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लोकसभा चुनाव में NDA को हराने के लिए 4 दलों की होगी बड़ी भूमिका, मायावती बदल सकती हैं 'एकला चलो' स्टैंड, ये हैं 5 बड़े फैक्टर

विपक्षी एकता को लेकर बिहार की राजधानी पटना में 23 जून (शुक्रवार) को बड़ी बैठक का आयोजन किया गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर हुई इस महाबैठक में 15 दलों के 32 नेताओं ने हिस्सा लिया, जिनमें अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, शरद पवार, महबूबा मुफ्ती, एमके स्टालिन, लालू यादव, अखिलेश यादव, भगवंत मान और राघव चड्ढा जैसे नेता शामिल हुए.

इस बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान के दौरान कांग्रस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अब विपक्षी नेताओं की अगली बैठक 12 जुलाई को शिमला में होगी और उसमें इसको आखिरी स्वरुप देने पर मंथन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ने का एक कॉमन एजेंडा आएगा. जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बैठक के बाद कहा कि देश हित में सब साथ आएं हैं. एक साथ चुनाव लड़ने पर सहमति बनी है. जो सत्ता में हैं, वो इतिहास बदल रहे हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस बैठक के बाद कहा कि ये लड़ाई विचारधारा की है. भारत की नींव पर आक्रमण किया गया है. जबकि, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का ये कहना था कि लोकतंत्र और संविधान पर हमला हो रहा है. जो कश्मीर में हुआ, वही पूरे देश में हो रहा है. तो वहीं, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने संयुक्त बयान के दौरान कहा कि आपसी मतभेद छोड़कर साथ चलेंगे. 2024 चुनाव में हम मिलकर लड़ेंगे.

विपक्षी एकता पर बैठक लेकिन कहां हैं मायावती

इन सब कवायद और विपक्ष की बड़ी एकता बैठक के इतर ये लगातार सवाल उठ रहा है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती आखिर कहां हैं और लोकसभा चुनाव को लेकर उनका क्या रुख रहने वाला है? पटना में 23 जून को विपक्ष की बैठक से ठीक दो दिन पहले मायावती ने प्रदेश, मंडल और सभी जिला के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक की. इस बैठक की सबसे खास बात ये रही कि इस दौरान उन्होंने बीजेपी और समाजवादी पार्टी के खिलाफ तो जोरदार हल्ला बोला लेकिन कांग्रेस के खिलाफ चुप रहीं. ऐसा काफी लंबे समय के बाद देखने को मिला जब वे कांग्रेस और कांग्रेस शासित राज्यों पर ऐसे मौन दिखीं.

बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि केन्द्र सरकार के कार्यकलाप के चलते तेजी से बदलते राजनीतिक हालात और उनसे निपटने के लिए विपक्षी दलों की गतिविधियों पर पार्टी की गहरी नजर है. उन्होंने कहा कि कमियों से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी सरकार ध्यान बंटाने के लिए साम्प्रदायिक और जातिवादी विवादों को शह देने की कोशिश कर रही है.


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चार दलों की होगी बड़ी भूमिका

दरअसल, भले ही मायावती ने विपक्षी एकता को लेकर पटना में हुई बैठक से खुद को दूर रखा हो और उन्हें उस बैठक के लिए न्यौता भी न दिया गया हो, लेकिन देश में तेजी से बदलते राजनीतिक हालात और सियासी जमीन को बचाए रखने की कवायद में बीएसपी सुप्रीमो एकला चलो के अपने स्टैंड को छोड़कर गठबंधन के साथ आ सकती हैं. 

मायावती के रुख के बारे में एबीपी डिजिटल टीम के साथ बात करते हुए वरिष्ठ स्तंभकार रविभूषण का  कहना है कि विपक्षी एकता के लिए मुख्य रुप से बिहार और उत्तर प्रदेश के चार दलों की बड़ी भूमिका होगी. ये हैं नीतीश कुमार, आरजेडी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी.    

