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कोरोना के खतरे की आपदा में भी आखिर सरकार ने ढूंढ ही लिया अपने लिए अवसर?

भारत में कोरोना दोबारा कैसी दस्तक देने वाला है ये तो फिलहाल कोई भी नहीं जानता लेकिन मोदी सरकार ने अगले एक साल के लिए गरीबों को मुफ़्त राशन देने का ऐलान कर के अपनी एक बड़ी तैयारी तो पूरी कर ही ली है. ये घोषणा बताती है कि सरकार के पास इतना इनपुट तो है ही कि इस वायरस का नया वेरिएंट बीएफ. 7 किस हद तक भारत में सक्रिय हो सकता है. 

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाकी देशों के प्रमुखों की तरह अपने देश की जनता को अचानक डराते नहीं हैं बल्कि उन्हें मानसिक रूप से तैयार करते हैं. आपको याद होगा कि कोरोना का नाम पहली बार सुनने के बाद हमारा वास्ता ऐसी बंदिश को अपनाने से हुआ जिसके लिये किसी सरकार ने मजबूर नहीं किया था लेकिन उसके पीछे मानव भावनाओं को भुनाने और उसे अपने मुताबिक अमल करवाने का जो बड़ा लक्ष्य था वो पूरी तरह से कामयाब हुआ था. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर देशवासियों ने साल 2020 के 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन करते हुए शाम को नीयत समय पर थाली और ताली भी बजाई थी. मकसद ये था कि लोग बंदिशों को अपनाने औऱ उसमें रहने के आदी बन जाए. उसके फ़ौरन बाद देशव्यापी लॉकडाउन लग गया था. सौ साल बाद ऐसी महामारी आई थी इसलिये हरे एक के लिए वो एक नया व अनूठा अनुभव था. भारत की अधिकांश जनता अब इसकी आदी बन चुकी है लेकिन सरकार के लिए चिंता की बात ये है कि चीन में इस कोरोना वायरस ने जैसा कहर बरपाना शुरू किया है वो खतरे का अलार्म है.

गौरतलब है कि दिसम्बर 2019 में  चीन के वुहान प्रान्त से निकले इसी बेमुराद कोविड वायरस ने लगभग समूची दुनिया में तबाही मचाई थी लेकिन तब चीन ने खुद को पूरी तरह से सुरक्षा कवच में घेर रखा था. वही चीन अब इस वायरस के आगे बेबस मजबूर व असहाय नजर आता दिख रहा है लेकिन वो पूरी दुनिया से ये सच छिपा रहा है कि उसके यहां हर दिन कितने हजार लोग संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं. वहीं भारत इस बार पूरी तरह से अलर्ट है इसीलिये पीएम मोदी ने पहले हाई लेवल मीटिंग कर के हालात की समीक्षा की और फिर अगले ही दिन गरीबों को मुफ्त राशन देने की अपनी योजना को एक साल के लिए और आगे बढ़ा दिया. इसे दूसरे अर्थों में समझें तो कोरोना बेशक ही वैसा कहर हमारे यहां न बरपाये लेकिन मोदी सरकार के लिए सियासी लिहाज से तो ये रामबाण ही साबित होने वाला है. 

इसलिये कि लोकसभा चुनाव से पहले अगले साल 13 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. लिहाजा, उन सभी राज्यों के राशन कार्ड धारियों को इसका फायदा मिलता रहेगा जो बीजेपी के लिए एक बड़े वोट बैंक में तब्दील हो सकता है. कहते हैं कि एक कुशल प्रशासक आपदा में भी अवसर खोजता है इसलिये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी ने कोरोना के बढ़ते हुए खतरे के बहाने अपनी सियासी जमीन मजबूत करने का माकूल इंतजाम कर लिया है. हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत खाद्यान्न अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे. हम ऐसा नहीं कह रहे कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा. 

केंद्र सरकार ने कोविड के दौरान लोगों तक अनाज पहुंचाया है. हमें यह भी देखना होगा कि यह जारी रहे. हमारी संस्कृति है कि कोई खाली पेट नहीं सोए. बीते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कोविड और लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को हुई परेशानियों पर जब सुनवाई हो रही थी तभी सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की. बता दें, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून देश में 10 सितंबर 2013 को यूपीए सरकार के दौरान लागू हुआ था. इसका उद्देश्य लोगों को गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित कराना है, ताकि लोगों को खाद्य और पोषण सुरक्षा दी जा सके. 

इस कानून के तहत 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को कवरेज मिला है, जिन्हें बेहद कम कीमतों पर सरकार द्वारा अनाज मुहैया कराया जाता है. सरकार प्रति व्यक्ति प्रति माह 1-3 रुपये प्रति किलोग्राम पर पांच किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करती है. इस अधिनियम के तहत व्यक्ति को चावल 3 रुपये, गेहूं 2 रुपये और मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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