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Opinion: तेलंगाना में सभी विरोधी दल बीजेपी को लेकर ही साध रही निशाना, जानिए इसकी खास वजह

तेलंगाना में आज यानी 27 नवंबर की शाम तक चुनाव प्रचार चला और आज सभी दलों, नेताओं ने जैसे जान लगा दी. कांग्रेस हो या बीआरएस, भाजपा हो या एआइएमआइएम, सभी ने अपने शीर्ष नेताओं के साथ जमकर धुआंधार चुनाव-प्रचार किया. हालांकि, इसी बीच यह भी हुआ कि तेलंगाना का पूरा चुनाव मानो भाजपा-विरोध पर आकर केंद्रित हो गया. हरेक दल दूसरे को भाजपा का सहयोगी बताने लगा. कांग्रेस ने ओवैसी को और बीआरएस को भाजपा की बी-टीम बताया तो ओवैसी ने कांग्रेस पर ही जोरदार हमला बोल दिया. इसी बीच प्रधानमंत्री ने अपनी रैली में यह कहा कि बीआरएस तो एनडीए का सहयोगी बनना चाहता था, जिससे माहौल में और भी गर्मी आ गयी। 

केसीआर की राह नहीं है मुश्किल

27 नवंबर 2023 की शाम पांच बजे तक तेलंगाना में प्रचार हुआ और क्या जबर्दस्त तरीके से हुआ. प्रधानमंत्री दौरा कर रहे हैं, वह चौथी बार गए. अमित शाह उधर ही थे. योगी आदित्यनाथ वहीं मौजूद थे. कांग्रेस के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तेलंगाना में थे. मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी राहुल गांधी ने इतना जबर्दस्त प्रचार नहीं किया था. उनको कमलनाथ और सचिन पायलट, अशोक गहलोत ने उनको कम मौजूद रहने के ही संकेत दिए थे, लेकिन तेलंगाना में तो दोनों राष्ट्रीय दलों ने, चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा हो, टीआरएस  (बीआरएस)  को दबाना चाहते हैं. तेलंगाना का उदय जो 10 साल पहले अलग राज्य के तौर पर हुआ है, वह के चंद्रशेखर राव की वजह से हुआ है. केसीआर को टक्कर बहुत है, दबदबा बहुत है, उनके खिलाफ एंटी-इनकम्बैन्सी भी नहीं है, वह लगभग जीत की राह पर हैं. वह तीसरी बार सरकार बना सकते हैं. 

कांग्रेस हो चुकी है तेलंगाना में खत्म

केसीआर को टारगेट इसीलिए किया जा रहा है, क्योंकि विकल्प नहीं है. कांग्रेस सिर्फ पेपर टाइगर है, जमीन पर उसकी हकीकत नहीं है. भारत राष्ट्र समिति को इसीलिए कभी बीजेपी की बी टीम बताकर तो कभी कुछ और कहकर टारगेट किया जा रहा है. भारत राष्ट्र समिति जो कभी तेलंगाना राष्ट्र समिति थी, सबसे पुराने क्षेत्रीय दलों में से एक है. कम से कम 25 वर्षों से राजनीति कर रही है. उस नजरिए से अगर देखें तो यह समझ में आता है कि कांग्रेस जान-बूझकर बीआरएस को भाजपा के साथ जोड़ रही है, ताकि किसी तरह एक तिकोना खेल बन सके. बीजेपी हालांकि, बहुत आगे है इस रेस में. कांग्रेस बहुत पीछे है, इसलिए केसीआर के फिर से सत्ता में आने के चांस बहुत अधिक हैं. कांग्रेस के पास यहां लीडरशिप नहीं है, तो 5 एमएलए से 100 विधायक कैसे बनेंगे. चुनाव आयोग ने अभी भले बोल दिया है कि जो बेनेफिट्स हैं उसको अभी डिस्ट्रीब्यूट नहीं करना है, लेकिन केसीआर उसकी चर्चा तो कर ही रहे हैं. उसी तरह केसीआर पर भले ही चौतरफा दबाने की कोशिश हो, हमले हो रहे हों, केसीआर को धर्मसंकट में डालने की कोशिश हो रही हो, लेकिन केसीआर को रोकना थोड़ा मुश्किल है. 

