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किसानों को विष्ठा खाने पर मजबूर मत करिए,हमारी औलादें हीरे-जवाहरात खाकर ज़िंदा नहीं रह सकतीं!

दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसानों का पूरे 40 दिनों तक चला आक्रोश प्रदर्शन अभी पूर्ण समाप्त नहीं हुआ बल्कि तमिलनाडु के सीएम पलानीसामी द्वारा पीएम मोदी जी तक उनकी करुण पुकार पहुंचाने का आश्वासन मिलने के बाद 25 मई तक के लिए महज टला ही है.

उपन्यास-कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के कालजयी उपन्यास ‘गोदान’ का प्रमुख किसान पात्र होरी मरते वक़्त अपनी पत्नी धनिया से आख़िरी शब्द कहता है- ‘सब दुर्दशा तो हो गई. अब मरने दे!’ तमिलनाडु से हताश और निराश होकर न्याय की आस में राजधानी के जंतर-मंतर पर डेरा डाले किसानों की भी सब दुर्दशा हो चुकी. केंद्र सरकार का ध्यान अपनी मांगों और दुर्दशा की ओर खींचने के लिए वे सांप-चूहे मुंह में दबाने, सड़क पर परोस कर खाना खाने और स्वमूत्र पीने की धमकी देने तक की इंतेहा तक गए. उनके जीवट को सलाम करना होगा कि वे मौत की नहीं बल्कि संघर्ष की पगडंडी पर चले. लेकिन इतना तो समझ ही गए होंगे कि इस देश में अब किसान के हाड़तोड़ परिश्रम और आंख के पानी की कोई मर्यादा नहीं बची. वे यह भी जान गए होंगे कि अगर अनाज उगाने की उनकी बुनियादी और अनिवार्य उपयोगिता नहीं होती तो वे कब के समाप्त कर दिए गए होते.

70 वर्षीय प्रतिष्ठित वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता पी. आयकन्नु की अगुवाई में तमिलनाडु से 14 मार्च, 2017 की शाम दिल्ली मार्च करने पहुंचे 114 किसानों ने हर जतन करके देखा. इनमें से कुछ लोग बीमार होकर लौट भी गए थे लेकिन केंद्र सरकार समर्थकों ने सोशल मीडिया पर उनकी कालिख भरी छवि पोती कि वे किसी की शह पर फैंसी ड्रेसों में हलुआ-पूरी उड़ाने जंतर-मंतर पर जमा हुए अघोरी थे. ये अपने साथ कुछ उन किसानों की मुंडमालाएं भी लाए थे जिन्होंने राज्य में 140 साल के बाद पड़े सबसे भयानक सूखे के क़हर में प्राण गवां दिए. इनमें 25 साल का किसान था और 75 का भी. इनमें दामोदरन भी था जो मृतक पत्नी की खोपड़ी को गले में पहने रहता था.

किसानों ने जब पीएम मोदी जी से मिलकर अपना दुखड़ा सुनाने की कोशिश की तो वहां भी दुत्कार ही मिली. इससे नाराज़ होकर किसनों ने 10 अप्रैल को राष्ट्रपति भवन के पास साउथ ब्लॉक में निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन कर डाला था. विडंबना देखिए कि जो सरकार उद्योग लगाने की सौदेबाज़ी के लिए उद्योगपतियों को विमान में बिठाकर यूएसए, चीन, मंगोलिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान तक की सैर कराती है, वह चार क़दम चलकर किसानों के आंसू पोंछने पीएमओ से जंतर-मंतर तक नहीं आ सकी.

नेशनल साउथ इंडियन रिवर्स लिंकिंग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष आयकन्नु पिछले साल भी किसानों को लेकर दिल्ली आए थे लेकिन तब भी उन्हें बैरंग लौटना पड़ा था. इसके बाद उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की और फैसला अप्रैल की शुरुआत में सभी किसानों की कर्ज़माफी के रूप में आ गया. माननीय अदालत ने किसान कर्ज़ और फसल ऋण की वसूली पर 31 मार्च, 2016 के बाद से पूरी तरह रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी घड़ी में केंद्र सरकार मूकदर्शक बन कर न बैठे. नतीजा यह हुआ कि केंद्र ने राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (एनडीआरएफ) के तहत 1,712 करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर की, जिसके सामने ऊंट के मुंह में जीरा वाला मुहावरा भी निरर्थक है.

