Blog: ई है ‘मोदी’ नगरिया, तू देख ‘बबुआ’

उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी और किसकी आस टूटेगी इसका इंतजार दो महीनों से चल रहा है. नतीजे की पूरी तस्वीर 11 मार्च को रिलीज होगी लेकिन एक्जिट पोल के ट्रेलर में साफ दिख रहा है कि नरेन्द्र मोदी ने धोबिया चाल से अखिलेश यादव और मायावती को राजनीतिक रूप से पछाड़ दिया है. एक 'बाहरी व्यक्ति' नरेन्द्र मोदी 'यूपी की बेटी' यानि मायावती और 'यूपी के अपने' लड़के यानि अखिलेश और राहुल पर भारी पड़ गया है और ऐसा प्रतीत होता है कि यूपी को अखिलेश-राहुल का साथ पसंद नहीं है बल्कि नरेन्द्र मोदी पसंद हैं. यूपी के सारे एक्जिट पोल में बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में दिखाया गया है या भारी बहुमत से जिताया गया है. इससे अब साफ होता है कि उत्तरप्रदेश में बीजेपी की सरकार बननी लगभग तय है.

सारे एक्जिट पोल के नतीजे के औसत को निकाला जाए तो करीब 216 सीटें आती है जबकि सरकार बनाने के लिए 202 ही सीट चाहिए. एबीपी न्यूज-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 164 से 176 सीटें मिल सकती है जबकि न्यूज 24-चाणक्य टुडे ने बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें 285 सीटें, इंडिया टुडे-एक्सिस पोल के मुताबिक 251-279 सीटें मिल सकती है यानि एक्जिट पोल के नतीजे में ज्यादा फेरबदल नहीं हुआ तो बीजेपी की सरकार बनना लगभग तय है. सभी सर्वो को ध्यान में रखा जाए तो बीजेपी को न्यूनतम 176 और अधिकतम 285 सीटें मिल सकती हैं.
क्यों चला मोदी का जादू?
एक बात साफ हो गई है कि यूपी में मोदी का जादू बरकार है. मोदी को हराने के लिए अखिलेश और राहुल गांधी ने दोस्ती की थी लेकिन वो दोस्ती भी मोदी की शक्ति के सामने कमजोर पड़ती नज़र आ रही है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस जीत में मोदी के नोटबंदी का बड़ा असर है. नोटबंदी के दौरान और नोटबंदी के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं वहां पर मोदी को फायदा ही हुआ खासकर उन राज्यों में जहां पर बीजेपी का वजूद है. हाल में मुंबई के बीएमएसी चुनाव में बीजेपी की शक्ति तीन गुणी बढ़ गई है वहीं महाराष्ट्र के 10 में से 8 म्युनिसिपल चुनाव में पार्टी जीती. गुजरात का स्थानीय चुनाव जीती. गुजरात से असम और हरियाणा से उड़ीसा के स्थानीय चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत हुई वहीं लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव में पार्टी की जीत हुई.
दूसरी बात ये है कि टिकट बंटवारे में खास ध्यान दिया गया जो उम्मीदवार जीतने के लायक थे उन्हीं को टिकट दिया गया हालांकि टिकट बंटबारे को लेकर पार्टी का विरोध भी हुआ. टिकट बंटवारे में यादव, जाटव को खास तरजीह नहीं दी गई जबकि मुस्लिम को एक भी टिकट नहीं दी गई. मतलब साफ था जहां पर वोट नहीं मिलने वाला है वहां टिकटों की चैरिटी क्यों की जाए? तीसरी बड़ी बात ये है कि बीजेपी ने इसबार बिहार की तरह यूपी में कोई गलती नहीं की, बल्कि पूरी रणनीति के साथ पार्टी चुनाव लड़ी. अखिलेश की कमियों पर मोदी ने निशाना साधने की कोशिश की. उसी मुद्दें को छूने की कोशिश की जिसपर अखिलेश तिलमिला जाए मसलन श्मशान बनाम कब्रिस्तान, धर्मस्थलों का, बिजली देने का मामला, अपराध का मामला खासकर गायत्री प्रजापति के मुद्दे पर अखिलेश सरकार पूरी तरह एक्सपोज हो गई. चौथी बात ये थी इस चुनाव को यादव बनाम अन्य जाति कर दिया गया. हो सकता है कि यादव के खिलाफ सारी पिछड़ी जातियां लामबंद हो गई हो.
पांचवी बात ये भी हो सकती है कि यादव परिवार के झगड़े की वजह से मोदी को ज्यादा फायदा हो रहा हो. नोटबंदी ही इकलौता मुद्दा नहीं है बल्कि नरेन्द्र मोदी ने उत्तरप्रदेश चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है चूंकि ये चुनाव हारे तो उनकी साख पर सवाल खड़ा हो जाएगा इसीलिए वाराणसी में तीन दिन रहकर 30 घंटे से ज्यादा समय चुनाव प्रचार में लगा दिये. स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेता को तरजीह दी जा रही है वहीं ऐसे मुद्दे को उछाला जा रहा है जिसका कहीं न कहीं अखिलेश सरकार से सरोकार है.
अखिलेश की हार क्यों हो रही है? अखिलेश सरकार का काम अच्छा है, नाम भी अच्छा है और गठबंधन भी इसीलिए किया गया कि उनकी पार्टी की जीत हो जाए. अखिलेश को इसका फायदा भी हुआ. अगर मोदी की जीत होती है तो इसका मतलब नहीं है कि अखिलेश का सारा फॉर्मूला फेल हो गया है. अगर किसी पार्टी के समर्थन में हवा है तो विपक्षी पार्टियां कहां हवा के सामने टिक पाएगी. एक्जिट पोल की मानें तो अखिलेश को भले सीटें कम मिलेंगी लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले अखिलेश को 30 से 33 फीसदी वोट मिल सकते हैं जबकि पिछली बार 29 फीसदी ही वोट मिले थे. ये बात साफ हो गई है कि अखिलेश को यादव और मुस्लिम ने जमकर वोट दी है. अखिलेश ने जमकर प्रचार भी किया लेकिन पारवारिक झगड़े में नासमझी दिख गई. पिता को दरकिनार कर दिया तो चाचा शिवपाल को जानी दुश्मन बना दिया. यही वजह रही कि मुलामय सिंह भाई-बहू के प्रचार के अलावा कहीं नहीं निकले वहीं शिवपाल ने अंदर अंदर भीतरघात भी किया तो दूसरी तरफ भरी सभा में चाचा को सबक सिखाने का संकेत और उनकी दूरदर्शिता पर सवाल खड़ा कर दिया. घर की लड़ाई में उन विधायकों को भी टिकट दे दिया गया जिसकी छवि काम नहीं करने की वजह से धूमिल हो गई थी. अखिलेश ने बहुत चतुराई से और समझदारी से चुनाव लड़ा और बड़ी शालीनता से मोदी और मायावती पर हमला बोला. और सबसे बड़ी बात यह है कि लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस से गठबंधन की वजह से नुकसान हुआ. लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस से गठबंधन नहीं होता तो अखिलेश राजनीतिक रूप से रसातल में मिल सकते थे. ये दूसरी वजह हो सकती है कि मोदी के सामने अखिलेश टिक नहीं पाए. एक्जिट पोल के अनुमान सही हैं या नहीं इस पर अंतिम मुहर 11 मार्च को ही लगेगी .
- धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135 पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434


























