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अंतरिम बजट और आम चुनाव, 2024: ख़ास की उम्मीद बेमानी, लेकिन मोदी सरकार ले सकती है बड़े फ़ैसले

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के अभिभाषण के साथ ही संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए मौजूदा मोदी सरकार की उपलब्धियों और नीतियों से संसद को अवगत कराया. 31 जनवरी से शुरू हुआ यह बजट सत्र नौ फरवरी तक चलेगा.

संसद का मौजूदा सत्र वर्तमान केंद्र सरकार या कहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली वर्तमान एनडीए सरकार का आख़िरी सत्र है. सरल शब्दों में कहें, तो, यह मोदी सरकार के लगातार दूसरे कार्यकाल का आखिरी सत्र है. इस लिहाज़ से यह वर्तमान लोक सभा या'नी 17वीं लोक सभा का भी आख़िरी सत्र है. हर साल की भाँति चलने वाले बजट सत्र की तुलना में संसद का यह सत्र बहुत छोटा है. इसके पीछे एक ख़ास वज्ह है.

चुनावी साल और अंतरिम बजट की व्यवस्था

हम सब जानते हैं कि चुनावी साल में बजट सत्र छोटा ही होता है. इस साल अप्रैल-मई में आम चुनाव या'नी लोक सभा चुनाव होना निर्धारित है. जब-जब चुनावी साल होता है, तो उस दौरान बजट सत्र की अवधि हमेशा ही संक्षिप्त रखी जाती है. इसका कारण यह है कि इस तरह के सत्र में पूर्ण बजट पेश नहीं किया जाता है, बल्कि अंतरिम बजट (Interim Budget) पेश किया जाता है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को अंतरिम बजट पेश करेंगी. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह आख़िरी बजट होगा. यह छठा मौक़ा होगा, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश कर रही होंगी. यह अंतरिम बजट एक और कारण से ख़ास है. नए संसद भवन में यह देश का पहला बजट है.

चुनाव के बाद नयी सरकार ही लाती है पूर्ण बजट

अप्रैल-मई में निर्धारित आम चुनाव के बाद सरकार बदल जायेगी और जो नयी सरकार बनेगी, वो पूरे साल के लिए पू्र्ण बजट पेश करेगी. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह बजट अंतरिम है और इसका मकसद ही होता है कि जब तक नयी लोक सभा और नयी सरकार का गठन हो जाए, तब तक के लिए सरकारी राजस्व और ख़र्च की व्यवस्था इस बजट के माध्यम से सुनिश्चित कर दिया जाता है. अमूमन यह दो महीने के लिए होता है, हालाँकि ज़रूरत पड़ने पर इसकी मी'आद अधिक भी हो सकती है.

संविधान में अंतरिम बजट का प्रावधान नहीं

हमारे संविधान में 'बजट' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 112 में "वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Finacial Statement)" का ज़िक्र है. बजट इसी "वार्षिक वित्तीय विवरण" का प्रचलित नाम है. एक बात समझने की ज़रूरत है. संविधान में "वार्षिक वित्तीय विवरण" के तौर पर बजट से जुड़े प्रावधान तो हैं, लेकिन अंतरिम बजट जैसी अवधारणा संविधान का हिस्सा नहीं है.

जब भी चुनावी साल होता है, तब मौजूदा सरकार अंतरिम बजट ही पेश करती है, जिससे नयी सरकार को पूरे वर्ष के लिए राजस्व और व्यय के अनुमान को निर्धारित करने का मौक़ा मिल सके. यही कारण है कि अंतरिम बजट पर संसद में चर्चा सामान्य बजट की तरह नहीं होती है. इससे संबंधित राजस्व और व्यय के अनुमानों को बिना पर्याप्त चर्चा ही संसद की मंज़ूरी दे दी जाती है.

अंतरिम बजट को लेकर उम्मीदें और वास्तविकता

चाहे बजट सामान्य हो या अंतरिम हो, इसके प्रति देश के आम लोगों से लेकर हर क्षेत्र को कुछ ख़ास उम्मीदें होती हैं. जब निर्मला सीतारमण एक फरवरी को अंतरिम बजट संसद में पेश करेंगी, तो आम लोगों से लेकर हर क्षेत्र से जुड़े लोगों की दिलचस्पी अपने-अपने हितों से जुड़े प्रावधानों को जानने की होगी.