स्थिति की भयावहता देखते हुए ये किसान हाईकोर्ट का फैसला आने के पहले ही दिल्ली आ चुके थे क्योंकि कावेरी डेल्टा क्षेत्र में पानी की कमी के चलते साल 2016 से अब तक 29 लाख हेक्टेयर से ज्यादा की भूमि में कुछ भी नहीं उपजाया जा सका है और सूखे के चलते राज्य में इस साल 100 से अधिक किसान पहले ही आत्महत्या कर चुके थे. राज्य में पिछले साल मात्र 170 मिलीमीटर बारिश हुई थी जबकि तमिलनाडु में औसतन 437 मिलीमीटर बारिश होती है.

भविष्य की चिंता से आतुर तमिलनाडु के किसान केंद्र सरकार से 40,000 करोड़ रुपये का सूखा राहत पैकेज, कृषि ऋण माफी और कावेरी जल-प्रबंधन बोर्ड स्थापित करने की मांग कर रहे थे. उनकी मांगों में राष्ट्रीय बैंकों से लिए गए कर्ज़े की माफी के अलावा उन किसानों को पेंशन देने की गुजारिश भी शामिल है, जो निस्सहायता के चलते अब खेती का काम करने में समर्थ नहीं हैं. अपनी मांगें मनवाने के लिए 40 दिनों के दौरान उन्होंने भीख मांगी, भूख हड़ताल की, पेड़ों पर चढ़ गए, पत्तों से शरीर ढंका, देह पेंट कर ली, रुद्राक्ष की माला पहनी, लंगोट में पदयात्रा की, साड़ी पहनी, कुत्ता बनकर भोंके, घास खाई, आधा सिर और आधी मूछ के बाद पूरी मूछ भी मुंडवाई, लाश बनकर घंटा बजाते हुए रोकर शवयात्रा निकाली, गांधी जी का मुखौटा पहनकर पीएम से चाबुक खाने का स्वांग किया, सर के बल खड़े होकर प्रदर्शन किया, हथेली काट कर ख़ून अर्पित किया. यहां तक कि हताशा में विष्ठा ख़ा लेने की धमकी दे डाली.

पूरे प्रसंग में उम्मीद और रोशनी की किरण यही रही कि इतना नुकसान, अपमान और दुर्दशा झेलने के बावजूद इन किसानों ने खेती से मुंह मोड़ने की बात नहीं की. जबकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन 2003 में ही सर्वे के जरिए बता चुका है कि अगर विकल्प हो तो 40% से ज़्यादा किसान खेती छोड़ने को तैयार बैठे हैं. 2005 में प्रख्यात कृषि-वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में गठित राष्ट्रीय कृषक आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि भारत में एक किसान की औसत आय सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले चपरासी से भी कम है. किसानों की एक गैर-राजनीतिक संस्था भारत कृषक समाज ने 2014 में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) से सर्वे कराया तो 61% किसान खेतीबाड़ी से तौबा करने को तैयार बैठे थे.

नब्बे के दशक में कॉरपोरेटों को कृषि सेक्टर में प्रवेश देने का नतीजा है कि आसमान छूती लागत से बहुत कम आय और असुरक्षित किंतु भयकारी कर्ज़ के चलते भारत के लाखों किसान कभी अपनी ही ख़ून-पसीने से सींची फसल नष्ट करने को मजबूर होते हैं तो कभी मौत को गले लगा लेते हैं. कृपा बरसाने की शक्ल में तय किया गया किसान की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) साल-दर-साल किसानों का आखेट करता रहता है. सरकार का ही "राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय" बताता है कि 1995-2011 के दरम्यान 7 लाख, 50 हज़ार, 860 किसानों ने आत्महत्याएं कीं और यह साल 2017 है. कृषि के अलावा किसी और सेक्टर में ऐसा कभी देखा-सुना गया है क्या?

किसानों का मरघट अब महाराष्ट्र के विदर्भ तक ही सीमित नहीं रहा. एमपी, छत्तीसगढ़, पंजाब, यूपी, राजस्थान, बिहार, बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु तक इसका विस्तार हो चुका है. जान लीजिए कि भारत के कई होरी और धनिया जंतर-मंतर पर देश की आंखें खोलने पहुंचे थे. वक़्त आ गया है कि किसानों के साथ राजनीति की आइस-पाइस खेलते हुए उन पर क्षेत्र या पार्टी विशेष का ठप्पा लगाकर उनका मुंह चिढ़ाने की बजाए खेती में उनकी आस्था बरकरार रखने के उपाय किए जाएं. कृपया 25 मई के बाद उन्हें विष्ठा खाने पर मजबूर मत कीजिएगा. वरना आप-हम और हमारी औलादें सोना-चांदी-हीरे-जवाहरात खाकर ज़िंदा तो नहीं ही रह पाएंगी.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है) लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/VijayshankarC और फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/vijayshankar.chaturvedi
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