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जी-7 सम्मेलन में अमेरिका को भी हो गया भारत की बढ़ती ताकत का अहसास

दुनिया के सात समृद्ध और ताकतवर देशों के जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जर्मनी से भारत लौट आये हैं. भारत इस समूह का सदस्य नहीं है लेकिन 2019 से उसे विशेष मेहमान के रूप में बुलाया जा रहा है. पीएम मोदी ने तीसरी बार इसमें शिरकत की है लेकिन इस बार उनका जलवा कुछ अलग ही था. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन खुद आगे बढ़कर मोदी से मुलाकात करने उनके पास आये.

दुनिया के मंच पर ये भारत की उभरती हुई मजबूत ताकत को दर्शाता है. हालांकि विदेश नीति के विश्लेषक मानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत को साधना और उसे रुस के पाले से अलग करना अमेरिका की प्राथमिकता है इसलिए वो भारत को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दी रहा है. सम्मेलन के दौरान बाइडन का दूर से चलकर खुद मोदी के पास आना उसी का एक नमूना था, जिससे संकेत मिलता है कि फिलहाल अमेरिका के लिए भारत कितना अहम है.

सम्मेलन के दो सत्रों में पर्यावरण, ऊर्जा, जलवायु, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और लोकतंत्र जैसे विषयों पर बेहद प्रभावी तरीके से अपनी बात रखते हुए पीएम मोदी बताया कि न क्षेत्रों में भारत ने कितनी तरक्की है. उन्होंने खासकर इस बात पर जोर दिया कि भारत ने सिर्फ महिलाओं के विकास पर ही ध्यान नहीं दिया है बल्कि एक महिला के नेतृत्व में उस क्षेत्र का कितनी बेहतरी से विकास हो सकता है, इसे साकार करके दिखाया है और वह निरंतर इसमें आगे बढ़ रहा है.

ज़ाहिर है कि इस सम्मेलन से इतर जी-7 देशों के प्रमुख नेताओं से भी मोदी की द्विपक्षीय बैठकें हुई हैं. विश्लेषकों के मुताबिक ऐसी बैठकों में ही अमेरिका समेत अन्य देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने मोदी के समक्ष रूस का मुद्दा जरूर उठाया होगा. हालांकि मोदी ने अपने भाषणों में रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई जिक्र नहीं किया.

चूंकि इस बार जी-7 सम्मेलन में भारत के अलावा ब्रिक्स के एक और सदस्य देश दक्षिण अफ्रीका और आशियान के विकासशील देश इंडोनेशिया को भी आमंत्रित किया गया था. दरअसल, इन देशों को बुलाने के पीछे के राजनीतिक कारण को नकारा नहीं जा सकता. वह इसलिए कि इन देशों को एंगेज करके यूक्रेन-रूस युद्ध के अलावा भारत-प्रशांत रणनीति के संदर्भ में भी विकसित देश अपने हित देख रहे हैं.

हालांकि ये सम्मलेन शुरू होने से पहले ही पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन किर्बी ने कहा था कि इस सम्मेलन का मकसद इन देशों को रूस से अलग करना नहीं है, लेकिन हमारा मकसद समान सिद्धांतों और पहलों वाले देशों को एकजुट करना ज़रूर है. वहीं यूक्रेन संकट शुरू होने के समय से ही भारत का रुख स्पष्ट है कि जल्द-से-जल्द युद्ध विराम होना चाहिए और बातचीत एवं कूटनीति के जरिये ही समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए.

विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि भारत को जी-7 में बुलाने का बड़ा कारण ये भी है कि भारत दुनिया के मंच पर तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है. ऐसी सूरत में पश्चिमी देश भारत की ताकत को नजरअंदाज नहीं कर सकते और वे फिर से हमारी तरफ हाथ बढ़ाना चाहते हैं.

जहां तक इन नेताओं के साथ पीएम मोदी की द्विपक्षीय बैठकों में रूस-यूक्रेन का मसला उठाने का सवाल है, तो यूक्रेन के संदर्भ में भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह कोई पक्ष नहीं लेगा और गुटनिरपेक्ष बना रहेगा. लिहाजा इन बैठकों में भी मोदी अपने उसी रुख पर ही कायम रहे होंगे.

इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिमी देशों के नेताओं ने भारत से ये कहा हो कि भले ही आप खुलकर रूस की आलोचना ना करें लेकिन जो साझा मूल्य हैं, लोकतांत्रिक मूल्य हैं, उन पर हमारे साथ आएं. वैसे भी इस मसले पर भारत अभी तक इसमें एक सक्रिय और रचनात्मक भूमिका निभाने की ही कोशिश कर रहा है. भारत की स्पष्ट नीति यही है कि कोई भी समस्या युद्ध से नहीं सुलझ सकती है, कूटनीति से ही हल निकल सकता है. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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