उसमें भी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, जो कब-क्या फ़ैसला करेंगे, इसका अनुमान लगाना हर किसी के लिए एक पहेली ही है. मई 2014 से हम सबने कई ऐसे मौक़े देखें है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ़ सरकारी स्तर पर, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर भी अचानक ही ऐसे फ़ैसले लिए हैं, जो अतीत में देखने को कम ही मिलता था.

अंतरिम बजट को लेकर रही है ख़ास परंपरा

इतनी उम्मीदों के बावजूद एक बात हर किसी को समझनी चाहिए कि यह बजट अंतरिम है, पूर्ण नहीं. अंतरिम बजट के संवैधानिक और व्यावहारिक मकसद पर अगर ग़ौर करें, तो इसको लेकर अधिक अपेक्षा करना ही बेमानी है. चुनावी साल के लिए अंतरिम बजट की व्यवस्था की गयी है. ऐसे में वर्षों से परंपरा रही है कि इस तरह के बजट में मौजूदा सरकार बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा करने से बचती है. चुनाव बाद किस तरह की सरकारी और राजनीतिक व्यवस्था बने, उसके मद्द-ए-नज़र तमाम सरकारें नीतिगत निर्णयों को अंतरिम बजट में शामिल करने से बचती रही हैं.

चुनावी माहौल में अंतरिम बजट से अपेक्षा

इस तथ्य के बावजूद अतीत में कुछ ऐसे उदाहरण रहे हैं, जब अंतरिम बजट में केंद्र सरकार ने कुछ ऐसी घोषणा की हैं, जिसका सरकारी ख़जाने पर बोझ उन दो-चार महीनों तक ही नहीं पड़ता है, बल्कि यह बोझ बदस्तूर भविष्य में जारी रहता है. नीतिगत मामलों से जुड़े फ़ैसलों को भी अंतरिम बजट में गाहे-ब-गाहे जगह मिलता रहा है. उसमें भी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, तो चुनावी माहौल को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि निर्मला सीतारमण के अंतरिम बजट के पिटारे से भी एक फरवरी को कुछ बड़ा निकल जाए. कुछ ऐसा भी हो सकता है, जिसके बारे में अब तक किसी ने कोई अनुमान नहीं लगाया हो.

परंपरा को तोड़ते आए हैं पीएम नरेंद्र मोदी

याद दिला दूँ कि मौजूदा मोदी सरकार ने ही पिछली बार चुनावी साल 2019 में भी अंतरिम बजट पेश किया था. उस वक़्त मोदी सरकार ने एक ऐसी बड़ी योजना की घोषणा की थी, जिसका असर आने वाले लोक सभा चुनाव पर व्यापक तौर से देखा गया था. मोदी सरकार की ओर से 2019 में लाए गए अंतरिम बजट में किसानों को लेकर एक बड़ी योजना की घोषणा की गयी थी. उस योजना का नाम 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' था. इसके तहत सरकार की ओर से किसानों के खाते में सीधे राशि ट्रांसफर करने की व्यवस्था की गयी.

यह किसानों के लिए डायरेक्ट इनकम सपोर्ट स्कीम था. पीएम किसान सम्मान निधि योजना भारत सरकार से 100% फंडिंग वाली योजना है, जिसमें धनराशि सीधे लाभार्थी किसानों के बैंक खाते में चली जाती है. इसके तहत सालाना 6 हज़ार रुपये की राशि दो हज़ार रुपये की तीन समान किस्तों में किसानों को प्राप्त होता है.

अंतरिम बजट में ही किसान सम्मान निधि का एलान

इतना ही नहीं, इस स्कीम को पहले की तारीख़ या'नी दिसंबर 2018 से ही लागू करने के लिहाज़ से प्रावधान किया गया. इसका मकसद यही था कि 2019 के अप्रैल-मई में होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले बड़ी संख्या में किसानों के खाते में योजना की राशि पहुँच जाए. एलान के तुरंत बाद ही फरवरी, 2019 में ही योजना शुरू हो गयी. आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्तमान समय में इस योजना के लिए ही कृषि और किसान कल्याण विभाग के तहत सबसे अधिक आवंटन होता है.

