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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

काम के अलावा ‘आप’ को केजरीवाल की चुप्पी ने भी जिताया!

बीजेपी की बहुत कोशिशों के बावजूद केजरीवाल उकसावे में नहीं आए. वे समझ रहे थे कि उनके कोई प्रतिक्रिया देते ही बीजेपी ‘चाय पे चर्चा’ की तर्ज पर बयानों को ले उड़ेगी और अपने तंत्र में उलझा कर आप सरकार के तमाम किए-धरे पर पानी फेर देगी.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुई आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत के पीछे लगभग सभी विश्लेषक सरकार द्वारा किए गए जनता के जमीनी कामों की मुख्य भूमिका बता रहे हैं, जो सौ फीसदी सच भी है. लेकिन इस जीत में बड़बोले धरनावीर केजरीवाल की चुप्पी और संयम बरतने का कुछ कम हाथ नहीं रहा है. यह केजरीवाल का संयम ही था कि उन्होंने खुद को ‘आतंकवादी’ कहे जाने की काट ‘दिल्ली का बेटा’ बता कर निकाली.

कांग्रेस तो दिल्ली चुनावों में महज खानापूर्ति के लिए विरोध कर रही थी लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल को अपनी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद वाली पिच पर घसीट लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. प्रचार के दौरान केजरीवाल के तार सीधे पाकिस्तान से जोड़े गए, उन्हें दिल्ली की प्रदूषित यमुना में डुबकी लगाने की चुनौती दी गई, उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग का साथी बताया गया, सर्जिकल स्ट्राइक पर शक जताने वाला कहा गया-यहां तक कि उनको आतंकवादी तक करार दे दिया गया, बावजूद इसके केजरीवाल उकसावे में नहीं आए. वे समझ रहे थे कि उनके कोई प्रतिक्रिया देते ही बीजेपी ‘चाय पे चर्चा’ की तर्ज पर बयानों को ले उड़ेगी और अपने तंत्र में उलझा कर आप सरकार के तमाम किए-धरे पर पानी फेर देगी.

बीजेपी जबसे केंद्र और राज्यों में मजबूत होना शुरू हुई है, यह ट्रेंड उभरा है कि पूर्ववर्ती सरकारें चाहे जितना अच्छा काम कर लें, उन्हें राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण या ऐसे ही थोथे भावनात्मक मुद्दों के सहारे घेर कर न सिर्फ धराशायी किया जाता रहा है, बल्कि आगामी चुनावों में उनकी कब्र ही खोद डाली गई! यूपी में अखिलेश यादव ने मालवाहक विमान उतारने लायक हाईवे बनवा दिया, किसानों की आय बढ़ाने के लिए आलू-प्याज-आम आदि की मंडियां बनवा दीं, लेकिन बीजेपी की शमशान-कब्रिस्तान की राजनीति उन्हें परास्त कर गई. आज दिल्ली का जो चमकदार रूप-रंग है, वह तीन बार मुख्यमंत्री रही स्वर्गीया शीला दीक्षित का कारनामा है, लेकिन हवाई आरोपों के चलते वह भी बुरी तरह हार गई थीं. त्रिपुरा के संतस्वरूप कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री माणिक सरकार तक बीजेपी के राष्ट्रवादी कुचक्रों का शिकार हो गए!

नैरेटिव यह बन गया था कि काम करने के अलावा बाकी सब कुछ करके ही चुनाव जीते जाएंगे. सुखद यह है कि डेविड और गोलिएथ की इस लड़ाई में एकतरफा जीत हासिल करके केजरीवाल ने इस नैरेटिव को पलट कर रख दिया है. केजरीवाल ने बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे का सवाल उठाकर मोदी पर कोई हमला किए बगैर उनके नाम पर चुनाव लड़ने की बीजेपी की रणनीति को बड़े सधे ढंग से ढेर कर दिया. उन्नत स्‍कूल, मोहल्‍ला क्‍लीनिक, बिजली-पानी की सस्‍ती दरें, राशन कार्ड, चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे, बुजुर्गों के लिए तीर्थ यात्रा योजना और दूसरी सहूलियतों को आसानी से लोगों तक पहुंचाने जैसे कर्म केजरीवाल की जीत की बुनियाद बन गए. चुनाव से ठीक पहले डीटीसी की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सौगात उनका मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ. दिल्ली में उन्होंने न सिर्फ लगातार तीसरी बार जीत हासिल की बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जैसे दिग्गजों की दिल्ली में उपस्थिति को पूरी तरह से बेअसर कर दिया.

