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कनाडा करे जिम्मेदार देश की तरह व्यवहार, बिना सबूत लगाएगा आरोप तो भारत उठाएगा कड़े कदम

भारत और कनाडा के बीच के रिश्ते फिलहाल बिल्कुल ही न्यूनतम स्तर पर जा चुके हैं और दोनों के बीच कोई गरमाहट नहीं है. भारत ने इसी बीच एक और कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जब तक कनाडा सब्सटेंशियल प्रूफ यानी विश्वास योग्य सबूत नहीं देता, तब तक भारत अपनी ओर से कोई भी जानकारी साझा नहीं करेगा. खालिस्तानी आतंकी निज्झर की हत्या में भारतीय खुफिया बलों का हाथ होने का दावा कुछ महीनों पहले कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने वहां की संसद में किया था. तब से ही दोनों देशों के बीच संबंध खराब से खराबतर होते जा रहे हैं. 

भारत का फैसला बिल्कुल सही

जब कोई सरकार या विदेशी एजेंसी किसी देश पर इस तरह का आरोप लगाते है जो बहुत ही गंभीर है और वो कोई सबूत नहीं दे रहे हैं, सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिकल स्टेटमेंट देंगे, राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं ठीक उसी तरह जैसे जस्टिन ट्रूडो ने पार्लियामेंट में दिया था. ये सिर्फ दोषारोपण की राजनीति है और कनाडा में एक पर्याप्त जनसंख्या है, जिसमें से बहुत से लोग खालिस्तानी समर्थक हैं. हालांकि, वहां जो इंडियन डायस्पोरा है, जिसमें सिख बहुत अधिक संख्या में हैं, उनका अधिकांश खालिस्तानियों के खिलाफ ही है. जस्टिन ट्रूडो जो कि लिबरल पार्टी के है, वो खालिस्तान समर्थक सिखों को एक वोट बैंक की तरह देखते हैं, इसलिए उन्होंने इंडिया और कनाडा के संबंध को तिलांजलि दे दी है जिससे वो वोट बैंक को सुरक्षित कर सकें. भारत जो कि एक मजबूत देश है, उसे सार्वजनिक मंचों पर अगर कोई विदेशी सरकार कलंकित करने का प्रयास करता है, उससे उनके इरादों का पता चलता है. कोई भी सरकार बिना किसी तथ्यात्मक सबूत के इसमें सहयोग नहीं कर सकती है. भारतीय दूतावास के द्वारा लिया गया यह फैसला बिल्कुल सही है. अमेरिका के साथ ऐसी ही घटना की अगर तुलना हो रही है तो यह जानना चाहिए कि पब्लिक डोमेन में लाने से पहले अमेरिका भारतीय सरकार के साथ सूचनाएं साझा कर रहा है और उसपर सहयोग भी चाहता है और भारत सरकार भी सहयोग कर रहा है. अमेरिका ने कोई राजनीतिक बयानबाजी नहीं की है, वहां के जस्टिस डिपार्टमेंट ने जरूर बयान दिया है, किसी अमेरिका नेता ने नहीं.

ट्रूडो का व्यवहार अपरिपक्व

कनाडा  के प्रधानमंत्री ने जब भारत पर आरोप लगाये थे, उस समय भी भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया था. ट्रूडो अपने देश के सुप्रीम कोर्ट से डांट भी खा चुके है, फिर भी अपना रवैया नहीं बदल रहे हैं. ट्रूडो के इस रवैये में राजनीति है, लेकिन ये लंबे समय के लिए राजनीतिक परिदृश्य नहीं है, यदि ये लंबे समय होता तो या राजनीति परिपक्वता होता तो भारत जैसे देश से दुश्मनी करने का कोई मतलब नहीं है, वो भी एक ऐसे मुद्दे पर जिसपर आप नियंत्रण कर सकते है. भारत बार-बार खालिस्तान की समस्या को उठा रहा है, कनाडा खालिस्तान का केंद्र रहा है, वहां से भारत की एक फ्लाइट को भी उड़ा दिया गया है. फिर भी उसी खालिस्तानी जो कि भारत से रिफ्यूजी बनकर कनाडा में बसा, ट्रूडो उसे ऐसे दिखा रहें है जो यहां का आम नागरिक है. निज्जर को किसने मारा, क्यों मारा, किस कारण से मारा, भारत ने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन निज्जर कौन था, उसे भारत से लेकर सभी देश के लोग जानते हैं. इस चीज पर भी कनाडा की सरकार राजी होने के लिए तैयार नहीं है, उसे आम नागरिक की तरह ट्रीट कर रही है, जो कि वो है नहीं. तुर्की में सऊदी दूतावास के अंदर एक अमेरिकी पत्रकार की हत्या की गई थी. उसके बाद भी सऊदी अरब और अमेरिका के बीच के संबंध में खटास नहीं आयी. यह घटना यह दिखाती है कि जस्टिन टूडो कितने नासमझ हैं. 

बढ़ रहा है भारत का भू-राजनीतिक महत्व

यदि कनाडा का राजनीति परिदृश्य बदलता है, जैसे जस्टिन टूडो के पहले एक कंजर्वेटिव पार्टी की सरकार थी, उस समय भारत और कनाडा के बीच का रिश्ता गर्मजोशी भरा था. अगर कनाडा की सरकार और सत्ता बदलती है, फिर वो पहचानेंगे कि भारत दक्षिण एशिया के साथ-साथ दुनिया  में भी सबसे महत्वपूर्ण देश है. भारत की ट्रेड में, डिप्लोमेसी में और सारी चीजों में आवश्यकता है. भारत का कंसर्न सिर्फ यह है कि कनाडा में चल रहें  खालिस्तानियों के नाटक को नियंत्रण में रखा जाए. कनाडा में सरकार की वजह से दिक्कत हो रही है, जनता की वजह से कोई समस्या नहीं हो रही है. भारतीय विदेश नीति अब आक्रामक हो रही है, तो उसका कारण है. जब इकोनॉमी ग्रो करती है तो मजबूती आती है, सरकार की जो भी मंशा होती है, लीडरशिप की क्या पर्सनैलिटी है और पार्टी क्या है, इन सभी बातों का फर्क बहुत पड़ता है. चीन भी अपनी फॉरेन पॉलिसी में असर्टिव हो रही है, दुनिया को दबा रही है. अफ्रीका से लेकर एशिया तक देखा जाए तो चीन हर जगह घुस रही है, फिर चाहे वो नेपाल, म्यांमार, मालदीव में चीन की उग्र और विस्तारवादी नीति हो. भारत की वो पॉलिसी नहीं है. असर्टिवनेस का ये मतलब नहीं है कि आप छोटे देशों को दबा देगें. भारत चाहता है कि उसे अपनी स्थिति के तहत इकोनॉमिक, पॉलिटिकल या डेमोक्रेसी के अनुसार उचित स्थान मिलें और वर्तमान में भारत की सरकार उस चीज को बहुत ही मजबूती से अपना रही है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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