मोदी सरकार ने 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले इस योजना को शुरू करने का ऐलान अंतरिम बजट में किया था. इसके साथ ही मोदी सरकार ने उस परंपरा को भी तोड़ दिया था, जिसके तहत अंतरिम बजट में किसी बड़ी योजना को शुरू करने से सरकारें बचती थीं. जिस तरह से पिछली बार मोदी सरकार ने किसानों को सीधे लाभ से जुड़ी इस योजना को अंतरिम बजट में शुरू किया था, वो उसके पीछे तात्कालिक चुनावी लाभ की मंशा ज़रूर रही होगी. इससे शायद ही कोई इंकार करे.

एक तरह से उस वक़्त मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि अंतरिम बजट को लेकर भी लोग उम्मीदें न छोड़ें. मोदी सरकार है, तो कुछ भी मुमकिन है..यह कहावत या नारा पिछली बार के अंतरिम बजट में चरितार्थ होते हुए हम सबने देखा है. यही कारण है कि इस बार भी अंतरिम बजट को लेकर लोगों की उम्मीदें आम बजट की तरह ही हैं.

किसानों  को लेकर फिर हो सकता है बड़ा फ़ैसला

इस बार भी किसानों को अंतरिम बजट से कुछ और हासिल हो सकता है. चुनावी मौसम में बीजेपी किसानों की नाराज़गी का ख़तरा मोल नहीं ले सकती है. ऐसे भी पिछली लोक सभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद मोदी सरकार कृषि से संबंधित तीन कानून लाई थी. हालाँकि किसानों के भारी विरोध और लंबे संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में होने वाले नुक़सान से बचने के लिए केंद्र सरकार को तीनों कानून वापस लेना पड़ा था.

इसके बावजूद किसानों के एक बड़े तबक़े में मोदी सरकार के रवैये को लेकर काफ़ी रोष है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले चुनाव में वादा किया था कि किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी. किसानों के एक बड़े तबक़े को लगता है कि मोदी सरकार अपने वादे को पूरा करने के लिए ठोस क़दम नहीं उठा पाई. वास्तविकता भी यही है कि 2024 आ गया, लेकिन किसानों की आय दोगुनी हुई हो, ज़मीनी स्तर पर ऐसा दिखता नहीं है.

किसानों में पनपते रोष पर है सरकार की नज़र

ऐसे भी किसान एक बार फिर से आंदोलन की तैयारी में हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में किसान संगठनों की तैयारियों से इसकी सुगबुगाहट महसूस की जा सकती है. हरियाणा और पंजाब के साथ ही उत्तर प्रदेश के किसानों में पिछले आंदोलन के दौरान सरकार की ओर से किए गए वादों को पूरा नहीं करने को लेकर रोष है. दिल्ली की ओर रुख़ करने को लेकर भी किसान संगठनों की ओर से लगातार चेतावनी दी जा रही है.

उपज का वाजिब दाम के लिए ठोस नीति या व्यवस्था, बीमा मुआवजे से जुड़ी नीतियों में सुधार, बीज-उर्वरक की किल्लतों से छुटकारा..ये सब कुछ ऐसे मसले हैं, जिन पर किसान संगठन केंद्र सरकार से ठोस कार्रवाई चाहती है. मोदी सरकार के साथ ही बीजेपी को भी आशंका है कि किसानों का रोष आगामी लोक सभा चुनाव में भारी न पड़ जाए. इसको देखते हुए उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार के अंतरिम बजट में किसानों को लेकर मोदी सरकार पिछली बार की ही तरह कुछ ख़ास एलान कर सकती है.

