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सीमांचल में अमित शाह की हुंकार से कितनी मजबूत होगी बीजेपी?

लोकसभा चुनाव से बहुत पहले ही नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव की जोड़ी को उनके घर में ही घेरने के लिए बीजेपी ने मिशन बिहार की बड़े जोरशोर से शुरुआत कर दी है. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद पहली बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के सीमांचल पहुंचकर नीतीश-लालू यादव के सफाये की हुंकार भर दी है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और बीजेपी ने 2024 के लिए मिशन-35 का लक्ष्य रखा है. सीमांचल को लालू की पार्टी आरजेडी और असदुद्दीन की AIMIM का गढ़ माना जाता है क्योंकि यहां मुस्लिमों की भी खासी तादाद है. इसीलिए अमित शाह के दो दिन के सीमांचल दौरे को सियासी समीकरण बदलने के लिहाज़ से बेहद अहम माना जा रहा है.

भारत के लिए सीमांचल क्षेत्र एक तरह का नेकलेस कहलाता है, जो नेपाल और पश्चिम बंगाल से सटा हुआ है. यह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है जिसमें पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जिले शामिल हैं. सीमांचल की कुल 24 विधानसभा सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की आरजेडी ही अव्वल रही थी. पिछली बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बड़ी एक ताकत बनकर उभरी थी. आरजेडी के वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए AIMIM ने पांच सीटों पर जीत दर्ज करके सबको चौंका दिया था. हालांकि अन्य सीटों पर भी AIMIM ने महागठबंधन के वोट काटे, जिसका फायदा एनडीए को मिला था.लेकिन कुछ महीने पहले ही तेजस्वी यादव ने अपनी सियासी गोटियां खेलते हुए AIMIM के 5 में से 4 विधायकों को तोड़ कर उन्हें आरजेडी में शामिल करा लिया. लिहाजा, इस इलाके में सियासी तौर पर तेजस्वी की पकड़ फिर से मजबूत समझी जा रही है.

गृह मंत्री अमित शाह के बिहार दौरे से ठीक पहले एनआईए ने देश भर में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर जो बड़ी कार्रवाई की है, उसमें पूर्णिया भी शामिल है. पूर्णिया पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा हुआ इलाका है, जहां से बड़ी संख्या में घुसपैठ होती है. माना जा रहा है कि इस एरिया में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या बड़ी संख्या में बंगाल के रास्ते बिहार में दाखिल होते हैं. सूत्रों ने बताया कि पीएफआई अवैध घुसपैठ करने वालों को आईडी कार्ड से लेकर तमाम  कागजात उपलब्ध करवाता है, ताकि उन्हें भारत में रहने में कोई परेशानी ना हो.

अमित शाह के इस दो दिनी दौरे की शुरुआत पूर्णिया से करने को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिहाज़ से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. शुक्रवार को पूर्णिया की एक रैली में शाह ने नीतीश-लालू-तेजस्वी की तिकड़ी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि स्वार्थ से और सत्ता की कुटिल राजनीति से प्रधानमंत्री नहीं बना सा सकता. विकास के काम करने से, अपनी विचारधारा के प्रति समर्पित रहने से और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करने से ही देश की जनता प्रधानमंत्री बनाती है.

अमित शाह ने कहा कि नीतीश कुमार किसी राजनीतिक विचारधारा के पक्षधर नहीं हैं. नीतीश कुमार समाजवाद छोड़कर लालू जी के साथ भी जा सकते हैं, जातिवादी राजनीति कर सकते हैं. वो समाजवाद छोड़कर वामपंथियों, कांग्रेस के साथ भी बैठ सकते हैं. नीतीश कुमार की एक ही नीति है- उनकी कुर्सी सलामत रहनी चाहिए. इसके लिए वे आरजेडी छोड़कर फिर से बीजेपी के साथ भी आ सकते हैं. सीमांत जिले में जनजातियों के साथ हो रहे अत्याचार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें भगाया जा रहा है, जिसे राज्य सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जनजातीय समाज की द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का काम किया है. हमने यहां से वामपंथी नक्सलवादियों को भगाया है. 

गृह मंत्री अमित शाह की इस रैली से एक दिन पहले ही गुरुवार को एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि किशनगंज के पूरे इलाके में डेमोग्राफी बदल गई है और नीतीश सरकार तुष्टिकरण की गहरी नींद में सोई है. उन्होंने कहा था, ''बिहार में आरजेडी ही सिमी है और सिमी का नया रूप पीएफआई है. पीएफआई को राज्य सरकार का पूरा समर्थन है.'' बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीट में से 39 पर एनडीए ने जीत हासिल की थी. लेकिन तब एनडीए में बीजेपी के साथ नीतीश की जेडीयू और राम विलास पासवान की एलजेपी भी शामिल थी. तब 39 में से 16 सीटें जेडीयू ने जीती थी.

जाहिर है कि नीतीश कुमार के अलग होने से एनडीए को 16 सीटों का नुकसान हुआ है. अब चिराग पासवान और एलजेपी (पारस गुट) को जोड़ लेने पर एनडीए के पास कुल 23 सीट ही है. लिहाज़ा, बीजेपी का लक्ष्य है कि 2024 में नीतीश के बग़ैर और दोनों के गढ़ को ध्वस्त करते हुए अपने बूते पर ही 35 सीटों पर कब्जा करे. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण किए बगैर इस टारगेट को हासिल नहीं किया जा सकता, लिहाजा सीमांचल से उसकी शुरुआत हो चुकी है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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