रविभूषण ने कहा कि अभी तो बीएसपी विपक्षी एकता में शामिल ही नहीं हुई है, लेकिन ये बताया जा रहा है कि वो आ सकती है. लेकिन सभी पर ईडी की तलवार लटकी हुई है. दूध का धुला तो कोई भी राजनीति दल नहीं है. सभी पर आरोप हैं, और केन्द्र के पास फाइलें बनी हैं. इस फिलहाल की वस्तुस्थिति है. 

'एकला चलो' का बदल सकती हैं स्टैंड

जबकि, इस बारे में बात करते हुए दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर राजीव सचान ये बताते हैं कि यूपी में जो दयनीय स्थिति कांग्रेस की है, वही स्थिति बीएसपी की भी है. दोनों पहले भी मेल-मिलाप कर चुके हैं और दोनों को एक दूसरे के सहारे की जरूरत हैं. ऐसे में ये हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर बीएसपी और कांग्रेस का तालमेल हो जाए. कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस इस बात से निश्चिंत है कि जो वोटर उससे कट गए थे, वो उनके पास वापस आ गए हैं. जबकि मायावती यूपी में कई बार मुस्लिम वोटों पर दांव लगा चुकी हैं, कभी सफलता मिली तो कभी नहीं मिली है.  

सपा को हो सकता है बड़ा नुकसान

ऐसे में यदि कांग्रेस और बीएसपी के बीच 2024 लोकसभा चुनाव में समझौता होता है इसका उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सकता है, और इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है. सपा मुस्लिम और यादव वोट पर आश्रित है और अपने वोटर को बनाए रखना चाहेगी.

राजीव सचान का कहना है कि फिलहाल विपक्षी एकता की सूरत में चाहे अखिलेश हों या फिर ममता हों, वो ये चाहते हैं कि कांग्रेस 200-250 सीटों पर ही चुनाव लड़े. कांग्रेस की कीमत पर विपक्षी एकता चाह रहे हैं, यानी कर्नाटक और अधिक कुर्बानी दे. जबकि कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस शायद ही ऐसा करेगी.  

अखिलेश भी ममता बनर्जी की तर्ज पर सोच रहे हैं. जैसे मामता बनर्जी ये सोच रही है कि बंगाल में कांग्रेस कमजोर है इसलिए वे यहां पर अपनी जमीन मजबूत करने की न सोचे, वही स्थिति अखिलेश यादव कांग्रेस के सामने रख रहे हैं, कि हम यूपी में आपके साथ हैं, लेकिन हमें डिस्टर्ब मत करिए. मायावती के कमजोर होने की एक बड़ी वजह यही है कि मुस्लिम वोट का बीएसपी से छिटक कर एसपी के पास चले जाना. जबकि दलित वोट और ओबीसी वोट एक हद तक बीजेपी के पास खिसक जाना. इसलिए, बीएसपी को भी ये जरूरत है कि एक ऐसा साझीदारी दल मिले, जिससे सबसे मजबूत गढ़ यूपी में अपनी शर्तों के साथ समझौता कर पाएं.

कांग्रेस के पास यूपी में खोने को कुछ नहीं

कांग्रेस के पास आज उत्तर प्रदेश में खोने के लिए कुछ भी नहीं है. ऐसे में कांग्रेस बीएसपी की शर्तों को मान सकती है, अगर उसके सहारे उसे 2-3 लोकसभा सीटें मिल जाए. हालात ये हैं कि फिलहाल कांग्रेस को रायबरेली सीट बचाना भी मुश्लिल हैं, अमेठी तो वो पहले ही हार चुकी है. इसलिए, जिन राज्यों आगामी चुनाव होने हैं, उसमें बीएसपी का एक सीमित वोट बैंक है, ऐसे में कांग्रेस और बीएसपी का समझौता हो सकता है. अगर ये गठबंधन सफल रहा तो आगे लोकसभा में भी ये गठबंधन कायम रह सकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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