अंतरिम बजट से पहले प्रधानमंत्री ने दे दिया है संकेत

नरेंद्र मोदी सरकार का दस साल पूरा होने जा रहा है. बीजेपी की अगुवाई में एनडीए का यह लगातार दूसरा कार्यकाल है. इन दोनों ही कार्यकाल में हम सबने देखा है कि चुनाव जीतने के लिए और सरकार में बने रहने के लिए बीजेपी किसी भी हद तक जा  सकती है, कुछ भी कर सकती है. अब तो राजनीति में धर्म का घालमेल भी पूरी तरह से हो चुका है, जिसकी अनुमति संविधान तक नहीं देता है. जब चुनाव जीतना ही राजनीति का एकमात्र मकसद हो जाए, तो फिर अंतरिम बजट में बड़ी-बड़ी घोषणा नहीं करने की परंपरा को कोई ख़ास मतलब नहीं रह जाता है. इसके मद्द-ए-नज़र अगर इस बार के अंतरिम बजट में लोक-लुभावन वादों की झड़ी हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

पूर्ण बजट को लेकर प्रधानमंत्री का बयान और दावा

ऐसे भी अपने दूसरे कार्यकाल के आख़िरी संसद सत्र की शुरूआत से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दे दिया है कि अंतरिम बजट चुनावी बजट रह सकता है. संसद का मौजूदा बजट सत्र शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बयान में एक बात ऐसी कही है, जो राजनीतिक तौर से बेहद महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में कहा कि

"मुझे विश्वास है, आप तो जानते ही है कि जब चुनाव का समय निकट होता है, तब आमतौर पर पूर्ण बजट नहीं रखा जाता है, हम भी उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए पूर्ण बजट नई सरकार बनने के बाद आपके समक्ष लेकर के आएंगे. इस बार एक दिशानिर्देशक बातें लेकर के देश की वित्त मंत्री निर्मला जी हम सबके सामने कल (एक फरवरी) अपना बजट पेश करने वाली है."

इसमें प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट तौर से कहा है कि हम पूर्ण बजट नई सरकार बनने के बाद आपके समक्ष लेकर आएंगे. संवैधानिक तौर से चुनाव का एक महत्व होता है. किसी भी पार्टी की राजनीतिक स्थिति कितनी भी मज़बूत क्यों न हो, चुनाव नतीजों से पहले ही बतौर प्रधानमंत्री संसद परिसर में यह कहना कि अंतरिम बजट के बाद पूर्ण बजट भी हम लेकर आएंगे..यह बयान एक तरह से चुनावी परंपरा और राजनीतिक शुचिता पर ही सवाल खड़ा करता है. चुनावी रैली में या संसद के बाहर बतौर पार्टी नेता इस तरह का दावा करना सही हो सकता है, लेकिन बतौर प्रधानमंत्री संसद परिसर से इस तरह का बयान शायद ही अंतरिम बजट से पहले किसी ने दिया होगा.

आठवें वेतन आयोग से जुड़े फ़ैसले पर नज़र

इस बयान के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार के अंतरिम बजट से जुड़ी अपेक्षाओं की ओर भी इशारा कर दिया है. जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश कर रही होंगी, तो इसकी पूरी गुंजाइश है कि परंपरा से हटकर ऐसे योजनाओं या वादों की भरमार हो सकती है, जिसका चुनाव में सीधा लाभ मिल सके.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संकेत के आधार पर आठवें वेतन आयोग को लेकर भी उम्मीदें बढ़ गयी हैं. पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग को लेकर सरकारी कर्मचारियों में मौजूदा केंद्र सरकार और बीजेपी के प्रति नाराज़गी है. ऐसे में अंतरिम बजट में आठवें वेतन आयोग को लेकर कोई घोषणा या आश्वासन सरकार की ओर से हो, इसकी संभावना है. जैसी परंपरा रही है, इस बार भी इनकम टैक्स के मसले पर अमूमन अंतरिम बजट में कुछ ख़ास देखने को नहीं मिलेगा.