लेकिन जैसा कि हमने ऊपर कहा है, इस कामयाबी में केजरीवाल के काम से ज्यादा उनकी खामोशी कहीं ज्यादा कारगर साबित हुई है. जब सीएए पास हो गया और इसके विरोध में दिल्ली के भीतर आंदोलन तेज हुए, तो अरविंद केजरीवाल ने चुप्‍पी साध ली. जब जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज हुआ, जेएनयू में छात्रों के आंदोलन को कुचला गया तब भी केजरीवाल किसी के पक्ष में कुछ नहीं बोले. सीएए के खिलाफ दिल्‍ली की सड़कों पर जब बड़े-बड़े जुलूस निकलने लगे, तब भी वह अविचलित रहे. उनकी नाक के नीचे शाहीन बाग का आंदोलन परवान चढ़ता रहा और दिल्लीवासी वहां का रुख करने लगे, लेकिन केजरीवाल ने स्कूल का रुख करने की बात कही. मीडिया के ज्यादा कुरेदने पर वह हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे.

केजरीवाल ने दक्षिण और वाम की राजनीति के बीच का खुला खेल दिखाकर दिल्ली से पूरे देश को एक नया फार्म्यूला भी दे दिया है. धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीति से दूर जाता दिख कर भी उन्होंने पहले तो जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले का स्वागत किया, मौके-बेमौके वह श्रीमद्भगवद्गीता से उद्धरण देते रहे और प्रचार के आखिरी क्षणों में दिल्ली के एक हनुमान मंदिर में मत्था टेक कर हिंदुत्ववादियों को साधा. अपनी मुफ्तखोर योजनाओं का बचाव उन्होंने रॉबिनहुड वाली इस मुद्रा के साथ किया कि केंद्र सरकार बड़े उद्योगपतियों का अरबों रुपए का कर्ज माफ कर रही है, सब्सिडी दे रही है, जबकि वह उस आम और गरीब आदमी की मदद कर रहे हैं, जिसको सरकारी मदद की सख्त जरूरत है.

उन्होंने जनता के द्वार पर जमीनी काम करके वामपंथी रास्ता अपनाया और विक्टिम कार्ड खेल कर माताओं-बहनों की सहानुभूति भी बड़े पैमाने पर अर्जित कर ली. दरअसल यह कांग्रेस का बार-बार आजमाया हुआ किंतु गोपनीय दांव था, केजरीवाल ने उसे खुल कर खेला है. उनका प्रचार अभियान भी बीजेपी-कांग्रेस की भांति टीवी पर धन की थैलियां न खोल कर सोशल मीडिया, एफएम रेडियो और खासकर यूट्यूब पर गजब का केंद्रित रहा. आखिरकार आप की ऐतिहासिक जीत ने राष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश दोहराया है कि अगर सरकारें सदिच्छा से काम करेंगी, तो जनता को भ्रामक प्रचार से बरगलाया नहीं जा सकता और जनपक्षधर दलों को चुनाव जीतने से कोई ताकत नहीं रोक सकती. काम की राजनीति को सम्मान मिल कर रहेगा.

वैसे तो केजरीवाल में मौकापरस्ती और रंग बदलने की अदा कूट-कूट कर भरी हुई है. वह एक जिद्दी आंदोलनकारी से चतुर राजनेता में तब्दील हो चुके हैं. लेकिन तय है कि मुख्यमंत्री की कांटों भरी कुर्सी पर बैठकर उन्‍हें फिर से केंद्र, उपराज्‍यपाल, बेकाबू जांच एजेंसियों और आधे-अधूरे राज्‍य के अजाबों से जूझना है. इस संघर्ष में उन्हें आगे भी चुप्पी से काम लेना होगा. तभी दिल्लीवालों के काम सधेंगे और केजरीवाल लायक बेटा बनेंगे.

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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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