माइनॉरिटी वोट्स, कांग्रेस की आस

कांग्रेस चूंकि मर चुकी है. बगल के राज्य आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस का वजूद नहीं है. यह बस माइनॉरिटी को भड़काने का कांग्रेसी शिगूफा है कि केसीआर तो भाजपा के दोस्त हैं, ओवैसी भाजपा की बी-टीम है, तो भाजपा ने सबको मिला लिया है, वगैरह-वगैरह. कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई अस्तित्व नहीं बचा और क्षेत्रीय स्तर पर भी. आंध्र में जब तक वाइएसआर रेड्डी थे, तो 40 सीट तक आते थे, दबदबा था कांग्रेस का. उन्होंने जब उसी का बंटवारा किया, तो तेलंगाना बना. राज्यसभा और लोकसभा भरे रहते थे, कांग्रेसियों से. बीजेपी को निशाना इसलिए बना रहे हैं, क्योंकि माइनॉरिटी वोटों को अपनाना है. आप देखिए न, मोदी साहब ने तो आज खुलेआम बोल ही दिया न कि बीआरएस शामिल होना चाहती थी, एनडीए में, लेकिन भाजपा ने भाव नहीं दिया. तो, इसलिए भी हमला हो रहा है. इस बार तेलंगाना के चुनाव में आखिरी वक्त तक चुनाव-प्रचार हुआ है.

हालांकि, इसको मैं 2024 का सेमी-फाइनल नहीं मानता, क्योंकि दो-तीन पार्टियां हैं. बीआरएस, भाजपा और कांग्रेस, तीनों पार्टियां यहां मौजूद हैं. इसमें कांग्रेस और भाजपा तो नंबर दो आने के लिए फाइट कर रही हैं, अगर चुनावी प्रचार और उसके तरीकों को देखें, जनता के रुझान पर गौर करें. बीआरएस को यानी केसीआर को जीत आसानी से मिलती दिखती है, जबकि कांग्रेस और भाजपा अब दूसरे नंबर की पार्टी बनने को उलझ रहे हैं. सारे नारे, बयानबाजी और तौर-तरीके उसी दिशा में जाते दिख रहे हैं. 

तेलंगाना में योगी आदित्यनाथ आए तो हिंदुत्व का मुद्दा उठाया. पचास साल से बोला जा रहा है कि हैदराबाद का नाम बदल देंगे, भाग्यनगर बनाएंगे, तो उस पर ओवैसी ने भी प्रतिक्रिया दी है. दोनों ही बराबर की प्रतिक्रिया दे रहे हैं. केसीआर के राज में हालांकि, कुछ खास जगहों को छोड़ दें, तो सांप्रदायिक झगड़े नहीं होते, कुल मिलाकर शांति ही बनी रहती है. वैसे, योगी के साथ हिमंता बिस्व शर्मा ने भी उधर प्रचार किया है और हिंदुत्व के मुद्दे उठाए हैं. इन दोनों ही प्रचारकों का काफी फायदा भाजपा को मिलेगा. जुलाई 2022 में बीजेपी का जो राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था, उसमें तेलंगाना फर्स्ट, तमिलनाडु नेक्स्ट पर भी चर्चा हुई थी, संजय बंटी को निकालने के बाद बीजेपी थोड़ी कमजोर हुई है. उससे बीजेपी को झटका मिला है, क्योंकि वह बीआरएस को टक्कर दे रहे थे और 2024 में यही समीकरण बन रहा है कि भाजपा को अधिक सीटें मिलेंगी. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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