युवाओं को लुभाने पर हो सकता है ख़ास ज़ोर

हर साल दो करोड़ रोज़गार का वादा करते हुए 2014 में बीजेपी केंद्र की सत्ता में आयी थी. उस वक़्त चुनाव प्रचार में ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले को लेकर बार-बार बयान दिया था. रोज़गार के मोर्चे पर मोदी सरकार उस वादे पर खरा उतरने में कामयाब नहीं हुई है. तेज़ आर्थिक वृद्धि और बढ़ती आर्थिक असमानता के बीच बेरोज़गारी देश के सामने फ़िलहाल सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इस मसले पर देश के युवाओं के मन में मोदी सरकार की मंशा को लेकर कई सवाल हैं. आगामी चुनाव में युवाओं का कोपभाजन न बनना पड़े, इसको ध्यान में रखते हुए अंतरिम बजट में मोदी सरकार कुछ ऐसा एलान कर सकती है, जिससे युवाओं की नाराज़गी को तात्कालिक तौर से दूर किया जा सके.

तीसरे कार्यकाल पर है पीएम मोदी की नज़र

परंपरा के नज़रिये से सोचें, तो अंतरिम बजट से बहुत उम्मीदें रखना बेमानी है. इसके बावजूद चुनाव को ध्यान में रखकर मोदी सरकार हर वर्ग के असंतोष को दबाने के लिए अंतरिम बजट में वादों का पिटारा खोल दे, इसकी संभावना भी बनी हुई है. पल-पल बदलती तकनीक के दौर में भारत जैसा विशाल देश में लगातार दो कार्यकाल में सरकार में रहना..कोई छोटी-मोटी बात नहीं है. उसके बाद लगातार तीसरे कार्यकाल पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही बीजेपी की नज़र है. ऐसे में एंटी इनकंबेंसी या'नी सत्ता विरोधी लहर के असर को कम करने के लिए अंतरिम बजट में कुछ नयी बातें देखने को मिले, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.

उसमें भी तब, जब पिछले दस साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम लोगों को ख़ुश करने के लिए तमाम वादे किए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश बाद में या तो जुमला साबित हुआ है या उन वादों को पूरा करने की मी'आद बढ़ाने के लिए बीजेपी के साथ ही सरकारी स्तर पर भी ख़ूब प्रयास किए गए हैं.

इसी का नतीजा है कि 2014 से लेकर 2019 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हर वादे की मी'आद या अवधि 2022 हुआ करती थी. धीरे-धीरे इस मियाद को सरकारी और राजनीतिक स्तर पर आगे बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए गए हैं. अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से देश के लोगों के लिए एक नया वर्ष दे दिया गया..2047 का वर्ष. कोई भी चीज़ हो, कोई भी पहलू हो, उसमें 2047 का मिश्रण ज़रूर आ जाता है.

बजट को लेकर अब पहले जैसी उत्सुकता नहीं

ऐसे एक बात देश के हर नागरिक को समझना चाहिए कि अब बजट को लेकर वैसी उत्सुकता का कोई मतलब नहीं है, जैसी पिछले सदी में होती थी. पिछले दो दशक में बजट का प्रारूप और सरकार के काम-काज का तरीक़ा पूरी तरह से बदल चुका है. पहले पूरे साल में बजट ही वो मौक़ा होता है, जिसमें सरकार की ओर से तमाम योजनाओं की घोषणा की जाती थी. अब ऐसा नहीं है. सरकार साल में कभी भी योजनाओं का घोषणा करती रहती है.  इसके लिए आम बजट का इंतिज़ार अब पुरानी बात हो गयी है.

पहले रेल बजट भी अलग हुआ करता था. आम बजट के पहले रेल बजट पेश करने की परंपरा थी. नयी-नयी रेलगाड़ियों और नये-नये रेल-रूट का एलान रेल बजट में ही होता था. रेलवे से जुड़े बड़े-बड़े प्रोजेक्ट की घोषणा रेल बजट में ही होती थी. हालाँकि अब अलग से रेल बजट की परंपरा नहीं है. रेलवे के लिए आम बजट में ही आवंटन कर दिया जाता है. नई रेलगाड़ियों का एलान भी सरकार की ओर से कभी-भी कर दिया जाता है. रेलवे से जुड़े बड़-बड़े प्रोजेक्ट भी एलान के लिए अब बजट के मोहताज नहीं रह गए हैं. कुल मिलाकर अब बजट का न तो वैसा प्रारूप रहा है और न ही लोगों में वैसी उत्सुकता रही है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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