत कम है, अगर तुलना करें तो. दूसरी तरफ जो छोड़े गए हैं, वे तो 70 के ऊपर की महिलाएं, बुजुर्ग इत्यादि हैं. अभी तो बहुतेर जवान भी हमास के कब्जे में हैं. उसी तरह का हाल इजरायल का भी है, ऐसा हमास का दावा है. तो, यह जो अल्पविराम हुआ है, यह बेहद अल्पकालीन लगता है, इसके आगे बढ़ने के आसार नहीं दिखते हैं. हालांकि, ऐसा भी देखा गया है जहां बहुत अंधेरा होता है, वहां से रोशनी फूटती है. तो, यह जो ट्रूस है, टेंपररी वह 8 दिनों से 16 और 16 से और आगे तक लागू हो जाए, हालांकि इसके आसार भी दिखते नहीं, फिर भी उसके बाद युद्ध के खत्म होने की संभावना नहीं दिख रही है. ये चिंताजनक है. 

इजरायल की मजबूरी है

इजरायल द्वारा यह मजबूरी में लिया गया कदम है. अल्पविराम कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसके लिए इजरायल एकदम से सहमत हो गया. इजरायल का साथ देनेवाले बड़े देशों पर चूंकि दबाव था, इसलिए ऐसी परिस्थिति में इजरायल ने जो दुनिया के सामने अपना एजेंडा रखा था कि बंधकों को फ्री करवाए बिना वह युद्ध नहीं रोकेगा, तो वह शायद पूरा होता दिखता है. हां, साथ में भले ही यह भी कहा था कि हमास की बर्बादी तक यह जंग जारी रहेगी, लेकिन मुख्य मकसद को पूरा कर लेने के बाद इजरायल भी इस पर राजी हो गया है. हमास ने जब कतर के माध्यम से संधि की बातें रखवाईं, तो इजरायल के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, क्योंकि हमास काफी कमजोर हो चुका था, वह बंधकों को रिहा करने पर राजी था, तो इजरायल के पास अब अल्पविराम पर राजी होने के अलावा कोई चारा नहीं था. इजरायल में भी जिन परिवार के लोगों को उठाया गया था, उनका भी दबाव कहीं न कहीं इजरायल की सरकार पर भी था. इसको लेकर इजरायल में एक बहुत बड़ा प्रदर्शन भी हुआ था. नेतन्याहू सरकार ने इस बात को स्वीकारा भी है. इजरायल के अंदर बहुमत में वो ही लोग हैं, जो हमास की बर्बादी तक इस जंग को जारी रखना चाहते हैं तो सवाल ये है कि ट्रूस कब तक जारी रहता है, क्योंकि लक्षण तो सारे यही हैं कि यह अल्पविराम बहुत टिकने वाला नहीं है. 

हमास की बर्बादी तक, जंग रहेगी

कोई भी सरकार जब किसी आतंकी संगठन से ट्रूस पर आती है, तो यही कहा जाता है कि जब तक वह संगठन बहुत कमजोर न हो जाए, तब तक छोटी भी संधि न करो. इस अल्पविराम का फायदा इतिहास में हमने यही देखा है कि आतंकी संगठन अपने आप को इतने दिनों में फिर संगठित कर लेते हैं. श्रीलंका में एलटीटीई की यही रणनीति थी. चार बार युद्ध हुए और हरेक बार ट्रूस का फायदा उठाकर लिट्टे वालों ने खुद को और मजबूत किया. यही वजह रही कि जब आखिरी युद्ध हुआ तो श्रीलंका सरकार ने लिट्टे को खत्म कर ही दम लिया. दुनिया में चाहे जितना भी शोर हुआ, राजपक्षे सरकार ने जब तक प्रभाकरण को खत्म नहीं किया, लिट्टे को जमीन में नहीं मिला दिया, युद्धविराम नहीं किया. निश्चित तौर पर हमास इन युद्धविराम का फायदा उठाकर हमास खुद को फिर संगठित करना चाहेगा. हालांकि, इजरायल की जो शैली थी, जो भीषण हमला उन्होंने किया था, उसके मुताबिक तो हमास के मिटने में बस कुछ ही कसर रह गयी होगी, वरना वह नेस्तनाबूद तो हो चुका है. इसलिए भी शायद इजरायल इस संधि पर तैयार हो चुका है, लेकिन फिर भी वही बात कहनी होगी कि यह संधि कितने दिनों तक टिकेगी, कहना मुश्किल है. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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