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कांग्रेस चुनाव: शशि थरूर को पटखनी दे देंगे 'गांधी परिवार' के वफादार अशोक गहलोत?

Congress President Election: अब तक नेहरु-गांधी परिवार के साये में जकड़ी रही कांग्रेस को पहली बार ये मौका मिल रहा है कि वह लोकतांत्रिक तरीके से होने वाले संगठन के चुनाव करवाकर ये संदेश देने की हिम्मत जुटाये कि देश की सबसे पुरानी पार्टी अब किसी एक ख़ानदान की जागीर बनकर नहीं रह गई है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि भारत को जोड़ने की यात्रा पर निकली कांग्रेस अपने घर को मजबूत करने के लिए इसे गांधी परिवार के साये से मुक्त करने की ताकत क्या वाकई जुटा पायेगी? ये ऐसा सवाल है,जिसका जवाब तो फिलहाल पार्टी के किसी ऐसे बड़े नेता के पास भी नहीं है जिनके लिए एक परिवार से निकला हुआ वाक्य ही सियासी ब्रह्मास्त्र है.

अगर ये पूछा जाए कि कांग्रेस में गांधी परिवार के सदस्यों के अलावा और ऐसा कौन-सा चेहरा है,जो न चाहते हुए भी अक्सर मीडिया की सुर्खी बन जाता है,तो अधिकांश लोगों की जुबान पर एक ही नाम आयेगा और वह है- शशि थरूर. वह केरल के तिरुवनंतपुरम से पार्टी के सांसद है और कांग्रेस में उन्हें आधुनिक व लोकतांत्रिक सोच के एक अलग ही  दिमाग के रूप में देखा जाता है.वे संयुक्त राष्ट्र में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के दौरान जब वे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद का चुनाव लड़े थे,तब उनके पक्ष में वोट जुटाने के लिए खुद मनमोहन सिंह ने भी अपने तमाम अंतराष्ट्रीय संबंधों को दांव पर लगा दिया था लेकिन उसके बावजूद थरूर इस दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत का चुनाव हार गए थे.

अब वही शशि थरूर देश की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए अपनी ताल ठोंक रहे हैं.इटली में अपनी माताजी के देहांत की सारी रस्में निभाने के बाद वापस दिल्ली लौट आईं पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी से सोमवार को शशि थरूर ने मुलाकात की.लेक़िन इस मुलाकात के बाद सबसे पहली खबर ही ये आई कि थरूर ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी और उनको हामी मिल गई.

जाहिर है कि इस खबर में कोई तो लोचा जरुर रहा होगा क्योंकि उन्होंने तमाम न्यूज़ चैनलों के आगे आकर इस तरह का दावा करने की बजाय सिर्फ एक न्यूज एजेंसी को फीड बैक दे दिया,ताकि देश के तमाम कांग्रेसियों में हलचल मच जाये. खलबली तो मचनी ही थी.

इसलिये थरूर के ऐसे दावे का जवाब देने के लिए कांग्रेस के महासचिव व मीडिया प्रभारी जयराम रमेश को मोर्चा संभालने के लिए आगे आना पड़ा.उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जो भी चुनाव लड़ना चाहे,वो न केवल इसके लिए स्वंतत्र है बल्कि उसका स्वागत भी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी का हमेशा से यही रुख रहा है. यह एक लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया है. चुनाव लड़ने के लिए किसी को किसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.इस बयान के बाद साफ हो गया कि थरूर ने सोनिया से हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस नेताओं की आंखों में धूल झोंकने की जो कोशिश की थी,वो एक तरह से फैल ही साबित हो गई.

वैसे इतना तो तय है कि थरूर मैदान में उतर रहे हैं लेकिन उनका सामना करने के लिए कौन होगा,ये फिलहाल साफ नहीं है. हालांकि भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी को मनाने की कोशिश लगातार हो रही हैं. कांग्रेस की ज्यादातर प्रदेश कमेटियों ने राहुल गांधी को फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. सबसे पहले राजस्थान कांग्रेस ने यह प्रस्ताव पारित किया था. इसके बाद छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, यूपी आदि राज्यों में प्रदेश प्रतिनिधियों की बैठक में "राहुल लाओ" का प्रस्ताव पास किया गया. हालांकि राहुल गांधी इस दबाव के आगे झुकते हुए नामांकन दाखिल करेंगे या नहीं इस पर जो सस्पेंस बना हुआ था,वह अब खत्म हो गया है.

इसलिये कि सोनिया-थरूर की इस मुलाकात के चंद घंटों के भीतर ही राजस्थान के मुख्यमंत्रीअशोक गहलोत की दावेदारी भी सामने आ गई है.उन्‍होंने  साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस के शीर्ष पद के लिए चुनाव में हिस्सा लेंगे.पिछले हफ्ते हमने इसी कॉलम में अपने पाठकों को ये बता दिया था कि चुनाव होने की सूरत में अशोक गहलोत ही गांधी परिवार की तरफ से उम्मीदवार होंगे और आलाकमान नीचे तक ये संदेश भेजेगा कि वे ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार हैं.अहमद पटेल के दुनिया से विदा हो जाने के बाद गहलोत को ही गांधी परिवार का सबसे वफ़ादार माना जाता है.

कांग्रेस यानी गांधी परिवार को ये स्थिति इसलिये भी मनमाफ़िक दिखाई दे रही है कि एक तरफ गहलोत के हाथ में पार्टी की कमान आ जाने से पार्टी पर दबदबा तो उन्हीं का बना रहेगा, तो वहीं राजस्थान में अगले साल होने वाले चुनावों से पहले मचने वाली भगदड़ को रोकने के लिए सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाकर अपने किले को भी बचाया जा सकता है.इसीलिये अब गांधी परिवार भी चाहता है कि चुनाव से ही फैसला हो जाये!

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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