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कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव राजस्थान का किला संभाल पायेगा या नहीं?

Congress President Election: पूरे 22 साल बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Congress) को नेहरु-गांधी परिवार के बाहर अध्यक्ष मिलने की जद्दोजहद देखने को मिल रही है. मानो ये संगठन का आंतरिक चुनाव न होकर लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बांटने की मारकाट वाली कोई लड़ाई हो. चुनाव तो पार्टी के अध्यक्ष का होना है, लेकिन अहंकार वाली सियासत ने पूरी तरह से इसे राजस्थान (Rajasthan) की "हल्दीघाटी" वाली लड़ाई बनाकर रख दिया है.

बड़ा सवाल ये है कि "गांधी परिवार" के वफादार अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को अगर पूरा यकीन है कि वे हर सूरत में ये चुनाव जीतेंगे तो फ़िर राजस्थान की गद्दी सचिन पायलट को सौंपने में सूदखोरों की तरह इतनी कंजूसी आखिर क्यों बरत रहे हैं? हालांकि सियासी तौर पर ये भी साफ है कि गहलोत गुट ने अगर कोई विद्रोह किया तो कांग्रेस में राजस्थान का भी वही हाल होना है, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश में कर दिखाया.

हालांकि गहलोत ने गुरुवार को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी से मुलाकात की और उसके बाद उनके डाउन हो चुके तेवरों से साफ हो गया कि आज वे जिस कुर्सी पर हैं और आगे जिस कुर्सी पर बैठने वाले हैं, वह गांधी परिवार के वरदहस्त के बगैर मिल ही नहीं सकती. राहुल गांधी ने गहलोत से हुई निजी मुलाकात में क्या कहा होगा, ये तो कोई नहीं जानता है. राहुल गांधी ने एक चतुर राजनीतिज्ञ की इमेज बनाने की कोशिश करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये गहलोत को ये साफ संदेश दे डाला कि अगर अध्यक्ष बनना है तो फिर सीएम की कुर्सी छोड़नी ही पड़ेगी. इसके लिए उन्होंने उदयपुर के चिंतन शिविर में पारित एक व्यक्ति, एक पद के प्रस्ताव का जिक्र करते हुए ये भी याद दिला दिया कि ये महज़ संगठन के अध्यक्ष का चुनाव नहीं है, बल्कि एक विचारधारा और आइडिया को आगे ले जाने की अहम जिम्मेदारी है.     

राहुल गांधी को आखिर ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि जो कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष बनता है, उन्हें याद रखना चाहिए कि वह विचारों के एक समूह, विश्वास की एक व्यवस्था और भारत के एक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं. पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों को सलाह देते हुए राहुल ने ये भी कहा कि ‘‘आप ऐतिहासिक पद लेने जा रहे हैं. एक ऐसा पद, जो भारत के एक विशेष दृष्टिकोण को परिभाषित करता है और लगातार करता भी आ रहा है.’’  
          
आपको याद होगा कि बुधवार को ये खबर आई थी कि अशोक गहलोत ने कहा था कि अगर वे पार्टी अध्यक्ष बनते हैं तो उस सूरत में सचिन पायलट नहीं बल्कि सीपी जोशी को राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री बनाया जाए. वे फिलहाल राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष हैं. हालांकि कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति को और दस,जनपथ की वफ़ादार लिस्ट को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि बेशक गहलोत इसमें कई बरसों से शामिल हैं लेकिन नयी पीढ़ी के सचिन पायलट ने भी अपनी कार्य शैली से वही रुतबा हासिल किया है. 

इसकी बड़ी वजह ये मान सकते हैं कि वे भाई-बहन यानी राहुल व प्रियंका गांधी की गुड बुक में अव्वल नंबर पर हैं. इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ पार्टी तोड़कर बीजेपी की सरकार बनाने की तैयारी लगभग कर चुके थे, तब प्रियंका गांधी ने ही उन्हें दिल्ली बुलाकर मनाने और पार्टी में बने रहने की मनुहार लगाई थी. बताते हैं कि तब प्रियंका ने ही सचिन पायलट को ये वचन दिया था कि अगर बीच में कोई ऐसे हालात पैदा हुए तो वह ही राज्य के सीएम की कुर्सी संभालेंगे.

कहने वाले तो कहते हैं कि अपनी बहन की कही इस बात पर राहुल ने भी अपनी सहमति तुरंत जता दी थी. शायद इसीलिये तबसे सचिन निश्चिंत होकर बैठे हुए थे, लेकिन गहलोत के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से अब सचिन पायलट के लिये मैदान साफ है और बहन-भाई को अपना वचन पूरा करते हुए उसे साबित कर दिखाने का मौका भी है. इसीलिये सियासी गलियारों में चर्चा है कि अशोक गहलोत की टोन डाउन होने यानी उनकी भाषा में आई नरमी से साफ है कि राहुल गांधी ने राजस्थान के अगले सीएम को लेकर अपना इरादा जता दिया है.

अब तक के घटनाक्रम से तो यही लगता है कि गहलोत का मुकाबला पार्टी के सांसद शशि थरुर से होना संभावित है, लेकिन खबरें तो ये आ रही हैं कि शशि थरूर को उनके घर केरल में ही कांग्रेस नेताओं का समर्थन नहीं मिल रहा है. केरल के कई कांग्रेसी नेता खुलकर कह चुके हैं कि हम थरूर की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं क्योंकि उन्होंने ऐसा करने से पहले हमसे कोई सहमति लेने की जरुरत तक नहीं समझी.

लेकिन हमें ये भी याद रखना चाहिए कि सियासत का कोई रंग नहीं होता है और वह हर वक़्त किसी गिरगिट की तरह अपना रंग बदलती रहती है. उसका जलवा तो ये भी है कि जहां गुरु तो गुड़ बनकर रह जाता है और चेला शक्कर बनकर छाती तानकर चलता है. आज से तकरीबन साढ़े चार दशक पहले ही ओशो रजनीश ने कह दिया था कि हमारे देश की राजनीति उस वेश्या से भी बदतर हो गई है, जो आपसे पैसा लेकर अपनी अस्मत का सौदा तो करती है, लेकिन यहां तो पांच साल में एक बार वोट लेकर ये नेता आपको निष्ठुर और अंधा बना देते हैं.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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